कुछ ऐसे होती थी पहले गाँव की बारातें, IAS अधिकारी ने फोटो शेयर कर लिखीं दिलचश्प बातें

IAS अवनीश शरण ने एक फोटो शेयर किया है, जिसको देखकर हो सकता है कि आपको भी अपने बचपने के दिन याद आ जाएं। इस फोटो में वो गांवों के एक कल्चर के बारे में बता रहे हैं, जिसको देखकर आप बहुत कुछ मिस करने वाले हैं। क्योंकि इसमें उन्होंने बताया कि पहले कैसे गांवों में बारातों को रोका जाता था।
नई दिल्ली गांव देहात में जब पहले शादी हुआ करती थी तो पूरा माहौल फेस्टीवल की तरह से ही होता था। पंजाब-हरियाणा के कुछ गांवों में तो आज भी यह कल्चर है कि बारात को गांव में एक दिन रुकवाने के लिए लोगों के घरों से बिस्तर और चारपाई मांग कर लाया जाता है।
हालांकि शहरीकरण के कारण आजकल शादियां गांवों में भी शहरों की तरह से होने लगी हैं। लेकिन फिर भी ऐसी कुछ तस्वीरें मिल जाती हैं जिनको देखकर वो पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं। जहां बारात को रुकवाने के लिए चारपाइयां बिछाई जाती हैं और वहां एक बड़ा बुजुर्ग बैठकर बारात के स्वागत के लिए बैठा होता है। आईएएस अवनीश शरण ने हाल ही में एक ऐसी फोटो शेयर की है। जिसको देखकर आपको भी वो पुराने दिन याद आ जाएंगे।
कभी ऐसे हुआ करता था बारात का स्वागत
उन्होंने ट्विटर पर इस फोटो को शेयर किया है। वो लिखते हैं, ‘एक समय गांव में बारात का स्वागत ऐसे हुआ करता था।’ हालांकि यह तो नहीं पता कि यह तस्वीर कहां की है लेकिन इतना जरूर है कि हम सबकी यादों में कोई ना कोई ऐसी बारात की तस्वीर जरूर होगी।
कभी ना कभी हम ऐसी बारात का हिस्सा जरूर बने होंगे। फोटो में देखा जा सकता है कि एक बुजुर्ग शख्स चारपाई पर बैठे हैं और चारपाइयों के साथ कुर्सियां भी सजी पड़ी हैं।
लोगों को याद आ गए पुराने दिन
लोगों ने जैसे ही इस फोटो को देखा तो उन्हें अपने पुराने दिन याद आ गए। इनका कहना है, ‘और 3 दिन रुकती थी। पहले दिन अगवानी एवं विवाह ,दूसरे दिन शिष्टाचार, तीसरे दिन विदाई। बारातियों के लिए नाच गाने का इंतजाम भी रहता था। बारात गांव के स्कूल या बगिया में रुकती थी। क्या आपने कभी ऐसी बारात अटैंड की है?’
आज भी ऐसे ही रुकती है बारात
वहीं एक यूजर का कहना है, ‘यह दृश्य सरहदी बाड़मेर-जैसलमेर के सिंधी मुसलमानों के गांव का है। यहां आज भी जान का डेरा (बारात) बेहद प्यार मोहब्बत से ऐसे ही सजाया जाता है।’
इनका कहना है, ‘मुझे याद है बचपन में जब शादी पड़ती थी, पूरे गांव में खटिया,गद्दा, चद्दर,और तकिया मांगी जाती थी। सबका रिकॉर्ड रखा जाता था और उनपे नाम लिख दिया जाता था, किसके यहां से क्या आया है।’
पहले प्यार था लोगों में
लोगों को प्यार की कमी भी आजकल शादियों में खल रही है। ‘और खाट भी पूरे गांव से इकट्ठा की जाती थी। गजब का लोगों में समझ थी और आपसी प्रेम। गांव के तमाम पुरवे से मैने खुद इकठ्ठा की थी कभी। आज तो सारा काम टेंट वाले ले गए।’
बस आज महिलाओं के गीत डीजे की आवाज में गुम हो गए
वहीं इन्होंने लिखा, ‘साहब , हमारें गावों में आज भी ऐसा होता हैं लेकिन कुछ बदलाव भी आ गया अब डीजे के शोर-शराबे में वो महिलाओं के गीत नहीं सुनाई देते,अब बारातें रात को रूकती नहीं,और अब प्रेम-भाईचारा भी इतना नहीं रहा, जो बारातियों की अच्छी खातेदारी करे लोग।’
अरे ये बात तो भूल गए थे
और कोल्ड ड्रिंक बांटने वाले शख्स की डिमांड दूल्हे से ज्यादा होती थी… (सुबह के लिए बॉटल का इन्तेजाम उसी के द्वारा होता था… वैसे आपने कभी ऐसी बारात का हिस्सा बने हैं, या आपने कभी ऐसी बारात का स्वागत किया है?

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