23 वर्षीय महिला के पित्ताशय की पथरी की लेप्रोस्कोपिक सर्जरी से सफलतापूर्वक इलाज

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फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एफएमआरआई), गुरूग्राम में सिंगल इंसिजन लेप्रोस्कोपिक सर्जरी की मदद से जम्मू निवासी 23 वर्षीय महिला के पित्ताशय की पथरी का सफलतापूर्वक इलाज किया गया। मरीज के पेट के निचले हिस्से में कई दिनों से तेज दर्द हो रहा था। अल्ट्रासाउंड करने पर पित्ताशय में पथरी का पता चला। समस्या गंभीर थी, इसलिए मरीज को लेप्रोस्कोपिक कोलेसिस्टेक्टॉमी की सलाह दी गई।
इस प्रक्रिया में 4 चीरे लगाने पड़ते हैं और रिकवरी में भी ज्यादा समय लगता है। जम्मू में कई अस्पतालों में परामर्श लेने के बाद, मरीज को गुरूग्राम स्थित फोर्टिस अस्पताल में लाया गया, जहां मरीज का ऑपरेशन स्कारलेस लेप्रोस्कोपिक कोलेसिस्टेक्टॉमी की मदद से किया गया। यह पूरी प्रक्रिया डॉ. ए. के. कृपलानी, निदेशक व एचओडी, मिनिमल एक्सेस बैरियाट्रिक एंड जीआई सर्जरी, फोर्टिस हॉस्पिटल, गुरूग्राम के मार्गदर्शन में उनकी टीम द्वारा की गई।
डॉ. ए. के. कृपलानी ने बताया कि, “सिंगल इंसिजन लेप्रोस्कोपिक सर्जरी (एसआईएलएस), लेप्रोस्कोपिक सर्जरी करने का एक बिल्कुल नया और अनोखा तरीका है। इस तकनीक में नाभि के बिल्कुल बीचों-बीच 12 एमएम (1/2 इंच) छोटा केवल एक चीरा लगाना पड़ता है। कट छोटा होने के कारण मरीज को दर्द कम होता है और रिकवरी भी जल्दी होती है। पित्ताशय की मल्टीपोर्ट सर्जरी के विपरीत, इसमें शरीर के अंदर मेटल चिप की आवश्यकता नहीं होती है। आखिर में, चीरे को एक खास तरीके के वाटरप्रूफ ग्लू से बंद कर दिया जाता है। इसमें टांकों और ड्रेसिंग की आवश्यकता नहीं पड़ती है। मरीज सर्जरी के 48 घंटों में नहा सकता है और 4-5 दिनों में सामान्य जीवन में वापस लौट सकता है।”
डॉ. कृपलानी ने केस के बारे में समझाते हुए कहा कि, “मरीज जब हमारे पास आई तो वह बहुत डरी हुई थी क्योंकि सामान्य लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में पथरी को निकालने के लिए 4 कट (2 कट 12 एमएम के और 2 कट 6 एमएम के) लगाने पड़ते हैं। इसमें पित्ताशय को बंद करने के लिए मेटल चिप का उपयोग किया जाता है, जो आजीवन समस्या बनी रहती है। चूंकि, महिला पेशे से एक मॉडल थी, इसलिए वह निशानों और घावों को लेकर परेशान थी। हमने उसकी उचित रूप से काउंसिंग की जिसके बाद वह एसआईएलएस प्रक्रिया के लिए तुरंत तैयार हो गई। सर्जरी के अगले ही दिन उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया।
सर्जरी के 5वें दिन जब मरीज फॉलोअप चेकअप के लिए आई तो वह परिणामों से बेहद खुश नजर आई।”एफएमआरआई में मिनिमल एक्सेस बैरियाट्रिक एंड जीआई सर्जरी की निदेशक, डॉ. रशमी प्यासी ने बताया कि, “एसआईएलएस की सफलता पूरी तरह सर्जनों के कौशल और अनुभव पर निर्भर करती है। बीमारी की गंभीरता एक महत्वपूर्ण कारक होता है। बार-बार दर्द उठना, संक्रमण और इलाज में देरी एसआईएलएस को चुनौतीपूर्ण बना देता है।
बेहतरीन कौशन और गंभीर ट्रेनिंग की जरूरत के साथ, यह तकनीक केवल कुछ ही केंद्रों में नियमित रूप से इस्तेमाल की जाती है।” मरीज ने बताया कि, “मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा है कि मैं किसी सर्जरी से गुजरी हूँ। मेरे शरीर पर एक भी निशान नहीं है और मुझे बेहद खुशी है। सर्जरी को एक हफ्ता भी नहीं हुआ था और मैं अपना काम फिर से शुरू कर पाई। मॉडलिंग के सारे असाइनमेंट मुझे वापस मिल गए हैं। मैं इस सर्जरी और मदद के लिए डॉक्टर की बहुत-बहुत आभारी हूँ।  ”
 Best Regards
Umesh Kumar Singh
Manager
Sampreshan News Service Pvt Ltd.
9953807842

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