राष्ट्रीय जजमेन्ट
गोरखपुर: ‘न हंस कर, न रोकर किसी में उडे़ला, पिया खुद ही अपना जहर धीरे-धीरे। गिरा मैं कहीं तो अकेले में रोया, गया दर्द से घाव भर धीरे-धीरे।’ जैसी रचनाओं के रचयिता रामदरश मिश्र अब इस दुनिया में नहीं रहे। 101 वर्ष की आयु में दिल्ली में उन्होंने आखिरी सांस ली। उनके निधन पर साहित्य जगत में शोक की लहर है। वरिष्ठ साहित्यकार रामदरश मिश्र का हिंदी साहित्य जगत में बड़ा नाम रहा है। वे एक कवि, लेखक और शिक्षाविद थे, जिन्हें हिंदी और भोजपुरी साहित्य में उनके योगदान के लिए जाना जाता था।रामदरश मिश्र ने वर्ष 2024 तक 150 से अधिक किताबें लिखी थीं। उनकी पुस्तकों को कई विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता है। महान साहित्यकार रामदरश मिश्र को उनके साहित्य जगत में अमूल्य योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया। रामदरश मिश्र के निधन पर गोरखपुर में शोक की लहर दौड़ गई है।रामदरश मिश्र का जन्म 15 अगस्त 1924 को गोरखपुर जिले के डुमरी गांव में हुआ था। उन्होंने कविता, कथा, आलोचना और निबंध सहित विभिन्न विधाओं में लिखा। हिंदी साहित्य में उनके योगदान को हिंदी आलोचना के स्तंभ के रूप में जाना जाता है। उनके उपन्यासों में ‘जल टूटता हुआ’ और ‘पानी के प्राचीर’ शामिल हैं।’बैरंग-बेनाम चिट्ठियां’, ‘पक गयी है धूप’ और ‘कंधे पर सूरज’ उनकी अन्य प्रमुख साहित्यिक कृतियों में से हैं।गोरखपुर के डुमरी गांव में जन्मे रामदरश मिश्र ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से पढ़ाई की थी। इसके बाद गुजरात में आठ साल तक उन्होंने शिक्षक के रूप में कार्य किया। गुजरात में उन्हें बहुत स्नेह और आदर मिला। इसके बाद वे दिल्ली आए और दिल्ली के ही होकर रह गए। यहीं उन्होंने आखिरी सांस ली।
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