आज का पंचांग 24 अगस्त 2020

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*********|| जय श्री राधे ||*********
?? *महर्षि पाराशर पंचांग* ??
??? *अथ  पंचांगम्* ???
*********ll जय श्री राधे ll*********
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*दिनाँक -: 24/08/2020,सोमवार*
षष्ठी, शुक्ल पक्ष
भाद्रपद
“””””””””””””””””””””””””””””””””””””(समाप्ति काल)
तिथि ————षष्ठी 14:30:35       तक
पक्ष —————————-शुक्ल
नक्षत्र ———-स्वाति 15:19:15
योग ————–ब्रह्म 24:27:54
करण ———–तैतुल 14:30:35
करण ————–गर 25:22:42
वार ————————-सोमवार
माह ————————-भाद्रपद
चन्द्र राशि    ——————–तुला
सूर्य राशि ———————- सिंह
रितु —————————–वर्षा
आयन ——————दक्षिणायण
संवत्सर ———————–शार्वरी
संवत्सर (उत्तर) ————प्रमादी
विक्रम संवत —————-2077
विक्रम संवत (कर्तक)——2076
शाका संवत —————-1942
वृन्दावन
सूर्योदय —————-05:55:34
सूर्यास्त —————–18:46:55
दिन काल ————–12:51:20
रात्री काल ————-11:09:08
चंद्रोदय —————-11:14:16
चंद्रास्त —————–22:42:38
लग्न —-सिंह 7°10′ , 127°10′
सूर्य नक्षत्र ———————मघा
चन्द्र नक्षत्र ——————-स्वाति
नक्षत्र पाया ——————–रजत
*???  पद, चरण  ???*
रो —-स्वाति 09:43:35
ता —-स्वाति 15:19:15
ती —-विशाखा 20:56:27
तू —-विशाखा 26:35:14
*???  ग्रह गोचर  ???*
        ग्रह =राशी   , अंश  ,नक्षत्र,  पद
========================
सूर्य=सिंह 07°22 ‘    मघा    ,      3  मू
चन्द्र = तुला 17°23 ‘   स्वाति’     3    रो
बुध = सिंह 13°57 ‘ पू oफा o ‘   1    मो
शुक्र= मिथुन 21°55, पुनर्वसु  ‘     1  के
मंगल=मेष  02°30’      अश्विनी ‘ 1    चु
गुरु=धनु  24°22 ‘   पू oषा o ,    4   ढा
शनि=मकर 04°43’ उ oषा o   ‘ 3   जा
राहू=मिथुन 01°40  ‘  मृगशिरा ,   3  का
केतु=धनु  01 ° 40 ‘       मूल    , 1    ये
*???शुभा$शुभ मुहूर्त???*
राहू काल 07:32 – 09:08 अशुभ
यम घंटा  10:45 – 12:21 अशुभ
गुली काल 13:58 – 15:34   अशुभ
अभिजित 11:56 -12:47 शुभ
दूर मुहूर्त 12:47 – 13:38 अशुभ
दूर मुहूर्त 15:21 – 16:13 अशुभ
?चोघडिया, दिन
अमृत 05:56 – 07:32 शुभ
काल 07:32 – 09:08 अशुभ
शुभ 09:08 – 10:45 शुभ
रोग 10:45 – 12:21 अशुभ
उद्वेग 12:21 – 13:58 अशुभ
चर 13:58 – 15:34 शुभ
लाभ 15:34 – 17:10 शुभ
अमृत 17:10 – 18:47 शुभ
?चोघडिया, रात
चर 18:47 – 20:11 शुभ
रोग 20:11 – 21:34 अशुभ
काल  21:34 – 22:58 अशुभ
लाभ 22:58 – 24:21* शुभ
उद्वेग 24:21* – 25:45* अशुभ
शुभ 25:45* – 27:09* शुभ
अमृत 27:09* – 28:32* शुभ
चर 28:32* – 29:56* शुभ
?होरा, दिन
चन्द्र 05:56 – 06:59
शनि 06:59 – 08:04
बृहस्पति 08:04 – 09:08
मंगल 09:08 – 10:13
सूर्य 10:13 – 11:17
शुक्र 11:17 – 12:21
बुध 12:21 – 13:26
चन्द्र 13:26 – 14:30
शनि 14:30 – 15:34
बृहस्पति 15:34 – 16:38
मंगल  16:38 – 17:43
सूर्य 17:43 – 18:47
?होरा, रात
शुक्र 18:47 – 19:43
बुध 19:43 – 20:38
चन्द्र 20:38 – 21:34
शनि 21:34 – 22:30
बृहस्पति 22:30 – 23:26
मंगल 23:26 – 24:21
सूर्य 24:21* – 25:17
शुक्र 25:17* – 26:13
बुध 26:13* – 27:09
चन्द्र 27:09* – 28:05
शनि 28:05* – 29:00
बृहस्पति 29:00* – 29:56
*नोट*– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है।
प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥
रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार ।
अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥
अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें ।
उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें ।
लाभ में व्यापार करें ।
रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें ।
काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है ।
अमृत में सभी शुभ कार्य करें ।
*?दिशा शूल ज्ञान————-पूर्व*
परिहार-: आवश्यकतानुसार यदि यात्रा करनी हो तो घी अथवा  काजू खाके यात्रा कर सकते है l
इस मंत्र का उच्चारण करें-:
*शीघ्र गौतम गच्छत्वं ग्रामेषु नगरेषु च l*
*भोजनं वसनं यानं मार्गं मे परिकल्पय: ll*
*?  अग्नि वास ज्ञान  -:*
*यात्रा विवाह व्रत गोचरेषु,*
*चोलोपनिताद्यखिलव्रतेषु ।*
*दुर्गाविधानेषु सुत प्रसूतौ,*
*नैवाग्नि चक्रं परिचिन्तनियं ।।* *महारुद्र व्रतेSमायां ग्रसतेन्द्वर्कास्त राहुणाम्*
*नित्यनैमित्यके कार्ये अग्निचक्रं न दर्शायेत् ।।*
6 + 2 + 1 =  9 ÷ 4 = 1 शेष
पाताल लोक पर अग्नि वास हवन के लिए अशुभ कारक है l
*?    शिव वास एवं फल -:*
    6 + 6 + 5 = 17 ÷ 7 = 3 शेष
वृषभारूढ़  = शुभ कारक
*?भद्रा वास एवं फल -:*
*स्वर्गे भद्रा धनं धान्यं ,पाताले च धनागम:।*
*मृत्युलोके यदा भद्रा सर्वकार्य विनाशिनी।।*
*??    विशेष जानकारी   ??*
* सूर्य ,चांपा षष्ठी कार्तिकस्वामी दर्शन
* मंथन षष्ठी
* बलराम जयन्ती
* छट मेला धौलपुर राज०
* उमामहेश्वर पूजन
*???   शुभ विचार   ???*
अलिरयं नलिनीदलमध्यगः
कमलिनीमकरन्दमदालसः ।
विधिवशात्परदेशमुपागतः
कुटजपुष्परसं बहु मन्यते ।।
।।चा o नी o।।
   यह मधु मक्खी जो कमल की नाजुक पंखडियो में बैठकर उसके मीठे मधु का पान करती थी, वह अब एक सामान्य कुटज के फूल पर अपना ताव मारती है. क्यों की वह ऐसे देश में आ गयी है जहा कमल है ही नहीं, उसे कुटज के पराग ही अच्छे लगते है.
*???  सुभाषितानि  ???*
गीता -: राजविद्याराजगुह्ययोग अo-09
येऽप्यन्यदेवता भक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विताः ।,
तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम्‌ ॥,
हे अर्जुन! यद्यपि श्रद्धा से युक्त जो सकाम भक्त दूसरे देवताओं को पूजते हैं, वे भी मुझको ही पूजते हैं, किंतु उनका वह पूजन अविधिपूर्वक अर्थात्‌ अज्ञानपूर्वक है॥,23॥,

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