एमपी में आदिवासी वोटर किसके साथ? जिस पार्टी से बिफरे उसकी हुई हार!

राष्ट्रीय जजमेंट

मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव का मतदान 17 नवंबर को सपन्न होने के बाद अब दोनों प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस में अपनी संभावनाओं की समीक्षा की जा रही है। दोनों पार्टियों की सबसे ज्यादा नजर आदिवासी वोट बैंक पर है, क्योंकि इस वर्ग के लिए आरक्षित विधानसभा सीटों पर जिसने जीत हासिल की, उसके हाथ में सत्ता आई। 2018 में आदिवासी वोट बैंक छिटकने से भाजपा के हाथ से सत्ता चली गई थी। उस समय सभी 47 आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर मतदान प्रतिशत बढ़ा था, जिससे कांग्रेस 30 और भाजपा ने 16 सीटें जीती थी। एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी को विजय मिली थी। इस बार आरक्षित सीटों में सिर्फ 32 सीटों पर मतदान प्रतिशत बढ़ा है, जबकि 15 सीटों पर घट गया है। वहीं, 24 सीटों पर ही 80 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ है। आदिवासी वर्ग के लिए 47 सीटें आरक्षित अगर रिकॉर्ड पर गौर करें तो पिछले तीन चुनाव यही कहानी कह रहे हैं। प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से आदिवासी वर्ग के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं। इन सीटों की हार-जीत राज्य की सियासत में हमेशा बड़ा बदलाव लेकर आती रही है। रिकॉर्ड है कि जिस भी राजनीतिक दल को इन सीटों में से ज्यादा पर जीत हासिल हुई, उसके हाथ सत्ता की बागडोर आई। इतना ही नहीं लगभग हर चुनाव में यहां मतदाताओं का रूख भी बदलता नजर आता है। इस बार फिर वही क्रम दोहराए जाने की उम्मीद राजनीतिक दल लगा रहे हैं। इस पार्टी को इस साल मिलीं इतनी सीटें राज्य की इन 47 सीटों की समीक्षा की जाए तो एक बात साफ हो जाती है कि वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में इन सीटों में से 30 पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। वर्ष 2013 के चुनाव में भाजपा के हाथ में 31 सीटें आई थी। इतना ही नहीं वर्ष 2008 के चुनाव में भाजपा 29 सीटें हासिल करने में सफल रही थी। यही कारण था कि ज्यादा सीटें पाने वाली पार्टी की प्रदेश में सरकार बनी। इस तरह राज्य की आदिवासी सीटें, जिस राजनीतिक दल के हिस्से में गई, उसके हाथ में सत्ता रही। यही कारण है कि इस बार भी दोनों राजनीतिक दल दावा कर रहे हैं कि आदिवासी सीटों पर उनके हिस्से में जीत आएगी। इसके पीछे उनके अपने तर्क भी हैं और वह इस वर्ग के कल्याण के लिए किए गए काम और उठाए गए कदमों का हवाला दे रहे हैं। तीसरा विकल्प भी लगा रहा जोर वहीं, राज्य की दो ध्रुवीय राजनीति में ‘तीसरा विकल्प’ बनने के प्रयासों में भी कई पार्टियां जोर आजमाइश कर रही हैं। खासकर, यूपी की बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के नेता अपने लिए अवसर तलाश रहे हैं। इस बार के विधानसभा चुनाव अकेले बहुजन समाज पार्टी करीब 25 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस, दोनों का ही खेल बिगाड़ती दिख रही है। समाजवादी पार्टी सहित ‘इंडिया’ गठबंधन के कुछ घटक दलों में भी अपनी छाप छोड़ने की छटपटाहट है जो उनका अपना ही नुकसान करती दिख रही है।

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