दिनाँक -: 09/12/2020, बुधवार
नवमी, कृष्ण पक्ष
मार्गशीर्ष
“””””””””””””””””””””””””””””””””””””(समाप्ति काल)
तिथि ———-नवमी 15:16:53 तक
पक्ष —————————-कृष्ण
नक्षत्र ———उ०फा०12:31:38
योग ——-आयुष्मान 22:42:19
करण ————–गर 15:16:53
करण ———वणिज 26:06:51
वार ————————–बुधवार
माह ———————— मार्गशीर्ष
चन्द्र राशि ———————कन्या
सूर्य राशि ——————–वृश्चिक
रितु —————————–शरद
आयन —————– दक्षिणायण
संवत्सर ———————–शार्वरी
संवत्सर (उत्तर)————- प्रमादी
विक्रम संवत —————-2077
विक्रम संवत (कर्तक)——2077
शाका संवत —————-1942
वृन्दावन
सूर्योदय —————–06:59:40
सूर्यास्त —————–17:23:44
दिन काल ————–10:24:04
रात्री काल ————-13:36:36
चंद्रास्त —————-13:36:36
चंद्रोदय —————–25:55:53
लग्न —- वृश्चिक 23°17′ , 233°17′
सूर्य नक्षत्र ——————ज्येष्ठा
चन्द्र नक्षत्र ———उत्तराफाल्गुनी
नक्षत्र पाया ——————–रजत
??? पद, चरण ???
पी —-उत्तर फाल्गुनी 12:31:38
पू —-हस्त 18:08:36
ष —-हस्त 23:43:58
ण —-हस्त 29:17:48
??? ग्रह गोचर ???
ग्रह =राशी , अंश ,नक्षत्र, पद
========================
सूर्य=वृश्चिक 23°52 ‘ ज्येष्ठा , 2 या
चन्द्र = कन्या 06°23′ उ०फा०’ 3 पा
बुध = वृश्चिक 17°07 ‘ ज्येष्ठा’ 1 नो
शुक्र= तुला 27 °55, विशाखा ‘ 2 तू
मंगल=मीन 24°30’ रेवती ‘ 3 च
गुरु=धनु 02°22 ‘ उ oषा o , 2 भो
शनि=मकर 03°43’ उ oषा o ‘ 3 जा
राहू=(व)वृषभ 26°00 ‘मृगशिरा , 1 वे
केतु=(व)वृश्चिक 26°00 ज्येष्ठा , 3 यी
???शुभा$शुभ मुहूर्त???
राहू काल 12:12 – 13:30 अशुभ
यम घंटा 08:18 – 09:36 अशुभ
गुली काल 10:54 – 12:12 अशुभ
अभिजित 11:51 -12:33 अशुभ
दूर मुहूर्त 11:51 – 12:33 अशुभ
?चोघडिया, दिन
लाभ 06:59 – 08:18 शुभ
अमृत 08:18 – 09:36 शुभ
काल 09:36 – 10:54 अशुभ
शुभ 10:54 – 12:12 शुभ
रोग 12:12 – 13:30 अशुभ
उद्वेग 13:30 – 14:48 अशुभ
चर 14:48 – 16:06 शुभ
लाभ 16:06 – 17:24 शुभ
?चोघडिया, रात
उद्वेग 17:24 – 19:06 अशुभ
शुभ 19:06 – 20:48 शुभ
अमृत 20:48 – 22:30 शुभ
चर 22:30 – 24:12* शुभ
रोग 24:12* – 25:54* अशुभ
काल 25:54* – 27:36* अशुभ
लाभ 27:36* – 29:18* शुभ
उद्वेग 29:18* – 31:00* अशुभ
?होरा, दिन
बुध 06:59 – 07:52
चन्द्र 07:52 – 08:44
शनि 08:44 – 09:36
बृहस्पति 09:36 – 10:28
मंगल 10:28 – 11:20
सूर्य 11:20 – 12:12
शुक्र 12:12 – 13:04
बुध 13:04 – 13:56
चन्द्र 13:56 – 14:48
शनि 14:48 – 15:40
बृहस्पति 15:40 – 16:32
मंगल 16:32 – 17:24
?होरा, रात
सूर्य 17:24 – 18:32
शुक्र 18:32 – 19:40
बुध 19:40 – 20:48
चन्द्र 20:48 – 21:56
शनि 21:56 – 23:04
बृहस्पति 23:04 – 24:12
मंगल 24:12* – 25:20
सूर्य 25:20* – 26:28
शुक्र 26:28* – 27:36
बुध 27:36* – 28:44
चन्द्र 28:44* – 29:52
शनि 29:52* – 31:00
नोट– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है।
प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥
रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार ।
अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥
अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें ।
उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें ।
लाभ में व्यापार करें ।
रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें ।
काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है ।
अमृत में सभी शुभ कार्य करें ।
?दिशा शूल ज्ञान———————उत्तर
परिहार-: आवश्यकतानुसार यदि यात्रा करनी हो तो पान अथवा पिस्ता खाके यात्रा कर सकते है l
इस मंत्र का उच्चारण करें-:
शीघ्र गौतम गच्छत्वं ग्रामेषु नगरेषु च l
भोजनं वसनं यानं मार्गं मे परिकल्पय: ll
? अग्नि वास ज्ञान -:
यात्रा विवाह व्रत गोचरेषु,
चोलोपनिताद्यखिलव्रतेषु ।
दुर्गाविधानेषु सुत प्रसूतौ,
नैवाग्नि चक्रं परिचिन्तनियं ।। महारुद्र व्रतेSमायां ग्रसतेन्द्वर्कास्त राहुणाम्
नित्यनैमित्यके कार्ये अग्निचक्रं न दर्शायेत् ।।
15 + 9 + 4 + 1 = 29 ÷ 4 = 1 शेष
पाताल लोक पर अग्नि वास हवन के लिए अशुभ कारक है l
? शिव वास एवं फल -:
24 + 24 + 5 = 52 ÷ 7 = 3 शेष
वृषभारूढ़ = शुभ कारक
?भद्रा वास एवं फल -:
स्वर्गे भद्रा धनं धान्यं ,पाताले च धनागम:।
मृत्युलोके यदा भद्रा सर्वकार्य विनाशिनी।।
रात्रि 26:04 से प्रारम्भ
पाताल लोक = धनलाभ कारक
?? विशेष जानकारी ??
* सर्वार्थसिद्धि योग 12:32 से
??? शुभ विचार ???
अग्निर्देवो द्विजातीनां मुनीनां हृदि दैवतम् ।
प्रतिमा त्वल्पबुध्दीनां सर्वत्र समदर्शिनाम् ।।
।।चा o नी o।।
द्विज अग्नि में भगवान् देखते है.
भक्तो के ह्रदय में परमात्मा का वास होता है.
जो अल्प मति के लोग है वो मूर्ति में भगवान् देखते है.
लेकिन जो व्यापक दृष्टी रखने वाले लोग है, वो यह जानते है की भगवान सर्व व्यापी है.
??? सुभाषितानि ???
गीता -: आत्मसंयमयोग अo-06
असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् ।,
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ॥,
श्री भगवान बोले- हे महाबाहो! निःसंदेह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है।, परन्तु हे कुंतीपुत्र अर्जुन! यह अभ्यास (गीता अध्याय 12 श्लोक 9 की टिप्पणी में इसका विस्तार देखना चाहिए।,) और वैराग्य से वश में होता है॥,35॥,