आज का पंचांग 27 जुलाई 2020

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*********|| जय श्री राधे ||*********
?? *महर्षि पाराशर पंचांग* ??
??? *अथ पंचांगम्* ???
*********ll जय श्री राधे ll*********
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*दिनाँक -: 27/07/2020,सोमवार*
सप्तमी, शुक्ल पक्ष
श्रावण
“””””””””””””””””””””””””””””””””””””(समाप्ति काल)

तिथि ———सप्तमी 07:09:07 तक
तिथि ——–अष्टमी 28:57:12
पक्ष —————————शुक्ल
नक्षत्र ———–चित्रा 11:02:41
योग ————साध्य 20:47:55
करण ———वणिज 07:09:07
करण ——विष्टि भद्र 18:01:38
करण ————-बव 28:57:12
वार ————————-सोमवार
माह —————————श्रावण
चन्द्र राशि ——————–तुला
सूर्य राशि ———————–कर्क
रितु —————————–वर्षा
आयन —————– दक्षिणायण
संवत्सर ———————–शार्वरी
संवत्सर (उत्तर) ————-प्रमादी
विक्रम संवत —————-2077
विक्रम संवत (कर्तक) —-2076
शाका संवत —————-1942

वृन्दावन
सूर्योदय —————-05:41:10
सूर्यास्त —————–19:09:58
दिन काल ————-13:28:47
रात्री काल ————-10:31:43
चंद्रोदय —————-12:17:52
चंद्रास्त —————–24:02:54

लग्न —-कर्क 10°18′ , 100°18′

सूर्य नक्षत्र ——————–पुष्य
चन्द्र नक्षत्र ——————–चित्रा
नक्षत्र पाया ——————–रजत

*??? पद, चरण ???*

री —- चित्रा 11:02:41

रू —- स्वाति 16:40:57

रे —- स्वाति 22:19:58

रो —- स्वाति 27:59:47

*??? ग्रह गोचर ???*

ग्रह =राशी , अंश ,नक्षत्र, पद
========================
सूर्य=कर्क 10°22 ‘ पुष्य, 3 हो
चन्द्र = तुला 03 °23 ‘ चित्रा ‘ 3 ण
बुध = मिथुन 21 °57 ‘ पुनर्वसु ‘ 1 के
शुक्र= वृषभ 25°55, मृगशिरा ‘ 1 वे
मंगल=मीन 21°30’ रेवती ‘ 2 दो
गुरु=धनु 26°22 ‘ उ oषाo , 1 भे
शनि=मकर 05°43’ उ oषा o ‘ 4 जी
राहू=मिथुन 03°10 ‘ मृगशिरा , 4 की
केतु=धनु 03 ° 10 ‘ मूल , 2 यो

*???शुभा$शुभ मुहूर्त???*

राहू काल 07:22 – 09:03 अशुभ
यम घंटा 10:44 – 12:26 अशुभ
गुली काल 14:07 – 15:48 अशुभ
अभिजित 11:59 -12:53 शुभ
दूर मुहूर्त 12:53 – 13:46 अशुभ
दूर मुहूर्त 15:34 – 16:28 अशुभ

?चोघडिया, दिन
अमृत 05:41 – 07:22 शुभ
काल 07:22 – 09:03 अशुभ
शुभ 09:03 – 10:44 शुभ
रोग 10:44 – 12:26 अशुभ
उद्वेग 12:26 – 14:07 अशुभ
चर 14:07 – 15:48 शुभ
लाभ 15:48 – 17:29 शुभ
अमृत 17:29 – 19:10 शुभ

?चोघडिया, रात
चर 19:10 – 20:29 शुभ
रोग 20:29 – 21:48 अशुभ
काल 21:48 – 23:07 अशुभ
लाभ 23:07 – 24:26* शुभ
उद्वेग 24:26* – 25:45* अशुभ
शुभ 25:45* – 27:04* शुभ
अमृत 27:04* – 28:23* शुभ
चर 28:23* – 29:42* शुभ

?होरा, दिन
चन्द्र 05:41 – 06:49
शनि 06:49 – 07:56
बृहस्पति 07:56 – 09:03
मंगल 09:03 – 10:11
सूर्य 10:11 – 11:18
शुक्र 11:18 – 12:26
बुध 12:26 – 13:33
चन्द्र 13:33 – 14:40
शनि 14:40 – 15:48
बृहस्पति 15:48 – 16:55
मंगल 16:55 – 18:03
सूर्य 18:03 – 19:10

?होरा, रात
शुक्र 19:10 – 20:03
बुध 20:03 – 20:55
चन्द्र 20:55 – 21:48
शनि 21:48 – 22:41
बृहस्पति 22:41 – 23:33
मंगल 23:33 – 24:26
सूर्य 24:26* – 25:18
शुक्र 25:18* – 26:11
बुध 26:11* – 27:04
चन्द्र 27:04* – 27:56
शनि 27:56* – 28:49
बृहस्पति 28:49* – 29:42

*नोट*– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है।
प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥
रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार ।
अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥
अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें ।
उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें ।
लाभ में व्यापार करें ।
रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें ।
काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है ।
अमृत में सभी शुभ कार्य करें ।

*?दिशा शूल ज्ञान————-पूर्व*
परिहार-: आवश्यकतानुसार यदि यात्रा करनी हो तो घी अथवा काजू खाके यात्रा कर सकते है l
इस मंत्र का उच्चारण करें-:
*शीघ्र गौतम गच्छत्वं ग्रामेषु नगरेषु च l*
*भोजनं वसनं यानं मार्गं मे परिकल्पय: ll*

*? अग्नि वास ज्ञान -:*
*यात्रा विवाह व्रत गोचरेषु,*
*चोलोपनिताद्यखिलव्रतेषु ।*
*दुर्गाविधानेषु सुत प्रसूतौ,*
*नैवाग्नि चक्रं परिचिन्तनियं ।।* *महारुद्र व्रतेSमायां ग्रसतेन्द्वर्कास्त राहुणाम्*
*नित्यनैमित्यके कार्ये अग्निचक्रं न दर्शायेत् ।।*

7 + 2 + 1 = 10 ÷ 4 = 2शेष
आकाश लोक पर अग्नि वास हवन के लिए अशुभ कारक है l

*? शिव वास एवं फल -:*

7 + 7 + 5 = 19 ÷ 7 = 5 शेष

ज्ञानवेलायां = कष्ट कारक

*?भद्रा वास एवं फल -:*

*स्वर्गे भद्रा धनं धान्यं ,पाताले च धनागम:।*
*मृत्युलोके यदा भद्रा सर्वकार्य विनाशिनी।।*

प्रातः 07:09 से 18:03 तक समाप्त

पाताल लोक = धनलाभ कारक

*?? विशेष जानकारी ??*

* दुर्गाष्टमी व्रत

* अष्टमीक्षय

* गोस्वामी तुलसीदास जयन्ती

* नैना देवी मेला

*??? शुभ विचार ???*

जलै तैलं खले गुह्यं पात्रे दानं मनागपि ।
प्राज्ञे शास्त्रं स्वयं याति विस्तारे वस्तुशक्तितः ।।
।।चा o नी o।।

पानी पर तेल, एक कमीने आदमी को बताया हुआ राज, एक लायक व्यक्ति को दिया हुआ दान और एक बुद्धिमान व्यक्ति को पढाया हुआ शास्त्रों का ज्ञान अपने स्वभाव के कारण तेजी से फैलते है.

*??? सुभाषितानि ???*

गीता -: विभूतियोग अo-10

वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनञ्जयः ।,
मुनीनामप्यहं व्यासः कवीनामुशना कविः ॥,

वृष्णिवंशियों में (यादवों के अंतर्गत एक वृष्णि वंश भी था) वासुदेव अर्थात्‌ मैं स्वयं तेरा सखा, पाण्डवों में धनञ्जय अर्थात्‌ तू, मुनियों में वेदव्यास और कवियों में शुक्राचार्य कवि भी मैं ही हूँ॥,37॥,

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