देश को नीतिगत निष्क्रियता की नहीं, अर्थव्यवस्था पर ठोस कदम उठाने की जरूरत: Sitharaman

राष्ट्रीय जजमेंट न्यूज

बेंगलुरू । केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को पिछली संप्रग सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि देश को राजनीतिक स्थिरता, स्पष्ट दृष्टिकोण और अर्थव्यवस्था पर गहन कार्रवाई की जरूरत है। उन्होंने कहा कि ऐसा न होने पर देश के सामने पांच साल तक लालफीताशाही, भ्रष्टाचार और नीतिगत निष्क्रियता का जोखिम है। सीतारमण ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विकसित भारत 2047 का लक्ष्य रखा है। उन्होंने कहा कि विकास अपने आप या बिना प्रयास के नहीं होता है।

भारतीय कंपनी सचिव संस्थान – बेंगलुरू इकाई के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सीतारमण ने कहा, 2013-14 में हमें जो विरासत में मिला था और 2024 में हम आज जहां पहुंच हैं, उसके बीच एक बड़ा बदलाव हुआ है। विकास अपने आप नहीं होता… विकास के लिए प्रयास करना होता है।’’ उन्होंने कहा कि जब 2004 में वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार सत्ता से बाहर हुई थी, तब अर्थव्यवस्था ने 2003-2004 में आठ प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की थी। उस समय औसत मुद्रास्फीति चार प्रतिशत से कम थी। सकल एनपीए (गैर निष्पादित परिसंपत्तियां) पांच साल पहले की तुलना में आधे हो गए थे। सीतारमण ने कहा कि वाजपेयी सरकार में पूंजीगत व्यय और बुनियादी ढांचे के व्यय पर ध्यान दिया गया। देश में सभी ग्रामीण क्षेत्रों को जोड़ने वाली सड़कें बनाई गईं, और विदेशी मुद्रा भंडार अच्छी स्थिति में था।

उन्होंने दावा किया, प्रधानमंत्री मोदी को 2014 में जो विरासत में मिला था, उस पर गौर करें तो लगातार दो साल 2012-13 और 2013-14 में जीडीपी वृद्धि पांच प्रतिशत से कम रही थी। वर्ष 2009 से 2014 तक भारत में मुद्रास्फीति औसतन दोहरे अंकों में रही थी और कॉरपोरेट निवेश में गिरावट आई थी। इंस्पेक्टर राज, लालफीताशाही और कर आतंकवाद ने अर्थव्यवस्था को नाजुक स्थिति में ला दिया था। सीतारमण ने कहा कि संप्रग सरकार के दौरान नीतिगत निष्क्रियता के कारण निवेश और बुनियादी ढांचे में भारी गिरावट आई। कुल व्यय के प्रतिशत के रूप में पूंजीगत व्यय 2003-2004 में 31 प्रतिशत से गिरकर 2013-14 में 16 प्रतिशत रह गया। इस दौरान राजमार्ग बनाने की गति एक तिहाई तक घट गई।

वित्त मंत्री ने दावा किया कि जब प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 में सत्ता संभाली थी, तब बैंकों के अंधाधुंध ऋण देने के कारण एनपीए का बहुत बड़ा संकट पैदा हो गया था। इसका असर सिर्फ बैंकों पर ही नहीं पड़ा, बल्कि कंपनियों के बही-खाते भी गंभीर संकट में थे। पिछली संप्रग सरकार पर निशाना साधते हुए सीतारमण ने आरोप लगाया कि व्यापक भ्रष्टाचार और घोटालों ने सरकारी खजाने को खोखला कर दिया था। राजकोषीय और राजस्व घाटा नियंत्रण से बाहर हो रहा था। विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आई थी और डर था कि हम 1991 से पहले की स्थिति में पहुंच सकते हैं।

उन्होंने कहा, आज हम पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था हैं, और पूरे विश्वास के साथ हम कह सकते हैं कि हम अगले कुछ साल में तीसरे स्थान पर पहुंच सकते हैं। हमें राजनीतिक स्थिरता की जरूरत है। हमें स्पष्ट दृष्टिकोण की जरूरत है। हमें अर्थव्यवस्था के हर पहलू में गहन कार्रवाई की जरूरत है। दूसरी ओर लालफीताशाही, भ्रष्टाचार, नीतियों के स्तर पर निष्क्रियता के अगले पांच साल तक बने रहने का जोखिम है।

Comments are closed.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More