परदेशी परिंदों से गुलजार हुआ विजय सागर पक्षीबिहार

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RJ न्यूज़

काजि आमिल कि विशेष रिपोर्ट महोबा 1 दिसम्बर। चंदेल शासन काल में वीर आल्हा-ऊदल नगरी महोबा में बनाये गये विशाल सरोवरों में परदेशी परिंदो की अठखेलियां शुरू हो गयी है। सर्द मौसम हजारों मील की उड़ान भरकर आयें इन पंछियों ने अपना डेरा जमा लिया है।

ऐसे में तालाबों का नजारा देखते ही बन रहा है, अब पूरे तीन माह तक यह परिंदे यहां प्रवास करेंगें।
सैकड़ों सालों से यह परदेशी परिंदे करीब 8 हजार किलो मीटर से सफर तय कर यहां पहुंचते है, प्रत्येक वर्ष हजारों की तादाद में प्रवासी पक्षी यहां आते है, यहां करीब तीन माह तक रहने वाले यह परिंदें अपनी नशलों को भी बढ़ाते है,

वह यहां रुक कर प्रजजन काल में घोंसले भी तैयार करते है, विजय सागर पक्षी बिहार में इस बार विदेश मेहमान पक्षियों में दस्तक दे दी है।
यह है पक्षी
महोबा। सारस कैरन, स्पूनबिल, पर्पिलमूरहेल, पिनटेल, सारबर, कूट, सुरखाब, विजनस्कोबडक, कामनरीर, ग्रेलेजगूल, रोजीपिलकैन, व व्हाईट स्टार्क, आदि विदेशी पक्षी ज्यादा दिखाई दे रहे है।

महोबा की सुंदरता में चार चांद लगाते है तालाब
वीर आल्हा ऊदल की नगरी महोबा में महोबा की सौंदर्य में चार चांद यहां के तालाब लगाते है। महोबा जिले में मानसून का सदियों से अभाव रहा है, यहां पर वर्षा केवल 95 से0मीटर होती है ऐसे में चंदेल शासन काल के दौरान जनहित को सर्रोपरी रखकर जलाशयों के निर्माण को बरीता दी और कालांतर में अपने और परिजनों के नाम पर सरोवरों के निर्माण की एक परमपरा ही चल पड़ी। इन जलाशयों के मध्य या उनके तटपर सुंदर स्मारको का निर्माण कर उनकी कीर्ति को चिरस्थाई बनाने का प्रयास किया गया।

रहलिया सागर, चंदेलकाल के दौरान रहलिया सागर सबसे पहले अस्तित्व में आया। जिसका निर्माण चंदेल वंश के पांचवे शासक राहेल देववर्मन ने कराया। यहां कमल पुष्पों पर मंडराने भौंरे और विदेशी पक्षियों का कलरव देखते ही बनता है। इसके अलावा विजय सागर पक्षी बिहार, कल्याण सागर, मदन सागर, कीरत सागर जैसे विशाल सरोवरों में भी परदेशी परदें अटखेलियां कर रहे है।

8 हजार किलो मीटर दूरी तय करते है परिंदे
महोबा । जो पक्षी यहां आकर सर्दिया गुजारते है वे उत्तरीय ऐसिया, रूस, कजाकिस्तान, व पूर्वीसाइबएरिया के है। ये 2 हजार से 8 हजार किलो मीटर की दूरी तय कर यहां आते है। जानकार बताते है कि शीत ऋतु यानी ठण्ड के मौसम में प्रवासी पक्षियों के यहां बर्फ जम जाती है

और ऐसी कपकपा देने वाली ठण्ड के कारण इन पंक्षियों का अहार बनने वाले जीव या तो मर जाते है या फिर जमीन में दुबक कर शीत निद्रा में चले जाते है। जिससे वह सर्दी समाप्त होने के बाद ही जागते है, ऐसी स्थिति में इन पंक्षियों के लिये अहार ढूढंना और जिंदा रहना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में वह भारत जैसे गर्म देश के सबसे ज्यादा गर्म इलाकों में सुमार होने वाले बुंदेलखण्ड क्षेत्र में चले जाते है जहां बर्फ नहीं जमती और उन्हें आसानी से अहार मिलता है।

इनका कहना
महोबा । शीत ऋतु में यहां प्रवासी पक्षियों के आने से मनमोहक दृश्य बन जाता है, विजय सागर पक्षी बिहार में आम तौर पर साईबेरियनक्रेन, ग्रेटर, फ्लेमिंगो, रफ, ब्लैकविण्ड, टील और ग्रीनसेंक, जैसे मेहमान पक्षियों को यहां देखा जा सकता है।

पक्षी बिहार के कुछ खास तत्व
-विजय सागर तालाब को चंदेल राजा विजयपाल चंदेल ने 11वीं शताब्दी में बनाया था
-विजय सागर सरोवर को विजय सागर पक्षी विहार सन्1990 में बनाया गया था। तभी से ये एक पक्षी विहार ओर टुरिस्ट प्लेस के रूप में विकसित हुआ।

– इसका मुख्यालय मिर्जापुर में है जिसकों वाइल्ड स्टीटूट कैमूर देखता है
– मण्डल स्तर पर इसकी देख रेख वाइल्ड लाइफ वार्डन रानीपुर कर्वी द्वारा की जाती है।
-ये उत्तर प्रदेश में मौजूद 25 वाइल्ड लाइफ सेंंचुरी में से एक है इस का एरिया 262.20 हे0 है जिसमें पार्क, तालाब और वो जगह है जहां पक्षी घूमते है।

राष्ट्रीय जजमेंट के लिए महोबा से काजी आमिल की रिपोर्ट

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