आखिर क्या है रिवर फ्रंट घोटाला ?

आर जे न्यूज़ 

आरोप  का स्पष्टीकरण
उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में लखनऊ में गोमती नदी के किनारे सौंदर्यीकरण की एक महत्वाकांक्षी योजना तैयार की गई थी. गोमती नदी के किनारों को गुजरात के साबरमती नदी के किनारे बने रिवरफ़्रंट की तर्ज़ पर सजाने की योजना बनी थी. तत्कालीन राज्य सरकार ने इस परियोजना के लिए 1513 करोड़ रुपये मंज़ूर किए थे.

आरोप हैं कि 95 फ़ीसद बजट ख़र्च करने के बावजूद काम पूरा नहीं किया गया. परियोजना में शामिल इंजीनियरों पर दाग़ी कंपनियों को काम देने, विदेशों से महंगा सामान ख़रीदने, नेताओं और अधिकारियों के विदेश दौरे में फ़िज़ूलख़र्ची करने और मानकों के अनुरूप काम न करने जैसे आरोप हैं.

मई, 2017 में रिटायर्ड जज आलोक कुमार सिंह की अध्यक्षता में इस परियोजना में कथित घोटाले की सरकार ने न्यायिक जाँच कराई जिसमें कई ख़ामियां उजागर होने और न्यायिक जाँच की रिपोर्ट के आधार पर राज्य सरकार ने इसकी सीबीआइ जाँच की सिफ़ारिश की थी.

दिसंबर 2017 सीबीआई ने जाँच शुरू की. इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय भी मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज कर जाँच कर रहा है.

बीजेपी द्वारा लगा आरोप 

लखनऊ में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने गोमती को सुन्दर और प्रवाहमान बनाने के लिए 550 करोड़ रुपये की लागत से गोमती रिवरफ़्रंट नाम की जो योजना शुरू की थी, वह उनके कार्यकाल में क़रीब 1600 करोड़ रुपये तक पहुँचने के बाद भी अधूरी ही रह गई थी.

इस परियोजना पर काम भी काफ़ी तेज़ी से हुआ लेकिन सरकार का कार्यकाल इससे पहले ही पूरा हो गयासमाजवादी पार्टी सत्ता से बाहर हो गई

रिवरफ़्रंट की ख़ूबसूरती के लिए हुए निर्माण कार्य पर न सिर्फ़ भ्रष्टाचार की शिकायतें आईं बल्कि पर्यावरण से संबंधित भी कई गंभीर आपत्तियां दर्ज हुईं लेकिन इसके बन जाने के बाद आज यह लखनऊ का सबसे अहम पर्यटन स्थल बन चुका है.

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