भारतीय बच्चों को डेंगू बुखार होने पर लापरवाही घातक, पहले ही वार में जान पर खतरा; जांच में सामने आई बात

राष्ट्रीय जजमेंट न्यूज

अक्सर कहा जाता है कि डेंगू का दोबारा संक्रमण होने पर मरीज की जान का जोखिम बढ़ सकता है। इसी धारणा के आधार पर अध्ययन और टीके की खोज की जा रही है लेकिन हाल ही में एक चिकित्सा अध्ययन में यह सामने आया है कि डेंगू का पहला वार हल्का नहीं होता। कई मरीज ऐसे भी होते हैं जिन्हें पहली बार डेंगू का संक्रमण होने पर गंभीर जोखिमों का सामना करना पड़ता है।नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), अंतरराष्ट्रीय जेनेटिक इंजीनियरिंग और जैव प्रौद्योगिकी केंद्र और बेंगलुरु के जॉन्स नेशनल एकेडमी ऑफ हेल्थ साइंसेज के शोधकर्ताओं ने अमेरिका के अटलांटा स्थित एमोरी स्कूल ऑफ मेडिसिन के साथ मिलकर भारतीय बच्चों में डेंगू संक्रमण पर अध्ययन किया है जिसे मेडिकल जर्नल नेचर मेडिसिन में प्रकाशित किया गया।शोधकर्ताओं ने बताया कि अलग अलग राज्यों के अस्पतालों में डेंगू की वजह से भर्ती कुल 619 बच्चों पर यह अध्ययन हुआ। अलग अलग तकनीकों के जरिए जब इन मामलों का विश्लेषण किया तो पाया कि डेंगू का पहला वार हल्का नहीं है। कुल 619 में से 344 बच्चे पहली बार डेंगू के कारण भर्ती हुए थे जिनमें 112 गंभीर थे। इनमें से सात की मौत हुई जिनमें पांच की मौत की वजह डेंगू का प्राथमिक संक्रमण था। दरअसल पूरी दुनिया में डेंगू संक्रमण के सबसे ज्यादा मामले भारत में सामने आ रहे हैं।दो तरह के होते हैं डेंगू मरीज भारत में आईसीजीईबी-एमोरी वैक्सीन कार्यक्रम की ग्रुप लीडर डॉ. अनमोल चंदेले ने बताया कि आमतौर पर डेंगू के मरीज दो तरह के होते हैं। पहले मरीज वह जिन्हें संक्रमण पहली बार होता है, उन्हें प्राथमिक संक्रमण कहा जाता है लेकिन दूसरे वह मरीज दोबारा डेंगू संक्रमित होते हैं और इसे द्वितीयक संक्रमण के रूप में जाना जाता है। वह आगे कहती हैं, हमारा अध्ययन वर्तमान में व्यापक रूप से प्रचलित धारणा पर सवाल उठाता है और दिखाता है कि प्राथमिक संक्रमण गंभीर बीमारी के मामलों और मौतों का एक बड़ा हिस्सा है।शोधकर्ताओं का कहना है कि यह अध्ययन दुनिया में सार्वजनिक स्वास्थ्य और डेंगू को नियंत्रित करने के लिए प्रभावी और सुरक्षित टीका रणनीतियों को विकसित करने के साथ साथ उन्हें लागू करने में बहुत अहम भूमिका निभा सकता है।

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