आज का पंचांग 30 जुलाई 2020

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*********|| जय श्री राधे ||*********
?? *महर्षि पाराशर पंचांग* ??
??? *अथ पंचांगम्* ???
*********ll जय श्री राधे ll*********
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*दिनाँक -: 30/07/2020,गुरुवार*
एकादशी, शुक्ल पक्ष
श्रावण
“”””””””””””””””””””””‘””””””””””””””(समाप्ति काल)
तिथि ——-एकादशी 23:49:24 तक
पक्ष —————————शुक्ल
नक्षत्र ——-अनुराधा 07:39:28
योग ————-ब्रह्म 13:14:29
करण ——–वणिज 12:30:18
करण ——विष्टि भद्र 23:49:24
वार ————————-गुरूवार
माह —————————श्रावण
चन्द्र राशि —————— वृश्चिक
सूर्य राशि ——————–कर्क
रितु —————————–वर्षा
आयन ——————दक्षिणायण
संवत्सर ——————— शार्वरी
संवत्सर (उत्तर) ————प्रमादी
विक्रम संवत —————-2077
विक्रम संवत (कर्तक) —-2076
शाका संवत —————-1942
वृन्दावन
सूर्योदय —————-05:42:46
सूर्यास्त —————–19:08:09
दिन काल ————–13:25:23
रात्री काल ————-10:35:08
चंद्रोदय —————-15:29:11
चंद्रास्त —————–26:16:14
लग्न —-कर्क 13°10′ , 103°10′
सूर्य नक्षत्र ——————–पुष्य
चन्द्र नक्षत्र —————-अनुराधा
नक्षत्र पाया ——————–रजत
*??? पद, चरण ???*
ने —-अनुराधा 07:39:28
नो —-ज्येष्ठा 13:28:56
या —-ज्येष्ठा 19:19:30
यी —-ज्येष्ठा 25:11:11
*??? ग्रह गोचर ???*
ग्रह =राशी , अंश ,नक्षत्र, पद
========================
सूर्य=कर्क 13°22 ‘ पुष्य, 3 हो
चन्द्र = वृश्चिक 15°23 ‘अनुराधा’ 4 ने
बुध = मिथुन 25 °57 ‘ पुनर्वसु ‘ 2 को
शुक्र= वृषभ 28°55, मृगशिरा ‘ 2 वो
मंगल=मीन 22°30’ रेवती ‘ 2 दो
गुरु=धनु 26°22 ‘ पू oषा o , 4 ढा
शनि=मकर 04°43’ उ oषा o ‘ 3 जा
राहू=मिथुन 03°01 ‘ मृगशिरा , 4 की
केतु=धनु 03 ° 01 ‘ मूल , 2 यो
*???शुभा$शुभ मुहूर्त???*
राहू काल 14:06 – 15:47 अशुभ
यम घंटा 05:43 – 07:23 अशुभ
गुली काल 09:04 – 10:45 अशुभ
अभिजित 11:59 -12:52 शुभ
दूर मुहूर्त 10:11 – 11:05 अशुभ
दूर मुहूर्त 15:33 – 16:27 अशुभ
?गंड मूल 07:39 – अहोरात्र अशुभ
?चोघडिया, दिन
शुभ 05:43 – 07:23 शुभ
रोग 07:23 – 09:04 अशुभ
उद्वेग 09:04 – 10:45 अशुभ
चर 10:45 – 12:25 शुभ
लाभ 12:25 – 14:06 शुभ
अमृत 14:06 – 15:47 शुभ
काल 15:47 – 17:27 अशुभ
शुभ 17:27 – 19:08 शुभ
?चोघडिया, रात
अमृत 19:08 – 20:28 शुभ
चर 20:28 – 21:47 शुभ
रोग 21:47 – 23:06 अशुभ
काल 23:06 – 24:26* अशुभ
लाभ 24:26* – 25:45* शुभ
उद्वेग 25:45* – 27:05* अशुभ
शुभ 27:05* – 28:24* शुभ
अमृत 28:24* – 29:43* शुभ
?होरा, दिन
बृहस्पति 05:43 – 06:50
मंगल 06:50 – 07:57
सूर्य 07:57 – 09:04
शुक्र 09:04 – 10:11
बुध 10:11 – 11:18
चन्द्र 11:18 – 12:25
शनि 12:25 – 13:33
बृहस्पति 13:33 – 14:40
मंगल 14:40 – 15:47
सूर्य 15:47 – 16:54
शुक्र 16:54 – 18:01
बुध 18:01 – 19:08
?होरा, रात
चन्द्र 19:08 – 20:01
शनि 20:01 – 20:54
बृहस्पति 20:54 – 21:47
मंगल 21:47 – 22:40
सूर्य 22:40 – 23:33
शुक्र 23:33 – 24:26
बुध 24:26* – 25:19
चन्द्र 25:19* – 26:12
शनि 26:12* – 27:05
बृहस्पति 27:05* – 27:57
मंगल 27:57* – 28:50
सूर्य 28:50* – 29:43
*नोट*– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है।
प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥
रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार ।
अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥
अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें ।
उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें ।
लाभ में व्यापार करें ।
रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें ।
काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है ।
अमृत में सभी शुभ कार्य करें ।
*?दिशा शूल ज्ञान————-दक्षिण*
परिहार-: आवश्यकतानुसार यदि यात्रा करनी हो तो घी अथवा केशर खाके यात्रा कर सकते है l
इस मंत्र का उच्चारण करें-:
*शीघ्र गौतम गच्छत्वं ग्रामेषु नगरेषु च l*
*भोजनं वसनं यानं मार्गं मे परिकल्पय: ll*
*? अग्नि वास ज्ञान -:*
*यात्रा विवाह व्रत गोचरेषु,*
*चोलोपनिताद्यखिलव्रतेषु ।*
*दुर्गाविधानेषु सुत प्रसूतौ,*
*नैवाग्नि चक्रं परिचिन्तनियं ।।* *महारुद्र व्रतेSमायां ग्रसतेन्द्वर्कास्त राहुणाम्*
*नित्यनैमित्यके कार्ये अग्निचक्रं न दर्शायेत् ।।*
11 + 5 + 1 = 17 ÷ 4 = 1 शेष
पाताल लोक पर अग्नि वास हवन के लिए अशुभ कारक है l
*? शिव वास एवं फल -:*
11 + 11 + 5 = 27 ÷ 7 = 6 शेष
क्रीड़ायां = शोक ,दुःख कारक
*?भद्रा वास एवं फल -:*
*स्वर्गे भद्रा धनं धान्यं ,पाताले च धनागम:।*
*मृत्युलोके यदा भद्रा सर्वकार्य विनाशिनी।।*
दोपहर 12:33 से 23:39 तक
स्वर्ग लोक = शुभ कारक
*?? विशेष जानकारी ??*
* पवित्रा एकादशी व्रत (वैष्णव)
* बिहारीजी को पवित्रा धारण
* सर्वार्थ सिद्धि योग 07:40 तक
*??? शुभ विचार ???*
दरस्थोऽपि न दूरशो यो यस्य मनसि स्थितः ।
यो यस्य हृदये नास्ति समीपस्थोऽपि दूरतः ।।
।।चा o नी o।।
वह जो हमारे मन में रहता हमारे निकट है. हो सकता है की वास्तव में वह हमसे बहुत दूर हो. लेकिन वह व्यक्ति जो हमारे निकट है लेकिन हमारे मन में नहीं है वह हमसे बहोत दूर है.
*??? सुभाषितानि ???*
गीता -: विभूतियोग अo-10
यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा ।,
तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसम्भवम्‌ ॥,
जो-जो भी विभूतियुक्त अर्थात्‌ ऐश्वर्ययुक्त, कांतियुक्त और शक्तियुक्त वस्तु है, उस-उस को तू मेरे तेज के अंश की ही अभिव्यक्ति जान॥,41॥,

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