पटना : लोकतंत्र में नेता का ही बेटा नेता कब तक चलेगा ?

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वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था को देखते हुए भारत के सभी जनमानस में अब यह बात स्पष्ट हो रही है कि राष्ट्र, राज्य, या क्षेत्र का नेतृत्व करने के लिए एक विशेष नेता परिवार में पैदा होना जरूरी हो गया है, परिवारवाद ही भारत की राजनीतिक संरचना बन गई है,लोकतांत्रिक देश में परिवार की कल्पना नहीं की जा सकती है। वर्तमान समय में देश की राजनीति में जो माहौल बना हुआ है। वह लोकतंत्र में ही राजशाही व्यवस्था को जन्म देने वाला गूढ़ अर्थ बता रहा है। देश की राजनीति में कुछ राजनीतिक पार्टियों को छोड़ दिया जाए, तो सभी राजनीति दल अपने और परिवार को आगे बढ़ाने के लिए लोकतंत्र को ठेंगा दिखाकर राजनीति में परिवारवाद को बढ़ावा दे रहा हैं।
आज देश की राजनीति स्वार्थ हितों के लिए इतनी बेचैन हो गई है कि समाज और देश के हितों का परित्याग कर चुकी ये राजनीतिक पार्टियां प्राचीनकाल की शासन प्रणाली को अपनाने को मोहताज हो चली हैं। जिस शासन व्यवस्था को निरंकुश शासन माना जाता हो, वह वर्तमान परिदृश्‍य में देश के हित में कैसे हो सकती है? आज देश की अधिकतर पार्टियां किसी ना किसी परिवार या व्यक्ति विशेष की पैकेट में कैद है,सच ही कहा गया आज़ाद तो सिर्फ हमारी जमीन हुई लेकिन जमीर इन नेताओ ने गुलाम बना रखा है,और लोकतान्त्रिक राजनीति में परिवारवाद अपनी पैठ जमा चुका है।
वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था में खून का महत्व योग्यता से ज्यादा हो गया है और ये भी सत्य है की योग्यता को उत्तराधिकारी नहीं मिलने के कारण कई विशाल साम्राज्य ध्वस्त हो गए और इतिहास के पन्नों में खो गए हैं,छात्र राजनीति का दौर भी अब खत्म हो रही है क्योंकि नेता अब विश्वविद्यालय में नहीं बल्कि राजनीतिक परिवार में पैदा हो रहे हैं, लोकतंत्र के कर्ण धार अब किसी राजनीतिक परिवारों में पैदा होने शुरू हो गए हैं, भारत में परिवार की सत्ता का विकेंद्रीकरण हुआ है विभिन्न परिवार में बट गया है,
ना तो कोई राजनीतिक संघर्ष और ना ही कोई सामाजिक और क्षेत्रीय ज्ञान और राजनीति में ना कोई दिलचस्पी के बावजूद भी इनपर ओके टेस्टेड का मुहर लगा दिया जा रहा है, योग्यता से राजनीति पार्टी से टिकट मिलने की सम्भावना कम होती है बल्कि राजनीतिक परिवार में पैदा होने से जनप्रतिनिधि टिकट कन्फर्म होती हैं, एक-दो उदाहरण अपबाद हो सकते हैं,सहयोग ईमानदार निष्पक्ष कर्मठ एवं समाज के प्रति लगाव रखने वाले व्यक्ति अथवा जनप्रतिनिधि को स्थान मिलना चाहिए
,लेकिन परिवारवाद के कारण इन्हे उचित स्थान नहीं मिल पाता है क्यू की इन नेता को सर्व गुण सम्पन्न जनप्रतिनिधि अपने ही परिवार में दिखती है, बाकी सभी तो वास्तव में अनट्रेंड है क्यू की इनका प्रयोग तो नेता जी टारगेट ओरिएंटेड बनाकर हिंसा भड़काने, हड़ताल करने में, प्रदर्शन रैली में भीड़ का उपयोग करने में करते हैं जातिवाद की लड़ाई हो या धर्म संप्रदाय की लड़ाई सभी में इनको जगह जरूर दिलबाते है, सुयोग्य,ईमानदार, निष्पक्ष, कर्मठ,एवं समाज के प्रति लगाव रखने वाले ट्रैंड और सर्व गुण संपन्न जनप्रतिनिधि वर्तमान राजनीति माहौल में सिर्फ राजनीतिक परिवार ही पैदा कर सकता है,
आज लोकतंत्र लोकतांत्रिक राजतंत्र में बदल रहा है और राजनीति परिवार के पेट से पैदा होने वाले राजाओं पर लोकतंत्र की मुहर लग रही है,यह खतरा सिर्फ जनमानस के लिए ही नहीं है बल्कि राजनीतिक पार्टी के लिए भी है कि राजनीति में परिवारवाद को बढ़ावा राजनीति पार्टी के भविष्य के लिए खतरा है क्योंकि परिवारवाद के कारण प्रत्याशियों के प्रचार प्रसार हेतु कार्यकर्ता मिलना मुश्किल हो जाएगा
क्योंकि अब सभी मेहनती कार्यकर्ता भी अब जग चुके है, क्योंकि मेहनती कार्यकर्ता का भविष्य परिवारवाद अंधकार की ओर धकेल देता है तब इस स्थिति में नेताओं की पार्टी अपने ही परिवार तक सिमटकर रह जाएगी, लोकतंत्र में राजनीति का मूल उद्देश्य “न्याय”की स्थापना करना है और परिवारवाद न्याय की संकल्पना के विरुद्ध है परिवारवाद लोकतंत्र से निकलकर सामंतवाद जमीदारी प्रथा एवं राजतंत्र की तरफ जाने की सीढ़ी है परिवारवाद राजशाही का प्रतीक है
इसके लिए जनता और दल के कार्यकर्ता दोनों ही उत्तरदाई है,लेकिन गलती इनलोगो की भी नहीं है, क्यू की कहा गया की अगर किसी को एक बार मुर्ख बनाया जाता है, तो यह बनाने वाले के लिए शर्म की बात है, और जब दुबारा मुर्ख बनाया जाये तो ये बनने वाले के लिए शर्म की बात है, परन्तु ये सब जानते हुए भी हम सभी लोभ में आकर अबतक मुर्ख बनते आ रहे है, ये बात भी सत्य है परिवर्तन ही नव निर्माण की चाभी है,और लोकतंत्र में नेता का ही बेटा नेता बने ये भी न्याय संगत
आशुतोष मिश्रा  RJ ✍

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