कानपुर: थाने में घुसकर की थी दुबे ने राज्यमंत्री की हत्या, 25 चश्मदीद पुलिसकर्मी पलटे थे गवाही से

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कानपुर के बिकरू गांव में आठ पुलिसकर्मियों के कत्लेआम के बाद कुख्यात अपराधी विकास दुबे के कारनामों की चर्चाएं फिर से जोरों पर हैं। इनमें से सबसे ज्यादा चर्चित है दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री संतोष शुक्ला की थाने में घुसकर की गई हत्या। इससे भी चौंकाने वाला है विकास दुबे का कोर्ट से बरी हो जाना।
विकास जिन परिस्थितियों में कोर्ट से बरी हुआ था वह तो सवालों के घेरे में है ही, लेकिन इस बात की भी चर्चा है कि मामले की उच्च अदालत में दोबारा अपील ही नहीं हुई। इस पर संतोष शुक्ला के भाई और मामले के वादी मनोज शुक्ला का कहना है कि उन्होंने वकीलों से मशविरा किया था, लेकिन उन्होंने बताया कि वे उच्च अदालत में जिला अदालत के फैसले के खिलाफ अपील नहीं कर सकते हैं। दरअसल साल 2001 में कानपुर देहात के शिवली पुलिस स्टेशन के भीतर दिन-दहाड़े विकास दुबे ने भाजपा नेता संतोष शुक्ला की हत्या कर दी थी। इस घटना के चार महीने बाद दुबे ने कई राजनेताओं के साथ अदालत में आत्मसमर्पण किया था।
संतोष शुक्ला के भाई मनोज शुक्ला ने बताया कि विकास दुबे जब अदालत में आत्मसमर्पण करने पहुंचा था, तो उसके साथ कई नेता भी मौजूद थे। मनोज ने बताया कि संतोष शुक्ला की हत्या मेरे परिवार के लिए बहुत बड़ा झटका था। इससे भी ज्यादा दुखद यह था कि इस हत्या के चश्मदीद गवाह 25 पुलिसकर्मी एक के बाद एक अदालत में गवाही देने से मुकर गए।
उन्होंने बताया कि इस हत्या का जांच अधिकारी भी अदालत में अपने बयान से मुकर गया। इस तरह से दुबे को बरी कर दिया गया। कानपुर में हुई घटना को लेकर संतोष के भाई ने कहा कि अगर उन पुलिसकर्मियों ने उस दौरान कोई स्टैंड लिया होता, तो इस घटना को रोका जा सकता था। आठ पुलिसकर्मियों को शहीद नहीं होना पड़ता। उनके बयानों से विकास दुबे जेल जा सकता था, लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हुआ

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