जैसा डर अमेरिका में घुसपैठियों को है वैसा भय भारत के घुसपैठियों के मन में क्यों नहीं है?

राष्ट्रीय जजमेंट

देश में अक्सर जघन्य अपराधों के पीछे बांग्लादेशी घुसपैठियों या रोहिंग्या मुसलमानों का हाथ सामने आता है। मुंबई में फिल्म अभिनेता सैफ अली खान पर हमला करने वाला भी बांग्लादेशी घुसपैठिया निकला। सवाल उठता है कि भारत की कानून व्यवस्था के लिए चुनौतियां पेश कर रहे इन घुसपैठियों की पहचान कर इन्हें देश से निकाला क्यों नहीं जा रहा? सवाल उठता है कि डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से अमेरिका में घुसपैठियों के मन में जिस प्रकार का भय है वैसा ही डर नरेंद्र मोदी जैसे सशक्त नेता के भारत का प्रधानमंत्री होने और अमित शाह जैसे सख्त प्रशासक के भारत का गृह मंत्री होने के बावजूद यहां रह रहे घुसपैठियों के मन में क्यों नहीं है?

देखा जाये तो यह घुसपैठिये सिर्फ चुनावों के समय मुद्दा बनते हैं लेकिन उसके बाद सब लोग इसे तब तक भूल जाते हैं जब तक इनकी ओर से कोई अपराध नहीं किया जाता। हाल ही में जम्मू-कश्मीर में रोहिंग्या शरणार्थियों के खिलाफ पुलिस ने सघन अभियान छेड़ा था क्योंकि यह लोग कानून व्यवस्था के लिए मुसीबत बनते जा रहे हैं। हाल में संपन्न झारखंड विधानसभा चुनावों के दौरान भी बांग्लादेशी घुसपैठिये बड़ा मुद्दा बने थे। झारखंड विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि यदि राज्य में उनकी पार्टी सत्ता में आई तो वह आदिवासियों की जमीन को अवैध प्रवासियों को हस्तांतरित होने से रोकने के लिए कड़ा कानून लाएगी। यही नहीं, केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण झारखंड की डेमोग्राफी परिवर्तित हो रही है। उन्होंने कहा था कि संथाल परगना में आदिवासी आबादी 44% से घटकर 28% रह गई है। उन्होंने कहा कि बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण हिंदू आबादी भी प्रभावित हुई है। उन्होंने कहा था कि घुसपैठियों के आधार कार्ड और वोटर आईडी कार्ड बनाए जा रहे हैं यह देश के लिए बड़ा खतरा है। उन्होंने कहा कि आदिवासी बेटियों को भ्रम के जाल में फंसाकर उनसे शादी कर जमीनों पर कब्जा किया जा रहा है। कुछ समय पहले दिल्ली पुलिस ने भी बांग्लादेशियों की पहचान कर उन्हें वापस भेजने का अभियान शुरू किया था जिसको लेकर शहर में राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप भी देखने को मिले थे। पश्चिम बंगाल और असम में तो बांग्लादेशी घुसपैठियों की बड़ी तादाद बताई जाती है और यह वहां की राजनीति को प्रभावित करने की क्षमता भी रखते हैं इसलिए इनको बाहर निकालना मुश्किल होता जा रहा है।बहरहाल, यह बांग्लादेशी घुसपैठिये जिस तरह अपने आधार कार्ड या अन्य पहचान पत्र बनवा ले रहे हैं और सस्ते श्रमिक के तौर पर भारत के बड़े शहरों में रोजगार हासिल कर ले रहे हैं वह चिंताजनक बात है। सैफ अली खान प्रकरण को देखते हुए सभी सरकारी और निजी एजेंसियों को सतर्क रहना होगा।

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