एक ऐसा शख्श जिनसे सिर्फ 300 रुपयों से जीती थी विधायकी, जानिए कौन है वो शख्श

भले ही आज राजनीति में धन का बोलबाला हो गया हो, लेकिन तीन दशक पहले तक ऐसा नहीं था। बाराबंकी के हैदरगढ़ से एक बार निर्दलीय और दो बार भाजपा से विधायक रहे सुंदरलाल दीक्षित तो मानते हैं कि पैसा आज भी बहुत मायने नहीं रखता। बशर्ते राजनीति पूरी ईमानदारी और सेवाभाव से की जाए। वह बताते हैं, मैंने 1977 में जब पहला चुनाव लड़ा तो मेरे पास सिर्फ 300 रुपये थे।  लोगों ने मदद की। चुनाव जीतने के बाद भी मेरे जेब में 480 रुपये बचे हुए थे।

राजनीति में कैसे आए, इस सवाल पर अक्खड़, फक्खड़ और अपने में मस्त रहने वाले पूर्व विधायक दीक्षित जो कुछ बताते हैं वह दिल को छू जाता है। कहते हैं, युवावस्था में गरीबों के लिए संघर्ष करता था। यही जिंदगी का एक मकसद था। उसी दौरान जॉर्ज फर्नांडीज से प्रभावित हुआ और राजनीति में आ गया। आपातकाल के बाद मैंने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर हैदरगढ़ से नामांकन दाखिल कर दिया।

मेरे सामने थे कांग्रेस के दिग्गज नेता श्यामलाल वाजपेयी और जनता पार्टी के जंगबहादुर वर्मा। जनता पार्टी का गठन कांग्रेस विरोधी कई दलों को मिलाकर हुआ था। दोनों लोग धन एवं समीकरणों में काफी मजबूत थे। यकीन नहीं होगा कि उस समय मेरे पास महज 300 रुपये ही थे। फिर भी चुनाव मैदान में उतर गया।

धमकी देने वाले ने मदद भी की और वोट भी दिए

दीक्षित बताते हैं, चुनाव के दौरान ही एक अजीब वाकया हुआ। मुझे धमकाया जाने लगा। कुछ लोग थे जो यह धमकी दे रहे थे। मैं सीधे उसी गांव पहुंच गया जहां के दबंग व्यक्ति की तरफ से मुझे धमकी मिली थी। गांव के लोगों से कहा, ‘भैया हमारी क्या खता है, जो हमें मारने की धमकी दी जा रही है।’

गांव वाले हमारे साथ उस व्यक्ति के घर पहुंचे। हमने उनसे भी पूछा, ‘भैया हमारी क्या गलती है जो हमें मारने की बात कह रहे हो। कोई गलती हो तो मैं खुद आ गया हूं। सजा दे लो।’ यह सुनकर वे काफी शर्मिंदा हुए। मुझे तख्त पर बैठाया। माफी मांगी और उन्होंने वादा किया कि वह ही नहीं उनका पूरा गांव पूरी ताकत से साथ मेरा साथ देगा।

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