75 साल पूरे होने पर डेनिश संसद के अध्यक्ष ने जताई खुशी, कहा- भारत आना मेरे लिए गर्व

राष्ट्रीय जजमेंट न्यूज

नई दिल्ली । भारत और डेनमार्क के द्विपक्षीय संबंधों ने एक अहम पड़ाव पार कर लिया है। दोनों देशों के रिश्तों को 75 साल पूरे हो गए हैं। इस अवसर पर डेनिश संसद के अध्यक्ष सोरेन गाडे ने कहा कि मैं सम्मानित महसूस कर रहा हूं कि भारत डेनमार्क जैसे छोटे देश पर भी ध्यान दे रहा है। हम पिछले 17 साल से दोस्त हैं। उम्मीद है कि हम आगे भी दोस्त रहेंगे। आज भारत आर्थिक रूप से मजबूत हुआ है। विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। मुझे उम्मीद है कि आने वाले कुछ वर्षों में ही भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। मैं छोटे से देश के प्रतिनिधि के रूप में भारत के शीर्ष मंत्रियों से मिल सकता हूं। मेरे लिए और मेरे सांसदों के लिए यह गर्व की बात है।
अपनी नई दिल्ली यात्रा पर और मंत्रियों के साथ मुलाकात पर डेनिश संसद अध्यक्ष ने कहा कि भारत आना मेरे लिए सम्मान की बात है। नई दिल्ली में मैंने उच्च स्तरीय बैठकें की। हम व्यापार मंत्री से मिले। एक दिन पहले हमने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से भी मुलाकात की। भारत यात्रा की शुरुआत बहुत अच्छी रही। हम यहां यह जानने के लिए भी आए हैं कि चुनाव के बाद भारत में क्या होने वाला है। हम भारत के हरित परिवर्तन से प्रेरित हैं। हम दोनों देश साथ मिलकर हरित समझौते पर बहुत कुछ कर सकते हैं। हमें प्रौद्योगिकी को भारत में स्थानांतरित करना होगा क्योंकि हमने अतीत में बहुत सारी गलतियाँ की हैं, जिसे हम भविष्य में नहीं दोहराएंगे। भारत को एक विकसित देश होने का अधिकार है। लोकतंत्र पर डेनिश नेता ने कहा कि हम लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की आजादी, कानून के शासन पर मूल्यों को साझा करते हैं। उन देशों से दोस्ती करना इसलिए आसान है क्योंकि आप दोनों के मूल्य एक समान ही हैं। आज पहले की तुलना में कम लोग ही लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं।

भारत-ईयू एफटीए पर उन्होंने कहा कि जब मैं कोविड के ठीक बाद यहां था और व्यापार मंत्री से मिला था तो हमने इस एफटीए पर चर्चा की थी क्योंकि मैं यूरोपीय संसद का प्रतिनिधित्व कर रहा था। हम दोनों आशावादी थे। लेकिन सीबीएएम के बाद, मुक्त व्यापार समझौते की चर्चा में गैर-व्यापार मुद्दे सामने आए और इसने इसे और अधिक कठिन बना दिया। उम्मीद है कि यूरोप के साथ एफटीए फिर से शुरू होगा। यूरोप को भारत की जरूरत है और उम्मीद है, भारत को भी ऐसा लगता है कि उसे यूरोप की जरूरत है।

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