मप्र भाजपा का चुनाव अभियान आईसीयू में?नेता मोदी मैजिक के सहारे

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चूंकि मध्यप्रदेश में 27 विधानसभा सीट के लिये उप चुनाव होने हैं, जो सितंबर में लंबित हैं, लेकिन कोरना के मद्देनजर ये टलते नजर आ रहे हैं। वजह भी कोरोना ही रहेगा। संभवत प्रदेश भाजपा आलाकमान ने इस मंशा को भांप लिया है, जिसका असर उसकी सक्रियता पर दिख रहा है। उसके अपने तीन प्रमुख नेता भी कोरोना की चपेट में आकर आराम फरमा रहे हैं तो सारी बटालियन भी जैसे कंबल ओढ़ कर सोने चली गई।
तो क्या यह मान लिया जाये कि सितंबर में उप चुनाव नहीं हो रहे हैं? तब भी बड़ा सवाल यह रहेगा कि मंत्री पद की शपथ लेने वाले 14 गैर विधायकों को छह माह पूरे होने तक उप चुनाव न होने की स्थिति में बरकरार रखने के लिये शिवराज सरकार कैसे पेश आयेगी?
मप्र भाजपा के तीनों प्रमुख नेता मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा और संगठन महामंत्री सुहास भगत कोरोना संक्रमित हो चुके हैं। यूं शिवराज तो उबर कर घर लौट आये हैं, लेकिन घर बंदी के चलते उनकी सक्रियता भी फाइलें निपटाने तक सीमित है। ये स्थिति बताती है कि भाजपा हाल-फिलहाल मोर्चा संभालने की तैयारी में नहीं है। वैसे जल्दी तो चुनाव आयोग को भी नहीं है।
वह भी कोरोना के संभावित असर को परख रहा होगा, ताकि इस बारे में फैसला ले सके। जिस तरह से तालाबंदी खुलने के बाद संक्रमण बढ़ रहा है और हर वर्ग पर असका असर हो रहा है तो चुनाव आयोग की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने पर अंगुली उठने का मौका न दे।
चुनाव की घोषणा होने पर यह स्वाभाविक है कि लोगों का जमावड़ा भी शुरू हो जायेगा। सभायें होंगी, जन संपर्क चलेगा, जिसमें नेताओं का आना-जाना लगा रहेगा तो चुनावी सभाओं के साथ चौराहे-चौपाटियों पर चर्चा के लिये भीड़ जुटना शुरू हो जायेगी। साथ ही मतदान के लिये कर्मचारियों की तैनाती,मतदान के लिये कतार को नियंत्रित करना भी डेढ़ी खीर हो सकता है।
ऐसे में संक्रमण बढऩे का अंदेशा रहेगा ही। इसका दोषारोपण चुनाव आयोग व राजनीतिक दलों पर ही आयेगा। ऐसे में बेहतर यह होगा कि इसे न्यूनतम तीन माह के लिये टाल दिया जाये। याने दिसंबर से पहले तो संभव नहीं अक्टूबर में नवरात्रि और दशहरा है तो नवंबर में दिवाली रहेगी। इसके 11 दिन बाद देव उठनी एकादशी पर शादियां भी शुरू हो जायेंगी.
इसलिये तब के माहौल का अवलोकन कर ही चुनाव आयोग कोई फैसला करेगा। चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के साथ सरकारी गतिविधियां ठप पड़ जाती हैं, घोषणायें रुक जाती हैं, धन जारी करना बंद हो जाता है और तबादलों पर भी रोक लग जाती है। इसके मद्देनजर भी चुनाव आयोग पूरी तरह चाक चौबंद हो जाने के बाद ही फैसला लेगा। यह तभी हो पायेगा जब राज्य और देश के भी हालात सामान्य हो जायें।
इन सारी परिस्थितियों को देखकर ही प्रदेश का भाजपा नेतृत्व आराम के मूड में आ गया है। इसकी मजबूरी तो है ही, लेकिन चुनाव माथे पर होते तो गैर संक्रमित नेताओं की टोली को मैदान पकडऩा ही पड़ता। यूं भी भाजपा के काम करने की शैली कांग्रेस से बेहद भिन्न है। वह कार्यकर्ताओं को जिस तरह से सक्रिय करती है, घर-घर जन संपर्क का अभियान चलाती है, नेताओं के दौरे निर्धारित करती है, उसकी समुचित व्यूह रचना करती है, वह क्रमबद्ध तरीके से होता है, जिसका अभ्यास कांग्रेस को नहीं है और वह करना भी नहीं चाहती।
कहने को कांग्रेस के प्रमुख नेता हाल-फिलहाल कोरोना के संक्रमण से मुक्त है, लेकिन चुनाव के मद्देनजर जब वे भी मैदान पकड़ेंगे तो चपेट मेें आने की आशंका बढ़ेगी ही । उप चुनाव टलने की स्थिति में सरकार की मशक्कत बढऩे ही वाली है। कांग्रेस से आये जिन 14 सदस्यों को मंत्री बनाया गया है,उन्हें नियमानुसार 6 महीने के अंदर चुनाव जीतना जरूरी है,
अन्यथा उन्हें मंत्री पद छोडऩा पड़ेगा। सरकार के पास उसका रास्ता तो है, किंतु वह आलोचना से मुक्त नहीं होगा। वह यह कि इन 16 सदस्यों से इस्तीफा लेकर एकाध दिन बाद फिर से मंत्री पद की शपथ दिलाई जा सकती तब यह भी हो सकता है कि शिवराजसिंह चौहान कांग्रेस से आये कुछ सदस्यों को बाहर ही रखकर भाजपा के कुछ वरिष्ठ दावेदारों को शरीक कर लें जो 2 जुलाई के विस्तार में वंचित रह गये थे और उस वजह से वे और उनके समर्थक नाराज चल रहे हैं। देखना दिलचस्प होगा कि शिवराज सरकार इस मसले से कैसे निपटती है?

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