भाजपा के नाराज विधायकों मे से कोई भी हो सकता है सपा का 11वां प्रत्याशी, जानिए क्यों

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नामांकन की समयसीमा पूरी होने से कुछ मिनट पहले प्रकाश बजाज ने सपा के कुछ विधायकों के समर्थन से पर्चा दाखिल कर राज्यसभा चुनाव में सियासी रंग भर दिए हैं। कुछ अप्रत्याशित न हुआ तो चुनाव होना तय है। बजाज ने जिस तरह सपा के विधायकों के समर्थन से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पर्चा दाखिल किया है, उससे यह पूरा घटनाक्रम सपा की सियासी रणनीति का हिस्सा नजर आता है। इसके पीछे भाजपा की उलझन बढ़ाने के साथ बसपा को भी सियासी मात देने की मंशा दिखती है।
सपा नेतृत्व ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। बजाज को उतारकर जहां एक ओर बसपा उम्मीदवार के राज्यसभा जाने के रास्ते को पेचीदा बनाकर उसे यूपी में आसान सियासी बढ़त लेने से रोकने की कोशिश की है। साथ ही भाजपा में कुछ विधायकों की मुखर हो रही नाराजगी पर भी सियासी निशाना साधकर राजनीतिक बिसात पर भगवा टोली को मात देने की चाल चली है। यही नहीं, सपा बजाज को समर्थन देने के साथ लोगों के दिमाग में बसपा और भाजपा में अंदरूनी गठजोड़ की बात भी बैठाना चाह रही है।
ये है वजह: भाजपा के जिन विधायकों की नाराजगी कई बार सोशल मीडिया पर सामने आई है उनमें कुछ पहले सपा से भी विधायक रह चुके हैं। अगर इनमें एक-दो के वोट भी किन्हीं कारणों से बजाज को मिल जाते हैं तो सपा नेतृत्व की चाल सफल हो जाएगी। हालांकि राज्यसभा चुनाव की इस बार की अंकगणित देखते हुए भाजपा के दो-चार वोट भी इधर-उधर होने से उसके उम्मीदवारों की जीत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है, लेकिन सपा को भाजपा में बगावत का सियासी संदेश देने और सरकार को घेरने का मौका तो मिल ही जाएगा। सपा की उम्मीद पूरी होगी या नहीं यह तो भविष्य बताएगा, लेकिन प्रकाश बजाज के नामांकन ने लोगों की दिलचस्पी जरूर बढ़ा दी है।
ये है चुनावी गणित: राज्यसभा चुनाव प्रक्रिया से जुड़े विधानसभा के आधिकारिक सूत्रों के अनुसार निर्धारित प्रक्रिया के आधार पर इस बार एक उम्मीदवार का प्रथम वरीयता के वोटों का कोटा लगभग 36 आ रहा है। कारण, इस समय विधायकों की संख्या 395 ही है। इसमें भी सिर्फ  392 के ही वोट पड़ेंगे, क्योंकि जेल में बंद तीन विधायक मुख्तार अंसारी, तजीन फातिमा और विजय मिश्र वोट डालने नहीं आ पाएंगे।
इस लिहाज से भाजपा आराम से अपने आठों उम्मीदवार प्रथम वरीयता के वोटों से ही निकाल सकती है। फिर भी उसके पास अपना दल के विधायकों तथा सपा-बसपा के बागी विधायकों सहित कम से कम 25 वोट अतिरिक्त बचते हैं। तब भी उसने नौवां उम्मीदवार नहीं उतारा तो उसकी मुख्य वजह उसकी सुरक्षित चाल चलने की रणनीति ही रही, क्योंकि पार्टी के रणनीतिकार कोई ऐसा मौका नहीं देना चाहते थे कि विपक्ष को मनोवैज्ञानिक बढ़त मिले, लेकिन सपा ने अपनी चाल से उसे सियासी चौसर पर उलझाने की कोशिश की है।
इनका रुख अहम: बजाज के 11वें उम्मीदवार के रूप में उतरने से ओमप्रकाश राजभर की पार्टी, कुछ निर्दलीय के साथ अपना दल विधायकों का भी रुख महत्वपूर्ण हो गया है। यदि मतदान की नौबत आती है तो ये देखने वाला होगा कि इनका वोट किधर जाता है।
सपा के पास अतिरिक्त बच रहे वोटों के साथ वह बजाज को जिताने के लिए जरूरी वोटों का प्रबंधन कैसे करती है। कारण, राज्यसभा चुनाव प्रक्रिया के अनुसार विधायक को वोट डालने से पहले अपना वोट मतदान केंद्र में मौजूद पार्टी के प्रतिनिधि को दिखाना जरूरी होता है।

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