रोज निर्भया जैसी 77 बेटियों से दरिंदगी, तारीखों में उलझ जाती है पीड़िताओं की पुकार

16 दिसंबर 2012 को निर्भया से दरिंदगी ने देश को झकझोर कर रख दिया. इसके बाद देशभर में फास्ट ट्रैक कोर्ट से ऐसे मामलों को निपटाए जाने की मांग तेज हो गई. हालांकि, इस मामले के दोषियों को सजा मिलने में सात साल का समय लग गया|

आंकड़ों के मुताबिक, 2020 में रोजाना औसतन 77 दुष्कर्म के मामले सामने आए. रेप और पोक्सो के मामलों के जल्द निपटारे के लिए इन्हें फास्ट ट्रैक कोर्ट में भेजे जाने का प्रावधान है, लेकिन सवाल ये है कि रोजाना रेप के केस बढ़ना और न्याय मिलने में देरी, इन अदालतों की तेजी पर सवालिया निशान खड़ा करता है. ऐसे में यह कोर्ट्स इंसाफ दिलाने में कितने कारगर हैं?

एडवोकेट रत्ना अग्रवाल का कहना है कि एक केस में कई विटनेस होते हैं. इतने गवाहों को जल्दी-जल्दी सुनना मुश्किल है तो वहीं, फास्ट ट्रैक कोर्ट में जघन्य अपराध के मामले जाते हैं, जिनकी चार्जशीट फाइल होने में 60 दिन से ज्यादा का समय लग जाता है. कई बार सप्लीमेंट्री चार्जशीट भी फाइल हो जाती है|

फॉरेंसिक रिपोर्ट आने और कॉल डिटेल्स निकालने में लगने वाले समय के कारण देर होती है. जब तक मामला कोर्ट में पहुंचता है तब तक चार्जशीट भी पूरी नहीं होती है जिसके कारण वकील बहस नहीं कर पाते. ये वे खामियां हैं जिनकी वजह से मामले की सुनवाई में देरी होती है |

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