सीतापुर : अन्नपूर्णा साहित्य संगम परिवार की साप्ताहिक काव्यगोष्ठी

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सीतापुर।अन्नपूर्णा साहित्य संगम परिवार की साप्ताहिक काव्य गोष्ठी ने इस रविवार 406 सप्ताह पूर्ण किये। जिसका आयोजन शहर के जेल रोड स्थित संगीत महाविद्यालय परिसर में किया गय। गोष्ठी की अध्यक्षता महफूज रहमानी ने की व
के संचालन में काव्य गोष्ठी का प्रारंभ अजय विकल जी की वाणी वन्दना के साथ आरम्भ हुआ।
गोष्ठी में कवि व शायरगणों ने अपनी कविताओं में के माध्यम से सुंदर-सुंदर रचनाओं को सम्मिलित करते हुए काव्य पाठ किया।
सुबह दोपहर शाम ढले बस रात अभी ही बाकी है,
तीन पहर तो बीत गए बस एक बार ही बाकी है।
महफूज रहमानी-
घर से बाहर नहीं जो निकला,
वो कहता अमरीका देखा।
मंज़र यासीन-,
गुलशन का वह दरख़्त जो पत्थर की ज़द में था,
हम तो उसी की शाख पे फ़ल ढूंढते रहे।
अजय श्रीवास्तव विकल
समय लौटकर फिर ना आए,
पल छिन अवसर भी छिन जाए।
वसी खैराबादी,
औलादे बुजुर्गों की अब कद्र नहीं करतीं,
तहजीब ये कैसी है कैसा जमाना है।
ए पी गौतम,
लोग भूखे मरे पर न कोई असर,
ठंड तंदूर में पक रही रोटियां।
संचालन कर रहे हैं यासीन इब्ने ऊमर ने कोरोना पर शानदार व्यंग करते हुए काव्यपाठ में सुनाया-
भूल गए हम खेल खिलौना,
नास तेरी हो जाए करोना।
शैलेन्द्री तिवारी-
तोड़ देगा मेहनतों से अच्छे, अच्छों का ग़रूर,
वक़्त अपना भी एक ज़माने में आएगा ज़रूर।
राजकुमार श्रीवास्तव,
यदि राज द्रोह के नारों से आन्दोलन नहीं जवानी है।
रौनक सीतापुरी,
दीप ऐसे जले रौनक जग उजियारा हो,
दीप में भी खुद का प्रकाश होना चाहिए।
इनके अतिरिक्त के० पी० मिश्रा, रियाजुद्दीन, जी० एल० गांधी, शिव प्रताप सिंह चौहान, विजय प्रकाश कंठ, अरुण श्रीवास्तव, सुधांशु त्रिवेदी आदि ने भी काव्य पाठ व विकास सेठ ने अपने विचार व्यक्त किये।
संस्थान अध्यक्ष अनिल द्विवेदी ने अपने संबोधन में राष्ट्रीय एकता और अखंडता की बात करते हुए भिन्नता में एकता का संदेश दिया। जिससे हम आगे चलकर भाई चारे के साथ प्रेम पूर्वक रह सकते हैं।
इस दौरान चन्द्र किशोर, प्रगति बाजपेयी, डायमंड गफ़ूर व अन्य सदस्यगण उपस्थित रहे।
सीतापुर ब्यूरो सर्बजीत सिंह की रिपोर्ट

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