CBI ने अपने हाथ में लिया किशोरी के अपहरण का मामला

राष्ट्रीय जजमेंट न्यूज

नई दिल्ली ।पश्चिम बंगाल के बर्धमान जिले में एक किशोरी के कथित अपहरण की जांच का जिम्मा केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने अपने हाथों में लिया है। इस मामले में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के पदाधिकारियों की भूमिका भी जांच के दायरे में है। अधिकारियों ने सोमवार को यह जानकारी दी।
किशोरी (14 वर्षीय) के माता-पिता ने कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल की है। जिसमें आरोप लगाया था कि उनकी बेटी नौ अगस्त 2023 की शाम छह बजे अपनी पढ़ाई के लिए घर से निकली थी। लेकिन वापस घर नहीं लौटी। केंद्रीय एजेंसी की यह कार्रवाई अदालत के निर्देशों पर शुरू की गई है।
याचिका में किशोरी के माता-पिता ने कहा है कि स्थानीय पुलिस जांच नहीं करना चाहती थी। बहुत आग्रह करने के बाद उसने एक मामला दर्ज किया। लेकिन इस मामले जांच को आगे नहीं बढ़ाया। अधिकारियों ने बताया कि उन्होंने उसी महीने 17 अगस्त को राज्य अपराध जांच विभाग (सीआईडी) की मानव तस्करी रोधी इकाई में प्राथमिकी दर्ज कराई थी। उन्होंने बताया कि उच्च न्यायालय ने इस साल आठ फरवरी को मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी थी।
इसके बाद उच्च न्यायालय ने लड़की के माता-पिता की ओर से लगाए गए आरोपों का हवाला देते हुए कहा था कि दो लोगों को गिरफ्तार किया गया है। लेकिन कानूनी अवधि के भीतर जांच पूरी नहीं की गई है। जिसके कारण सह-आरोपी को जमानत दी गई थी। इस बीच, बदमाश किशोरी के माता-पिता और परिवार के सदस्यों धमकी दे रहे थे।
‘माता-पिता पर मामले को निपटाने का दबाव डाला’
उच्च न्यायालय ने कहा, माता-पिता ने आरोप लगाया है कि बदमाशों का एक समूह उनके घर आया था। जहां पैसे से मामले को निपटाने का उन पर दबाव डाला गया। उन्होंने माता-पिता को यह भी बताया कि उनकी लड़की को बेच दिया गया है। उनकी ओर से यह भी आरोप लगाया गया था कि पुलिस ने जानबूझकर जांच में देरी की और विभिन्न राज्यों के सीमावर्ती इलाकों में कोई जानकारी नहीं भेजी।
अदालत ने कहा, उनकी ओर से यह कहा गया है कि जिन दो आरोपियों को सूचना के आधार पर गिरफ्तार किया गया है और जिन्हें वैधानिक जमानत दी गई है, वे सत्तारूढ़ व्यवस्था के राजनीतिक पदाधिकारी हैं और राजनीतिक रूप से कुछ ताकतवर लोगों के बहुत करीबी हैं।
राज्य पुलिस की जांच में स्पष्ट खामियां: उच्च न्यायालय
इस पर राज्य पुलिस ने कहा था कि उन्होंने लड़की की तस्वीर को अखबारों के जरिए प्रसारित की थी। गिरफ्तार किए गए और जमानत पर रिहा किए गए संदिग्धों की जांच की थी और उनकी गतिविधियों पर भी नजर रखी थी। इसके बाद उच्च न्याायलय ने कहा था कि राज्य पुलिस की जांच में खामियां स्पष्ट हैं।
जांच एजेंसियों को करना चाहिए था ये काम
न्यायमूर्ति जय सेन गुप्ता ने कहा था, जांच एजेंसी को मिले समय का इस्तेमाल मामले की आगे की जांच के लिए करना चाहिए था। उदाहरण के लिए पीड़िता की तस्वीरों को नजदीकी राज्यों को भेजना, गृहमंत्रालय को सूचित करना और इस संबंध में जरूरी मदद मांगना और यहां तक उचित चैनलों के जरिए पड़ोसी देश की कानून प्रवर्तन एजेंसियों से संपर्क करना चाहिए था।
उच्च न्यायालय ने सीबीआई को सौंपा था फैसला
अदालत ने कहा था कि वह जांच एजेंसी को यह नहीं बता सकती कि जांच कैसे की जाए। इसने कहा था कि पुलिस गिरफ्तार व्यक्तियों का नार्को-टेस्ट कराने का आग्रह कर सकती थी और उन लोगों से पूछताछ कर सकती थी, जिन्होंने परिवार को धमकी दी थी। उच्च न्यायालय ने कहा था, एक महीने के अंतराल में बच्ची का पता लगाने में स्थानीय पुलिस और सीआईडी की असमर्थता और इस तथ्य पर विचार करते हुए कि मामले की जांच के लिए अन्य राज्यों या देशों की मदद की आवश्यकता हो सकती है, मामले की जांच सीबीआई की स्थानांतरित की जाती है।

Comments are closed.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More