हत्या के केस में आजीवन सजा काट रहा युवक 38 साल बाद खुद को नाबालिग सिद्ध कर पाया
हत्या जैसे संगीन अपराध में उम्रकैद की सजा भोग रहे शख्स को खुद को नाबालिग साबित करने में पूरे 38 साल लग गए। आरोपी कानपुर के रामविजय सिंह की फरियाद पर निचली अदालतों से लेकर हाईकोर्ट तक सुनवाई नहीं हुई तो उसने सुप्रीमकोर्ट से गुहार लगाई। सर्वोच्च अदालत के निर्देश पर बैठी हाईकोर्ट की स्पेशल बेंच ने मेडिकल साक्ष्यों के आधार पर आरोपी को घटना के वक्त नाबालिग पाया। हालांकि रामविजय को सुनाई गई सजा के खिलाफ अपील पर अब फैसला सुप्रीमकोर्ट में ही होगा। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति पंकज नकवी और न्यायमूर्ति राजीव मिश्रा की पीठ ने की।
रामविजय को लखन सिंह और शिवविजय सिंह के साथ 20 जुलाई 1982 में हुई हत्या की घटना में आरोपी बनाया गया। मुकदमे के विचारण के बाद तीन सितंबर 1983 को सेशन कोर्ट कानपुर ने उसे व अन्य अभियुक्तों को उम्रकैद की सजा सुनाई। इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में सात सितंबर 1983 को अपील दाखिल हुई जिस पर हाईकोर्ट ने याची को जमानत पर रिहा कर दिया।
इसके करीब 32 साल बाद 28 अक्तूबर 2015 को याची रामविजय ने हाईकोर्ट में यह कहते अर्जी दाखिल की कि घटना के दिन उसकी उम्र 13 साल के करीब थी और वह नाबालिग था। उसकी अर्जी लंबित रही और हाईकोर्ट ने 22 अप्रैल 2020 को अपील खारिज करते हुए सेशन कोर्ट के निर्णय को सही करार दिया। हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ याची ने सुप्रीमकोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की। जिस पर सुप्रीमकोर्ट ने हाईकोर्ट को याची के आयु निर्धारण को लेकर दाखिल अर्जी पर सुनवाई कर निस्तारित करने का निर्देश दिया।