आज का पंचांग 7 अगस्त 2020

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*********|| जय श्री राधे ||*********
?? *महर्षि पाराशर पंचांग* ??
??? *अथ  पंचांगम्* ???
*********ll जय श्री राधे ll*********
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*दिनाँक -: 07/08/2020,शुक्रवार*
चतुर्थी, कृष्ण पक्ष
भाद्रपद
“””””””””””””””””””””””””””””””””””””(समाप्ति काल)
तिथि ———-चतुर्थी 26:05:40         तक
पक्ष —————————-कृष्ण
नक्षत्र ———पू०भा०13:32:15
योग ———–सुकर्मा 29:54:04
करण ————-बव 13:06:56
करण ———-बालव 26:05:40
वार ————————-शुक्रवार
माह ———————— भाद्रपद
चन्द्र राशि ——कुम्भ 06:56:03
चन्द्र राशि ———————मीन
सूर्य राशि ———————–कर्क
रितु —————————–वर्षा
आयन ——————दक्षिणायण
संवत्सर ———————–शार्वरी
संवत्सर (उत्तर) ————-प्रमादी
विक्रम संवत —————-2077
विक्रम संवत (कर्तक) —-2076
शाका संवत —————-1942
वृन्दावन
सूर्योदय —————-05:47:00
सूर्यास्त —————–19:02:28
दिन काल ————–13:15:27
रात्री काल ————-10:45:03
चंद्रास्त —————-08:50:59
चंद्रोदय —————–21:34:54
लग्न —- कर्क 20°50′ , 110°50′
सूर्य नक्षत्र —————आश्लेषा
चन्द्र नक्षत्र ———–पूर्वाभाद्रपदा
नक्षत्र पाया ——————-ताम्र
*???  पद, चरण  ???*
दा —-पूर्वाभाद्रपदा 06:56:03
दी —-पूर्वाभाद्रपदा 13:32:15
दू —-उत्तराभाद्रपदा 20:09:55
थ —-उत्तराभाद्रपदा 26:48:58
राहू काल 10:45 – 12:25 अशुभ
यम घंटा 15:44 – 17:23 अशुभ
गुली काल 07:26 – 09:06   अशुभ
अभिजित 11:58 -12:51 शुभ
दूर मुहूर्त 08:26 – 09:19 अशुभ
दूर मुहूर्त 12:51 – 13:44 अशुभ
?पंचक अहोरात्र अशुभ
?चोघडिया, दिन
चर 05:47 – 07:26 शुभ
लाभ 07:26 – 09:06 शुभ
अमृत 09:06 – 10:45 शुभ
काल 10:45 – 12:25 अशुभ
शुभ 12:25 – 14:04 शुभ
रोग 14:04 – 15:44 अशुभ
उद्वेग 15:44 – 17:23 अशुभ
चर 17:23 – 19:02 शुभ
?चोघडिया, रात
रोग 19:02 – 20:23 अशुभ
काल 20:23 – 21:44 अशुभ
लाभ 21:44 – 23:04 शुभ
उद्वेग 23:04 – 24:25* अशुभ
शुभ 24:25* – 25:46* शुभ
अमृत 25:46* – 27:06* शुभ
चर 27:06* – 28:27* शुभ
रोग 28:27* – 29:48* अशुभ
?होरा, दिन
शुक्र 05:47 – 06:53
बुध 06:53 – 07:59
चन्द्र 07:59 – 09:06
शनि 09:06 – 10:12
बृहस्पति 10:12 – 11:18
मंगल 11:18 – 12:25
सूर्य 12:25 – 13:31
शुक्र 13:31 – 14:37
बुध 14:37 – 15:44
चन्द्र 15:44 – 16:50
शनि 16:50 – 17:56
बृहस्पति 17:56 – 19:02
?होरा, रात
मंगल 19:02 – 19:56
सूर्य 19:56 – 20:50
शुक्र 20:50 – 21:44
बुध 21:44 – 22:37
चन्द्र 22:37 – 23:31
शनि 23:31 – 24:25
बृहस्पति 24:25* – 25:19
मंगल 25:19* – 26:13
सूर्य 26:13* – 27:06
शुक्र 27:06* – 28:00
बुध 28:00* – 28:54
चन्द्र 28:54* – 29:48
*नोट*– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है।
प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥
रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार ।
अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥
अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें ।
उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें ।
लाभ में व्यापार करें ।
रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें ।
काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है ।
अमृत में सभी शुभ कार्य करें ।
*?दिशा शूल ज्ञान————-पश्चिम*
परिहार-: आवश्यकतानुसार यदि यात्रा करनी हो तो घी अथवा  काजू खाके यात्रा कर सकते है l
इस मंत्र का उच्चारण करें-:
*शीघ्र गौतम गच्छत्वं ग्रामेषु नगरेषु च l*
*भोजनं वसनं यानं मार्गं मे परिकल्पय: ll*
*?  अग्नि वास ज्ञान  -:*
*यात्रा विवाह व्रत गोचरेषु,*
*चोलोपनिताद्यखिलव्रतेषु ।*
*दुर्गाविधानेषु सुत प्रसूतौ,*
*नैवाग्नि चक्रं परिचिन्तनियं ।।* *महारुद्र व्रतेSमायां ग्रसतेन्द्वर्कास्त राहुणाम्*
*नित्यनैमित्यके कार्ये अग्निचक्रं न दर्शायेत् ।।*
       15 + 4 + 6 + 1 = 26  ÷ 4 = 2 शेष
आकाश लोक पर अग्नि वास हवन के लिए अशुभ कारक है l
*?    शिव वास एवं फल -:*
   19 + 19 + 5 = 43  ÷ 7 = 1 शेष
कैलाश वास  = शुभ कारक
*?भद्रा वास एवं फल -:*
*स्वर्गे भद्रा धनं धान्यं ,पाताले च धनागम:।*
*मृत्युलोके यदा भद्रा सर्वकार्य विनाशिनी।।*
*??    विशेष जानकारी   ??*
* बहुला चतुर्थी व्रत (चंद्रोदय रात्रि21:37)
* बोल चतुर्थी (संकट चतुर्थी)
*रविन्द्र नाथ टैंगौर पुण्य तिथि
*???   शुभ विचार   ???*
धर्मं धनं च धान्यं च गुरोर्वचनमौषधम् ।
सुगृहीतं च कर्त्तव्यमन्यथा तु न जीवति ।।
।।चा o नी o।।
   हम निम्न लिखित बाते प्राप्त करे और उसे कायम रखे.
हमें पुण्य कर्म के जो आशीर्वाद मिले.
धन, अनाज, वो शब्द जो हमने हमारे अध्यात्मिक गुरु से सुने.
कम पायी जाने वाली दवाइया.
हम ऐसा नहीं करते है तो जीना मुश्किल हो जाएगा.
*???  सुभाषितानि  ???*
गीता -: राजविद्याराजगुह्ययोग अo-09
यथाकाशस्थितो नित्यं वायुः सर्वत्रगो महान्‌ ।,
तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय ॥,
जैसे आकाश से उत्पन्न सर्वत्र विचरने वाला महान्‌ वायु सदा आकाश में ही स्थित है, वैसे ही मेरे संकल्प द्वारा उत्पन्न होने से संपूर्ण भूत मुझमें स्थित हैं, ऐसा जान॥,6॥,

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