एक दूसरे को देख लेंगे की चेतावनी देने वाले India-China क्यों लगा रहे हैं हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे

राष्ट्रीय जजमेंट

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) से जानना चाहा कि भारत-चीन के बीच तनावपूर्ण रिश्ते आखिरकार सामान्य होते दिख रहे हैं। पांच साल बाद मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात भी हो गयी। आखिर यह कैसे संभव हो पाया? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि इसके लिए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने जो प्रयास किये थे वह आखिरकार कामयाब हुए। उन्होंने कहा कि इसके अलावा यह भी देखने वाली बात है कि भारत ने आक्रामकता का जवाब आक्रामकता से दिया और चर्चा का जवाब चर्चा से दिया तथा जो धैर्य दिखाया वह भी काबिले तारीफ था।ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि हमें सेना प्रमुख की टिप्पणी पर भी गौर करना चाहिए जिन्होंने कहा है कि भारतीय सेना ‘‘विश्वास’’ बहाली के प्रयास कर रही है और इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए दोनों पक्षों को ‘‘एक दूसरे को आश्वस्त’’ करना होगा। उन्होंने कहा कि जहां तक हमारा सवाल है, हम अप्रैल 2020 की यथास्थिति की बहाली चाहते हैं। इसके बाद हम सैनिकों की वापसी, हालात को सामान्य बनाने और वास्तविक नियंत्रण रेखा के सामान्य प्रबंधन पर गौर करेंगे। उन्होंने कहा कि सेना प्रमुख ने बताया है कि एलएसी का यह सामान्य प्रबंधन वहीं खत्म नहीं होगा। उसमें भी कई चरण हैं। उन्होंने कहा कि सीमा गतिरोध पर चीन के साथ लगभग सभी वार्ताओं में भारत मई 2020 की शुरुआत में सीमा गतिरोध शुरू होने से पहले की यथास्थिति बहाल करने पर जोर देता रहा है।ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जून 2020 में गलवान घाटी में हुई भीषण झड़प के बाद भारत और चीन के संबंध निचले स्तर पर पहुंच गए थे। यह झड़प पिछले कुछ दशकों में दोनों पक्षों के बीच हुई सबसे भीषण सैन्य झड़प थी। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में सैन्य और कूटनीतिक वार्ताओं के बाद दोनों पक्ष टकराव वाले कई बिंदुओं से पीछे हट गए थे। हालांकि, देपसांग और डेमचोक संबंधी गतिरोध के समाधान में वार्ता में बाधाएं आईं। उन्होंने कहा कि अब देपसांग और डेमचोक क्षेत्रों में गश्त की सुविधा फिर शुरू होना एक बड़ी कामयाबी है।ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि मुझे लगता है कि यह एक अच्छा कदम है; यह एक सकारात्मक घटनाक्रम है और मैं कहूंगा कि यह बहुत ही संयमित और बहुत ही दृढ़ कूटनीति का नतीजा है। उन्होंने कहा कि आप पूरे घटनाक्रम को देखेंगे तो पाएंगे कि एक तरफ हमें स्पष्ट रूप से जवाबी तैनाती करनी थी, लेकिन साथ-साथ हम बातचीत भी करते रहे। सितंबर 2020 से बातचीत चल रही थी जोकि अब जाकर सफल हुई। उन्होंने कहा कि यह बहुत ही संयमित प्रक्रिया रही है और शायद यह ‘जितना हो सकती थी और होनी चाहिए थी, उससे कहीं अधिक जटिल थी। उन्होंने कहा कि भारत हमेशा कहता रहा है कि अगर आप शांति और स्थिरता में खलल डालते हैं, तो आप संबंधों के आगे बढ़ने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? उन्होंने कहा कि हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पिछले महीने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने रूसी शहर सेंट पीटर्सबर्ग में विवाद का जल्द समाधान तलाशने पर ध्यान केंद्रित करते हुए बातचीत की थी। ब्रिक्स देशों के एक सम्मेलन से इतर हुई बातचीत में दोनों पक्ष पूर्वी लद्दाख में टकराव वाले बाकी बिंदुओं से पूर्ण सैन्य वापसी के लिए “तत्काल” और “दोगुने” प्रयास करने पर सहमत हुए थे। उन्होंने कहा कि बैठक में डोभाल ने वांग से कहा था कि द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य करने के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति एवं स्थिरता और एलएसी का सम्मान आवश्यक है।ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि चीनी राष्ट्रपति के बयान को देखें तो उन्होंने भी भारत-चीन संबंधों को बेहतर बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से दिए गए सुझावों पर “सैद्धांतिक रूप से” सहमति व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि बैठक के दौरान जिनपिंग ने कहा कि चीन-भारत संबंध मूलतः इस बात को लेकर हैं कि 1.4 अरब की आबादी वाले दो बड़े विकासशील और पड़ोसी देश एक-दूसरे के साथ कैसा व्यवहार करते हैं। उन्होंने कहा कि शी ने कहा कि चीन और भारत को एक-दूसरे के प्रति ठोस रणनीतिक धारणा बनाए रखनी चाहिए तथा दोनों बड़े पड़ोसी देशों को सद्भावनापूर्ण तरीके से रहने और साथ-साथ विकास करने के लिए “सही और उज्ज्वल मार्ग” खोजने के वास्ते मिलकर काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि दोनों नेताओं ने इस बात पर सहमति जताई कि विशिष्ट असहमतियों से समग्र संबंधों पर असर नहीं पड़ेगा। दोनों नेताओं का मानना है कि उनकी मुलाकात रचनात्मक रही और इसका बहुत महत्व है।

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