कानपुर कांड- “दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है”, कानपुर कांड के खलनायक विकास दुबे का कच्चा चिट्ठा

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 ग्राउंड रिपोर्ट/ कानपुर  कांड/ राघवेंद्र सिंह/ राष्ट्रीय जजमेंट-
आज राष्ट्रीय जजमेंट की टीम कानपुर कांड के घटनास्थल बिकरू गांव पहुंची जहां टीम की मुलाकात कांड के खलनायक विकास दुबे के चिर परिचित विरोधी मुकेश( काल्पनिक नाम ) से हुई उन्होंने हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे के आपराधिक इतिहास का सारा  कच्चा चिट्ठा खोल दिया।
मुकेश बताते हैं कि –

 विकास ने महज 17 साल में पहली हत्या की थी। सहारनपुर में उस पर हमला हुआ था। जिसके बाद उसके पैर में रॉड पड़ी है। वह 500 कदम भी दौड़ नहीं सकता है। विकास को गांव की महिलाएं मसीहा मानती हैं। वह अपने गांव में पंडित जी के नाम से मशहूर है। लेकिन उसके कई दुश्मन भी हैं। उनमें से एक मुकेश भी हैं।

18 साल पहले  मुकेश पर हुआ था जानलेवा हमला, यहीं से हुई दुश्मनी

हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे के बिकरू गांव से लगभग 3 किमी दूर शिबली एक छोटा सा कस्बा पड़ता है।  थाने से  थोड़ी दूर  मुकेश का घर है। बाहरी कमरे में अकेले बैठे मुकेश टीवी पर हत्याकांड की खबरे देख रहे थे। हमारी उनसे मुलाकात हुई ही थी कि उनसे मिलने के लिए एसटीएफ की टीम पहुंच गई। उनकी बन्द कमरे में बातचीत हुई। आधे घंटे बाद  मुकेश फिर हमसे मुखातिब हुए। वह कहते हैं कि 1995 में जब मैंने अपना अध्यक्षी का कार्यकाल पूरा किया तो फिर दोबारा चुनाव की तैयारी शुरू की। लेकिन विकास ने मुझ पर हमला करवाया। वह चाहता था कि मुझे मारकर वह अपने किसी आदमी को अध्यक्ष पद के लिए चुनाव में खड़ा करवा दे। हमारी दुश्मनी तब से शुरू हुई, जब उसने मेरी न्याय पंचायत में लोगों को धमकाना, डराना और वसूली करना शुरू किया। मैंने उसे मना किया तो उसने मुझसे दुश्मनी कर ली।

11 लोगों ने बम और गोली से किया था हमला, दीवारों पर चिपके पड़े थे मांस के लोथड़े

मुकेश बताते हैं कि 2002 में चुनाव से पहले घर पर चौपाल लगा करती थी। तकरीबन 7 बजे का समय था, हम पांच लोग बैठे हुए थे। अचानक से घर के बगल रास्ते से और सामने से कुछ लोग मोटर साइकिल से आए और बम मारना शुरू कर दिया। साथ ही साथ फायरिंग करनी शुरू कर दी। मैं दरवाजे की चौखट पर ही था। मैं अंदर भागा। मेरे साथ एक लड़का और भागा। लेकिन दरवाजे पर बैठे 3 लोगों की मौत हो गयी। जब हल्ला मचा तो हमलावर भाग निकले। मेरे शरीर पर कई छर्रे लगे हुए थे। जब सब शांत हुआ तो मैं नीचे आया तो दीवारों पर मांस के लोथड़े चिपके थे। मृतकों के शरीर का ऊपरी हिस्सा गायब ही हो गया था। मेरा कान कई महीनों तक खराब रहा। अभी भी मैं ऊंचा सुनता हूं।   तब से 22 साल हो गए हमारी और विकास के बीच दुश्मनी चल रही है।

17 साल की उम्र में की पहली हत्या, फिर बढ़ता गया अपराध का ग्राफ

मुकेश बताते हैं कि, 1985 से 90 का दौर था, जब विकास दुबे उर्फ पंडितजी 17 साल उम्र का रहा होगा, उसने कानपुर-कन्नौज बॉर्डर पर पड़ने वाले गंगवापुर वहां पहली हत्या की थी। यह गांव विकास का ननिहाल है। इस हत्याकांड में उसे कोई सजा नहीं हुई। जिसके बाद वह मनबढ़ हो गया। उसके बाद वह छोटी मोटी चोरियों को अंजाम देता रहा। लूटपाट करता रहा। 1991 में उसने अपने ही गांव के झुन्ना बाबा की हत्या कर दी। इस हत्या का मकसद था बाबा की जमीन कब्जा करना। पुराने समय के लोग जमीन में जेवर वगैरह रखते थे। विकास को यह बात मालूम थी। जिसके चलते उनकी हत्या कर उनकी जमीन पर कब्जा कर लिया। यहां से विकास का मन और बढ़ गया। उसने कॉन्ट्रैक्ट किलिंग वगैरह शुरू कर दी। उसने फिर 1993 में रामबाबू हत्याकांड को अंजाम दिया। फिर 2000 में सिद्धेश्वर पांडेय हत्याकांड को अंजाम दिया। 2001 में राज्यमंत्री संतोष शुक्ला की थाने में गोली मारकर हत्या कर दी।

  गांव में तैनात पीएसी

हथियारों का शौकीन, जमीनों पर कब्जा करवाना फैक्ट्रियों से रंगदारी वसूलता है

मुकेश बताते हैं कि लगातार हत्याएं लूट डकैती करने के बाद से उसका इलाके में अच्छा खासा दबदबा बन गया था। इसी के दम पर वह विवादित जमीनों की दलाली करने लगा। साथ ही साथ आसपास की फैक्ट्रियों से पैसे वसूलने लगा। जितनी बड़ी फैक्ट्री उतना बड़ा पैसा वसूली करता था। विकास हथियारों का शौकीन है। अवैध असलहे तो उसके घर में कईयों के पास होंगे। जब उसका गाड़ियों का काफिला निकलता था तो उसके साथ दस से पंद्रह लड़के रहते थे जो अलग अलग हथियारों से लैस रहते थे।

 मुठभेड़ में चली गोलियों के निशान

एक पैर में पड़ी थी रॉड, 500 मीटर भी पैदल नहीं चल सकता

मुकेश बताते हैं कुछ सालों पहले उसने अपने दबदबे का इस्तेमाल करने के लिए पश्चिमी यूपी का रुख किया। सहारनपुर में किसी विवादित जमीन की दलाली खाने वहां पहुंचा था, लेकिन सामने वाली पार्टी उस पर भारी पड़ गयी। जहां उसका पैर भी टूट गया था। बाद में उसके पैर में रॉड डाली गई थी। जिसके बाद वह 500 मीटर भी पैदल नही चल सकता है।

गांव में विकास दुबे के नाम से लगा  आरंभ पट

एहसान के बदले तैयार करता था युवाओं की फौज

वह  बताते हैं कि विकास हमेशा अपने साथ 20 से 25 लड़कों का जत्था लेकर चलता था। इसमें ज्यादातर गांव के नव युवक हुआ करते थे। जबकि कुछ खास बाहरी होते थे। पिछले 15 सालों से उसके घर में ही प्रधानी रही है तो गांव वालों की जरूरत के मुताबिक सबकी सरकारी योजनाओं से लेकर रूपए पैसे तक की मदद करता था। नए लड़कों को पहले शराब और खाना खिलाना पिलाना करता। फिर उन्हें महंगे कपड़े और मोबाइल वगैरह देता। जब लड़कों को उसकी लत लग जाती तो उन्हें अपने गिरोह में शामिल कर लेता था। गांव में उसकी किसी से दुश्मनी नहीं है न ही किसी को वह परेशान करता है। इसीलिए गांव वाले उसके सपोर्ट में रहते हैं।

गांव में विकास दुबे के घर के बाहर मौजूद फोर्स

महिलाओं में विकास की अच्छी छवि

गांव में विकास की दबदबे की बात का क्रॉस चेक करने के लिए हमने एक बार फिर बिकरू गांव का रुख किया। विकास के घर से 100 मीटर दूर कुछ महिलाएं आपस में बात कर रही थीं। जैसे ही उनसे विकास के बारें में बात की तो उन्होंने बताया कि गांव में ठाकुर, ब्राह्मण, लोधी, सोनकर लोग रहते हैं। लेकिन गांव में विकास ने किसी को परेशान नहीं किया।  एक महिला बताती हैं कि विकास 6 दिन पहले ही गांव की एक शादी में शामिल होने आया था। जहां उसने 10 हजार रूपए व्यवहार में दिए थे।

बिकरू गांव की महिलाएं विकास दुबे को बताती हैं मसीहा

एक और महिला बताती हैं कि उसने ही मेरी वृद्धा पेंशन लगवाई। घर में शौचालय भी बनवाया है। जबकि एक बुजुर्ग महिला कहती है कि घर के मर्दों को काम भी दिलवाता था। कुछ दुख दर्द लेकर पहुंच जाओ तो मदद भी करता था।   वह बताती है कि गांव की महिलाएं उनके सामने घूंघट नहीं उठाती हैं।

कानपुर कांड का खलनायक विकास दुबे,
दो रिश्तेदार मुठभेड़ में ढेर,
तलाश जारी

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