सिंधी समाज की पुरानी परंपराएं आज भी जीवित है
आज भी पुरानी परंपराओं के साथ पूरे देश में सिंधी समाज दीपावली का त्यौहार गणेश लक्ष्मी की पूजा अर्चना के अलावा परिवार व समाज के साथ सामूहिक पूजन और पुराने व्यंजनों को बनाकर मनाता है त्यौहार के अवसर पर गुड़ व चीनी से तिल, मूंगफली, लईया और चने की स्वादिष्ट मिठाइयां जिसे पट्टीया व लैय्या के लड्डू जिसे भोरिन्डा कहते हैं घर की महिलाएं बड़े उत्साह के साथ बनाती हैं |
इन व्यंजनों में प्रसाद वाली शुद्धता रखी जाती है सिंधी काउंसिल आफ यूथ इंडिया के राष्ट्रीय महासचिव वीरेंद्र खत्री ने बताया कि दीपावली के दिन घरों में गणेश लक्ष्मी पूजन के साथ साथ परिवार के सभी छोटे-बड़े सदस्य मिलकर रात्रि भोजन के उपरांत पुरानी परंपराओं के साथ दीवाल पर बने दीपावली के प्रतीक चिन्ह की पूजा अर्चना दूध,मिष्ठान व चांदी और पीतल के सिक्कों व घर की महिलाओं द्वारा बनाए गए मिट्टी के पांच दीयों को जलाकर की जाती है|
सिंधी समाज में इस पूजा का विशेष महत्व होता है उत्तर प्रदेश सिंधी युवा समाज के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश ओमी ने कहा कि 1947 के विभाजन के बाद सिंध प्रदेश से आए सिंधी समाज के लोग आज भी पुरानी परंपराओं को जिंदा रखे हुए हैं दीपावली के मौके पर समाज के लोग करबी के वृक्ष की डंडी में सरसों के तेल से भिगा हुआ कपड़ा लपेटकर (जिसे ढांड कहते हैं)उसे जलाकर अपने घरों से निकलकर सार्वजनिक स्थल पर सात फेरे लगाकर विसर्जन कर परिवार, समाज देश मे अमन चैन व तरक्की उन्नति और भाईचारा बना रहे के लिए अरदास करते हैं दीपावली के दूसरे दिन परिवार के सभी सदस्य अपने घरों में बल देवता की पूजा अर्चना करते हैं |