भारत में वायु प्रदूषण से इतनी जल्दी निजात नहीं, अमेरिकी वैज्ञानिक बोले- निपटने में दशकों लगेंगे

राष्ट्रीय जजमेंट न्यूज

नई दिल्ली ।एक वरिष्ठ अमेरिकी वैज्ञानिक रिचर्ड पेल्टियर का दावा है कि अमेरिका की तरह भारत में भी प्रदूषण की समस्या खत्म होने में 50-60 वर्ष लग सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के वैश्विक वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य तकनीकी सलाहकार समूह के सदस्य पेल्टियर ने कहा कि भारत में वायु की गुणवत्ता में सुधार के लिए दीर्घावधिक प्रयासों की जरूरत है।

स्मॉग टॉवर तथा क्लाउड सीडिंग जैसे खर्चीले तरीकों से इस समस्या का स्थायी समाधान संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि हर कोई यह बात जानता है कि पूरे भारत में वायु गुणवत्ता काफी खराब है, लेकिन पर्याप्त वायु प्रदूषण निगरानी केंद्रों के अभाव में सीमित वितरण के कारण सटीकता की कमी है। दिल्ली जैसे शहरों में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के सवाल पर उन्होंने अमेरिका में वायु प्रदूषण का उदाहरण देते हुए कहा कि अमेरिका ने 1960 के दशक में स्वच्छ वायु अधिनियम लागू किया था, जिसके बाद पिछले कुछ वर्षों में जाकर यहां वायु प्रदूषण की समस्या खत्म हुई है।

उनका कहना है कि जब अमेरिका को स्थायी वायु गुणवत्ता हासिल करने में 50 या 60 साल लग गए, तो भारत के लिए भी यह सफर छोटा होना बहुत संभव नहीं, क्योंकि यह कोई तात्कालिक समस्या नहीं है। इसे किसी एक नियम, कानूनी फैसले या सरकार के आदेश हल नहीं किया जा सकता। यह 100 मीटर की दौड़ से बल्कि एक मैराथन है।

वहीं, स्मॉग टॉवर और क्लाउड सीडिंग की भूमिका को लेकर उन्होंने कहा कि ये छोटे पैमाने पर काम करते हैं, लेकिन इनकी लागत और रखरखाव चुनौतियों के इनके जरिये पूरे शहर और देश की वायु गुणवत्ता को नहीं सुधारा जा सकता, स्थायी तौर पर तो कतई नहीं। उन्होंने कहा कि स्मॉग टॉवर असल में एक बड़ी नदी को नहाने के तौलिये से सुखाने की कोशिश करने जैसा है, जाहिर यह किया जाना संभव नहीं।

कृत्रिम बारिश को लेकर क्या बोले वैज्ञानिक
क्लाउड सीडिंग (कृत्रिम बारिश) को लेकर उन्होंने कहा कि यह भी आर्थिक रूप से व्यवहार्य और व्यापक रूप से उपयोगी नहीं है। क्योंकि, इसके लिए हर 100 मीटर के दायरे में बारिश कराने के लिए 24 घंटे हवाई जहाज उड़ाने होंगे। इसके अलावा कौन यह चाहेगा कि प्रदूषण खत्म करने के लिए हर रोज बारिश की जाए।

ग्रीनपीस इंडिया के मुताबिक देश की 99 फीसदी से ज्यादा आबादी पीएम2.5 पर डब्ल्यूएचओ के मानकों से खराब हवा में सांस लेती है। देश की 62 फीसदी गर्भवती महिलाएं और देश की 56 फीसदी आबादी सबसे प्रदूषित इलाकों में रहती है। पिछले अगस्त में शिकागो विश्वविद्यालय में ऊर्जा नीति संस्थान की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि सूक्ष्म कण वायु प्रदूषण (पीएम2.5) भारत में औसत जीवन प्रत्याशा को औसतन 5.3 साल और दिल्ली में 11 साल तक कम कर देता है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि दिल्ली व उत्तर भारत में वायु प्रदूषण एक मौसम संबंधी समस्या नहीं है, बल्कि इसे उत्सर्जन स्रोतों को नियंत्रित कर खत्म किया जा सकता है।

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