अग्निपथ, किसान आंदोलन, नाराज जाट, सारे मुद्दों की खड़ी हो गई खाट, BJP के लिए कैसे ‘नायाब’ साबित हुए सैनी

राष्ट्रीय जजमेंट

अक्सर किसी भी टीम की जीत होती है तो उसका क्रेडिट वैसे तो सभी सदस्यों को जाता है, लेकिन उसके कप्तान को इसरा श्रेय थोड़ा ज्यादा दिया जाता है। वहीं हार के वक्त भी जिम्मेदारी कप्तान की ही होती है। हरियाणा के विधानसभा चुनाव में तमाम सर्वेक्षण से लेकर राजनीतिक पंडित तो कांग्रेस की जीत की कहानी लिख चुके थे। मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर भूपेंद्र हुड्डा, कुमारी शैलेजा और रणदीप सुरजेवाला के बीच जुबानी बयानबाजी भी शुरू हो गई थी। विश्लेषकों को लग रहा था कि हरियाणा में कांग्रेस जीत तो रही ही है, बस बीजेपी कितना नीचे जाती है और कांग्रेस अधिक से अधिक कितनी सीटें ला पाती है। तमाम विमर्श 60-65, 70-75 तक भी जा रहे थे। लेकिन तमाम अटकलों और अनुमानों से बेपरवाह एक शख्स खुद पर छह महीने पहले जताए गए भरोसे को सही साबित करने में लगा नजर आया। 8 अक्टूबर को जब नतीजे सामने आए तो सभी कोई हैरान रह गया। लेकिन बीजेपी की हरियाणा में मिली जीत कई मायने में नायाब है। राज्य में सत्ता की हैट्रिक लगाने में वो कामयाब रही। चुनाव से पहले सीएम फेस बदलने का फैक्टर एक बार फिर से हिट साबित हुआ। तीसरे दल के रूप में उभरने की और किंगमेकर बनने की आम आदमी पार्टी की उम्मीदों पर झाड़ू फिर गया। लोकसभा चुनाव के कुछ ही महीने बाद के पहले चुनावी परीक्षण से पहले ही नायब सिंह सैनी हर परिस्थिति यानी जीत हो या हार सभी की जिम्मेदारी लेनी के लिए तैयार नजर आए। 8 अक्टूबर की सुबह वोटों की गिनती शुरू होते ही इंडिया उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जीत की जिम्मेदारी पूरी पार्टी की है. साथ ही हार की स्थिति में पूरी जिम्मेदारी लेने को लेकर भी वह स्पष्ट थे। उनका ये रुख मजबूत नेतृत्व और जिम्मेदार राजनेता की छवि को दर्शाने के लिए काफी है। नायब सिंह सैनी ने कहा कि अगर हम हारते हैं, तो जिम्मेदारी मेरी है। आखिरकार, मैं इस अभियान का फेस हूं। लेकिन मुझे अपनी जीत पर पूरा भरोसा है। हालाँकि, सैनी अन्य बीजेपी नेताओं की भांति प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व की सराहना करने से नहीं चूंके। बल्कि मोदी के नेतृत्व तुलना धर्म (धार्मिक) और अधर्म (अधर्म) के बीच की लड़ाई-कुरुक्षेत्र की लड़ाई में पार्टी का मार्गदर्शन करने से कर दी। नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में भाजपा की जीत ने कई कारकों को खारिज कर दिया जो अन्यथा उनकी सफलता में बाधा बन सकते थे।नायब सिंह सैनी का मुख्यमंत्री पद पर आसीन होने की टाइमिंग भी काफी दिलचस्प रही। सीएम पद से इस्तीफे के बाद मनोहर लाल खट्टर ने केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्री का पद संभाला। वहीं सैनी को मार्च 2024 में नए मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त किया गया। यह परिवर्तन लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हुआ, एक ऐसा समय जो भाजपा के लिए अनिश्चितता से भरा हो सकता था। खट्टर पर्दे के पीछे रहकर सैनी का पूरा सहयोग करते नजर आए। सीएम पद को लेकर सैनी वैसे भी खट्टर की पहली पसंद थे। हरियाणा चुनाव के लिए बीजेपी उम्मीदवारों के चयन पर भी मनोहर लाल खट्टर की मुहर थी। चुनाव से कुछ महीने पहले सीएम के रूप में कमान संभालना सैनी के लिए चैलेंजिग था। सैनी और भाजपा कई मोर्चों पर दबाव में थी। कृषि प्रधान हरियाणा 2020-2021 के दौरान अब निरस्त कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध प्रदर्शन का गवाह रहा था। उस दौर में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और खट्टर के नेतृत्व वाली राज्य सरकार दोनों के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए थे। भाजपा को जवान और किसान दोनों मतदाताओं के गुस्से का सामना करना पड़ रहा था। अग्निपथ योजना को लेकर रक्षा और अर्धसैनिक बलों की नाराजगी भी नजर आ रही थी। एग्जिट पोल में कांग्रेस की जीत की भविष्यवाणी के बावजूद, सैनी पूरे अभियान के दौरान आश्वस्त रहे कि भाजपा हरियाणा में लगातार तीसरी बार सरकार बनाएगी। ज़मीन पर उनका नेतृत्व, पार्टी अभियानों में प्रमुख भूमिका और पार्टी के मजबूत संगठनात्मक ढांचे को सैनी की अपनी सीट लाडवा सहित कई प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा को आगे रहने में मदद करने का श्रेय दिया जाता है।सैनी द्वारा पर्याप्त जनसमर्थन हासिल करने में सफल रहने का एक प्रमुख कारण अपने 210 दिनों के छोटे कार्यकाल के दौरान विकास कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना था। सैनी ने लोगों के जीवन में सुधार लाने के उद्देश्य से कई पहल लागू कीं। उन्होंने ग्राम पंचायतों के लिए व्यय सीमा 5 लाख रुपये से बढ़ाकर 21 लाख रुपये कर दी, जिससे ये स्थानीय निकाय अधिक विकासात्मक परियोजनाएं शुरू करने में सक्षम हो गए। बीजेपी ने सत्ता विरोधी लहरे को संभालने में बड़ी कामयाबी हासिल की और यही वजह है कि पार्टी राज्य में बड़ी जीत हासिल की है। इनके अलावा, खर्ची और पर्ची के आरोपों ने भी बीजेपी की चुनाव जीतने में मदद की। कांग्रेस के सत्ता में लौटने पर वसूली का रैकेट फिर से शुरू होने के डर के सहारे पार्टी ने प्रभावी रूप से जनता को अपने पक्ष में किया।

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