जम्मू कश्मीर में दम तोड़ रहा आतंकवाद, भारी संख्या में आतंकी कर रहे सरेंडर

आर जे न्यूज़-

अनुच्छेद 370 निरस्त होने के डेढ़ साल के भीतर ही जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद अंतिम सांसें गिन रहा है। आतंकवाद से जुड़े सारे आंकड़े इसकी पुष्टि कर रहे हैं। घाटी में सक्रिय आतंकियों की संख्या न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है। जो बचे हैं उनमें भी ज्यादातर स्थानीय और नए आतंकी हैं। मुठभेड़ के दौरान भी बड़ी संख्या में आतंकी आत्मसमर्पण कर रहे हैं। पत्थरबाजी की घटनाओं में भी भारी कमी आई है।

सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार घाटी में फिलहाल सिर्फ 45 आतंकी ही सक्रिय हैं। इनमें अधिकांश स्थानीय और नए भर्ती हुए युवा हैं। सुरक्षा एजेंसियां युवाओं के आइकॉन बने पुराने आतंकी सरगनाओं को मार गिराने में सफल रही है।

सुरक्षा बलों की मुस्तैदी के कारण सीमा पार से आतंकियों की घुसपैठ मुश्किल हो गई है। पाकिस्तान ने सीमा के आरपार सुरंग खोदकर आतंकियों को भेजने का चाल जरूर चली लेकिन यह बहुत दिनों तक सफल नहीं हो पाई। सुरक्षा बलों ने पिछले कुछ महीने में एक के बाद एक चार सुरंगों का पता लगाकर उन्हें बंद कर दिया। हालात यह है कि घाटी में सक्रिय आतंकियों में मुश्किल से एक या दो आतंकी ही विदेशी बचे हैं।

एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार स्थानीय और नए आतंकी सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में ज्यादा समय तक टिक नहीं पाते। इनमें से बहुत सारे आतंकियों ने मुठभेड़ के दौरान सुरक्षा बलों और परिवार वालों की अपील के बाद आत्मसमर्पण कर दिया। 2020 में ऐसे कुल 22 आतंकियों ने मुठभेड़ के बीच आत्मसमर्पण का रास्ता चुना।

आतंकवादियों के गिरते मनोबल का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 2019 में जहां कुल 555 आतंकी घटनाएं हुई, वहीं 2020 में केवल 142 घटनाएं ही दर्ज की गईं। गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि निश्चित रूप से जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों का पलड़ा भारी है। आतंकियों के लिए छुपने की जगह कम पड़ने लगी है।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में पांच अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के पहले और आज की स्थिति में अंतर का साफ-साफ देखा जा सकता है। इस दौरान न सिर्फ घाटी में आतंकियों की संख्या घटी है, बल्कि उन्हें समर्थन देने वालों का मनोबल भी कमजोर हुआ है। 2019 में घाटी में कुल 30 से अधिक बार बंद और हड़ताल का एलान किया गया था।

लेकिन 2020 में इसकी संख्या मुश्किल से आधा दर्जन रह गई। इसी तरह मुठभेड़ के स्थानों पर आतंकियों के समर्थन में या विरोध प्रदर्शनों के दौरान पत्थरबाजी की घटनाएं घाटी में सामान्य बात बन गई थीं। 2019 में दो हजार से अधिक पत्थरबाजी की घटनाएं दर्ज की गई, लेकिन 2020 में यह कम होकर लगभग 300 रह गई।

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