कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष 15 विधायकों के इस्तीफे पर उचित नियमों को मानते हुए इस्तीफ़ा स्वीकार करें

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 15 बाग़ी विधायकों के इस्तीफ़ा स्वीकार किए जाने को लेकर स्पीकर से कहा है कि वो उचित नियमों को मानते हुए इस्तीफ़ा स्वीकार करें.
इतना ही नहीं उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि स्पीकर किसी भी बागी विधायक को सत्र में हिस्सा लेने के लिए दबाव नहीं बना सकते.
CJI ने कही कुछ बातें-
1. हमे इस मामले में संवैधानिक बैलेंस कायम करना है.
2. स्पीकर 15 बागी विधायकों के इस्तीफों पर अपने अनुसार विचार करे.
3. स्पीकर खुद से फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हैं. उन्हें समय सीमा के भीतर निर्णय लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता.
4. कर्नाटक सरकार को झटका देते हुए CJI ने कहा- 15 बागी विधायकों को भी सदन की कार्यवाही का हिस्सा बनने के लिए बाध्य न किया जाए.
5. CJI ने कहा कि इस मामले में स्पीकर की भूमिका व दायित्व को लेकर कई अहम सवाल उठे हैं. जिनपर बाद में निर्णय लिया जाएगा. परंतु अभी हम संवैधानिक बैलेंस कायम करने के लिए अपना अंतरिम आदेश जारी कर रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इस मामले में सभी पक्षों की ओर से दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
बागी विधायकों ने आरोप लगाया कि विधानसभा अध्यक्ष के आर रमेश कुमार बहुमत खो चुकी गठबंधन सरकार को सहारा देने की कोशिश कर रहे हैं.
इससे पहले विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि संवैधानिक पदाधिकारी होने के नाते उन्हें इन विधायकों के इस्तीफे पर पहले फैसला करने और बाद में उन्हें अयोग्य ठहराने की मांग पर फैसला करने का निर्देश नहीं दिया जा सकता.
मुख्यमंत्री कुमारस्वामी गुरुवार को विधानसभा में विश्वासमत का प्रस्ताव पेश करेंगे और अगर विधानसभा अध्यक्ष इन बागी विधायकों का इस्तीफा स्वीकार कर लेते हैं तो उनकी सरकार उससे पहले ही गिर सकती है.
हालांकि, प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि वह विधानसभा अध्यक्ष को अयोग्यता पर फैसला करने से नहीं रोक रही है, बल्कि उनसे सिर्फ यह तय करने को कह रही है क्या इन विधायकों ने स्वेच्छा से इस्तीफा दिया है.
इससे पहले मंगलवार को सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक के विधानसभा अध्यक्ष से पूछा कि वह जनता दल-सेकुलर (जेडीएस) और कांग्रेस की गठबंधन वाली सरकार के बागी विधायकों द्वारा छह जुलाई को दिए गए इस्तीफे स्वीकार करने या न करने के लिए किस कारण रुक गए.
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने विधानसभा अध्यक्ष केआर रमेश कुमार का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी से स्पष्ट जवाब मांगा है.
मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने पूछा, ‘आप तब तक शांत रहे जब तक विधायकों ने अपना इस्तीफा सर्वोच्च न्यायालय भेज दिया.. क्यों?’
इसके जवाब में सिंघवी ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष ने उस घटना के बारे में विस्तार से बताते हुए सर्वोच्च न्यायालय में एक हलफनामा दाखिल किया है.
मुख्य न्यायाधीश ने पलटवार करते हुए उनसे पूछा कि विधायक जब अपना इस्तीफा लेकर अध्यक्ष के पास गए तो उन्होंने निर्णय क्यों नहीं लिया, जिसके जवाब में सिंघवी ने कहा कि यह एक लिखित संवाद है और उस दिन अध्यक्ष वहां मौजूद नहीं थे.
अदालत ने कहा, “लेकिन यह निर्णय उन्हें छह जुलाई को बताया गया था.”
सिंघवी ने कहा कि विधायकों ने पहले 11 जुलाई को अध्यक्ष से व्यक्तिगत मुलाकात की, नियम के मुताबिक उन्हें अध्यक्ष के सामने व्यक्तिगत रूप से पेश होना था.
उन्होंने कहा, “विधायकों द्वारा दिए गए सामान्य इस्तीफे की पहली शर्त है कि उसे स्पीकर के समक्ष व्यक्तिगत रूप से पेश होना होगा.”
अदालत ने कहा कि प्रावधान में पत्र द्वारा इस्तीफा देने पर नजरंदाज नहीं किया जा सकता, लेकिन विधायकों ने अगर अध्यक्ष से 11 जुलाई को व्यक्तिगत रूप से बात की है तो भी उन्हें विधायकों के इस्तीफे पर तत्काल निर्णय लेना है.
अदालत ने कहा, “यह 11 जुलाई को क्यों नहीं हुआ?”
मुख्य न्यायाधीश ने कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष के लिए कहा कि “आप अदालत की न्यायिक शक्तियों पर सवाल नहीं उठा सकते.”

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