आज का पंचांग 21 अगस्त 2020

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*********|| जय श्री राधे ||*********
?? *महर्षि पाराशर पंचांग* ??
??? *अथ  पंचांगम्* ???
*********ll जय श्री राधे ll*********
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*दिनाँक-: 21/08/2020,शुक्रवार*
तृतीया, शुक्ल पक्ष
भाद्रपद
“”””””””””””””””””””””””””””””””””””(समाप्ति काल)
तिथि ———तृतीया 23:02:18        तक
पक्ष —————————-शुक्ल
नक्षत्र ——–उ०फा० 21:27:58
योग ————-सिद्ध 13:59:36
करण ———–तैतुल 12:37:24
करण ————–गर 23:02:18
वार ————————-शुक्रवार
माह ———————— भाद्रपद
चन्द्र राशि    ——————-कन्या
सूर्य राशि   ——————— सिंह
रितु —————————–वर्षा
आयन —————– दक्षिणायण
संवत्सर ———————–शार्वरी
संवत्सर (उत्तर)————- प्रमादी
विक्रम संवत ————— 2077
विक्रम संवत (कर्तक) —-2076
शाका संवत —————-1942
वृन्दावन
सूर्योदय —————-05:54:07
सूर्यास्त —————–18:49:56
दिन काल ————-12:55:49
रात्री काल ————-11:04:39
चंद्रोदय —————-07:59:13
चंद्रास्त —————–20:45:45
लग्न —-सिंह 4°17′ , 124°17′
सूर्य नक्षत्र ——————–मघा
चन्द्र नक्षत्र ———उत्तराफाल्गुनी
नक्षत्र पाया ——————-रजत
*???  पद, चरण  ???*
टो —- उत्तरा फाल्गुनी 10:38:58
पा —-उत्तरा फाल्गुनी 16:03:24
पी —-उत्तरा फाल्गुनी 21:27:58
पू —-हस्त 26:52:47
*???  ग्रह गोचर  ???*
        ग्रह =राशी   , अंश  ,नक्षत्र,  पद
========================
सूर्य=सिंह 04°22 ‘  मघा    ,      2   मी
चन्द्र = कन्या00°23 ‘उoफा o’     2   टो
बुध = सिंह 07°57 ‘    मघा    ‘   3  मू
शुक्र= मिथुन 18°55,   आर्द्रा  ‘     4   छ
मंगल=मेष  00°30’      अश्विनी ‘ 1    चु
गुरु=धनु  24°22 ‘   पू oषा o ,    4   ढा
शनि=मकर 04°43’ उ oषा o   ‘ 3   जा
राहू=मिथुन 01°50  ‘  मृगशिरा ,   3  का
केतु=धनु  01 ° 50 ‘       मूल    , 1    ये
*???शुभा$शुभ मुहूर्त???*
राहू काल 10:45 – 12:22 अशुभ
यम घंटा 15:36 – 17:13 अशुभ
गुली काल 07:31 – 09:08  अशुभ
अभिजित 11:56 -12:48 शुभ
दूर मुहूर्त 08:29 – 09:21 अशुभ
दूर मुहूर्त 12:48 – 13:40 अशुभ
?चोघडिया, दिन
चर 05:54 – 07:31 शुभ
लाभ 07:31 – 09:08 शुभ
अमृत 09:08 – 10:45 शुभ
काल 10:45 – 12:22 अशुभ
शुभ 12:22 – 13:59 शुभ
रोग 13:59 – 15:36 अशुभ
उद्वेग 15:36 – 17:13 अशुभ
चर 17:13 – 18:50 शुभ
?चोघडिया, रात
रोग 18:50 – 20:13 अशुभ
काल 20:13 – 21:36 अशुभ
लाभ 21:36 – 22:59 शुभ
उद्वेग 22:59 – 24:22* अशुभ
शुभ 24:22* – 25:45* शुभ
अमृत 25:45* – 27:08* शुभ
चर 27:08* – 28:32* शुभ
रोग 28:32* – 29:55* अशुभ
?होरा, दिन
शुक्र 05:54 – 06:59
बुध 06:59 – 08:03
चन्द्र 08:03 – 09:08
शनि 09:08 – 10:13
बृहस्पति 10:13 – 11:17
मंगल 11:17 – 12:22
सूर्य 12:22 – 13:27
शुक्र 13:27 – 14:31
बुध 14:31 – 15:36
चन्द्र 15:36 – 16:41
शनि 16:41 – 17:45
बृहस्पति 17:45 – 18:50
?होरा, रात
मंगल 18:50 – 19:45
सूर्य 19:45 – 20:41
शुक्र 20:41 – 21:36
बुध 21:36 – 22:32
चन्द्र 22:32 – 23:27
शनि 23:27 – 24:22
बृहस्पति 24:22* – 25:18
मंगल 25:18* – 26:13
सूर्य 26:13* – 27:08
शुक्र 27:08* – 28:04
बुध 28:04* – 28:59
चन्द्र 28:59* – 29:55
*नोट*– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है।
प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥
रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार ।
अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥
अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें ।
उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें ।
लाभ में व्यापार करें ।
रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें ।
काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है ।
अमृत में सभी शुभ कार्य करें ।
*?दिशा शूल ज्ञान————-पश्चिम*
परिहार-: आवश्यकतानुसार यदि यात्रा करनी हो तो घी अथवा  काजू खाके यात्रा कर सकते है l
इस मंत्र का उच्चारण करें-:
*शीघ्र गौतम गच्छत्वं ग्रामेषु नगरेषु च l*
*भोजनं वसनं यानं मार्गं मे परिकल्पय: ll*
*?  अग्नि वास ज्ञान  -:*
*यात्रा विवाह व्रत गोचरेषु,*
*चोलोपनिताद्यखिलव्रतेषु ।*
*दुर्गाविधानेषु सुत प्रसूतौ,*
*नैवाग्नि चक्रं परिचिन्तनियं ।।* *महारुद्र व्रतेSमायां ग्रसतेन्द्वर्कास्त राहुणाम्*
*नित्यनैमित्यके कार्ये अग्निचक्रं न दर्शायेत् ।।*
   3 + 6 + 1 = 10  ÷ 4 = 2 शेष
आकाश लोक पर अग्नि वास हवन के लिए अशुभ कारक है l
*?    शिव वास एवं फल -:*
   3  + 3 + 5 =  11 ÷ 7 = 4 शेष
सभायां  = सन्ताप कारक
*?भद्रा वास एवं फल -:*
*स्वर्गे भद्रा धनं धान्यं ,पाताले च धनागम:।*
*मृत्युलोके यदा भद्रा सर्वकार्य विनाशिनी।।*
*??    विशेष जानकारी   ??*
* हरि तालिका व्रत
* केवड़ा तीज
* वराह जयन्ती
* गौरि व्रत (उड़ीसा)
*???   शुभ विचार   ???*
पठन्ति चतुरो वेदान् धर्मशास्त्राण्यनेकशः ।
आत्मानं नैव जानन्ति दवी पाकरसं यथा ।।
।।चा o नी o।।
   एक व्यक्ति को चारो वेद और सभी धर्मं शास्त्रों का ज्ञान है. लेकिन उसे यदि अपने आत्मा की अनुभूति नहीं हुई तो वह उसी चमचे के समान है जिसने अनेक पकवानों को हिलाया लेकिन किसी का स्वाद नहीं चखा.c
*???  सुभाषितानि  ???*
गीता -: राजविद्याराजगुह्ययोग अo-09
त्रैविद्या मां सोमपाः पूतपापायज्ञैरिष्ट्‍वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते।,
ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोकमश्नन्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान्‌ ॥,
तीनों वेदों में विधान किए हुए सकाम कर्मों को करने वाले, सोम रस को पीने वाले, पापरहित पुरुष (यहाँ स्वर्ग प्राप्ति के प्रतिबंधक देव ऋणरूप पाप से पवित्र होना समझना चाहिए) मुझको यज्ञों के द्वारा पूजकर स्वर्ग की प्राप्ति चाहते हैं, वे पुरुष अपने पुण्यों के फलरूप स्वर्गलोक को प्राप्त होकर स्वर्ग में दिव्य देवताओं के भोगों को भोगते हैं॥,20॥,

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