आतिशी के साथ हो जाएगा 15 अगस्त वाला खेल? ताजपोशी से पहले एलजी ऐन वक्त पर चलेंगे तुरुप का इक्का

राष्ट्रीय जजमेंट

दिल्ली को नया मुख्यमंत्री मिल चुका है। अरविंद केजरीवाल आज शाम को इस्तीफा दे देंगे। आतिशी के नाम पर मुहर लग गई है। विधायक दल की बैठक तो महज एक औपचारिकता ही होती है और नाम पहले से ही तय किया जाता है।15 अगस्त को आतिशी को झंडा फहराने की बात जब आई थी तब से ही अंदाजा लगाया जा रहा था कि वही केजरीवाल की उत्तराधिकारी होंगी। हालांकि एलजी के हस्तक्षेप के बाद 15 अगस्त को सीएम की जगह झंडा फहराने का सपना तो आतिशी का पूरा नहीं हो पाया था। लेकिन अब आप के विधायक दल की बैठक के बाद आतिशी के अगले सीएम के नाम पर सहमति बन गई है। ऐसे में कयास ये भी लगाए जा रहे हैं कि दिल्ली में एलजी क्या कोई बड़ा खेल करेंगे और इस बार भी आतिशी ऐन मौके पर बस तमाशा देखती रह जाएंगी। वैसे आपको बता दें कि केजरीवाल इस्तीफे से लेकर नई सरकार गठन की प्रकिया में राष्ट्रपति की मंजूरी भी जरूरी है। नई सरकार के गठन में उपराज्यपाल से लेकर राष्ट्रपति कार्यालय का भी बड़ा रोल है। दरअसल, नए सीएम के बनने से नए सिरे से कैबिनेट का गठन होगा। सबसे पहले केजरीवाल अपना इस्तीफा उपराज्यपाल को सौंपेंगे। एलजी की तरफ से मंजूरी दी जाएगी और उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा। उसके बाद राष्ट्रपति भी इस्तीफा को मंजूर करेंगी। दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने कहा कि मुख्यमंत्री (अरविंद केजरीवाल) शाम 4.30 बजे मुझसे मिलने वाले हैं और उनका स्वागत है। आतिशी के नाम की सिफारिश की गई है। यह एक विधानसभा की प्रक्रिया है। उन्हें विधायकों ने चुना है। उनका भी स्वागत है। एक नैरेटिव ये भी चल रहा है कि स्मृति ईरानी को दिल्ली में उतारा जा सकता है। इस भिड़ंत में एक चीज दिलचस्प देखने को ये मिल सकती है कि आतिशी का अपना कोई बड़ा जनाधार नहीं है। लेकिन उनके पीछे अरविंद केजरीवाल का सपोर्ट है। वहीं स्मृति ईरानी का भी कोई बड़ा जनाधार नहीं है लेकिन उनके साथ एक अभिभावक के रूप में नरेंद्र मोदी का सपोर्ट है। चेहरे हैं जो अपने अपने बैकअप के साथ खड़े हैं। लेकिन दिल्ली की लड़ाई मोदी बनाम केजरीवाल ही होना है। अब ऐसे में कौन अपना नैरेटिव जनता के बीच मजबूती से रख सकता है। संविधान के अनुच्छेद 174(2)(बी) के अनुसार राज्यपाल समय-समय पर विधानसभा को भंग कर सकते हैं। मंत्रिपरिषद राज्यपाल को विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने से पहले उसे भंग करने की सिफारिश कर सकती है, जिससे राज्यपाल को निर्णय लेने पर मजबूर होना पड़ता है। विधानसभा भंग होने के बाद, चुनाव आयोग को छह महीने के भीतर नए चुनाव कराने होते हैं। सितंबर 2018 में, तत्कालीन मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के नेतृत्व में तेलंगाना मंत्रिमंडल ने विधानसभा को भंग करने की सिफारिश की, जिसका कार्यकाल जून 2019 में समाप्त होना था। राज्यपाल ने सिफारिश स्वीकार कर ली और 2018 में विधानसभा चुनाव हुए।

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