पैरों के नस में रक्त जम जाना-देता है “डीप वेन थ्रोमबोसिस” बीमारी, हो सकती है जानलेवा

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क्त का काम प्रवाहित होते रहना है। अगर धमनियों में होने वाला उसका यह प्रवाह थम जाए तो इसके जम जाने की संभावना उत्पन्न हो जाती है. डीप वेन थ्रोमबोसिस (डीवीटी) एक ऐसी नैदानिक स्थिति है जिसमें एक पैरों के नस में रक्त जम जाता है जो कि आंशिक या संपूर्ण रूप से रक्त के प्रवाह को अवरोधित कर डालता है. यह एक ऐसी रोग-विषयक स्थिति है जिसकी अक्सर ही अनदेखी कर दी जाती है और इस कारण से कई बार जानलेवा स्थिति उत्पन्न हो जाया करती है। सामान्य तौर पर पैर की नसें ही इसके प्रभाव में आया करती हैं। पैरों में सूजन, विशेष तौर पर टखने और पिंडली में सूजन, इस रोग का सबसे सामान्य लक्षण है। कुछ मरीजों को जांघों में भी तकलीफ हो सकती है जिसमें खड़े होने या टहलने के दौरान बढ़ोत्तरी हो जाया करती है। डीवीटी की स्थिति तब बहुत अधिक बिगड़ जाती है जब जमे हुए रक्त के टुकड़े अलग होकर रक्त के साथ प्रवाहित होते हुए फेफड़े तक पहुंच जाते हैं।
इस स्थिति को ‘‘पलमोनरी इंबोलिज्म’’ कहते हैं जिसमें जान जाने का भी खतरा रहता है। इसके अंतर्गत सीने में दर्द और सांस लेने में तकलीफ की शिकायत होती है। फेफड़े तक रक्त के थक्के के पहुंचने के 30 मिनट के अंदर मरीज की मृत्यु हो सकती है। सबसे अधिक परेशानी वाली बात यह है कि डीवीटी के 80 प्रतिशत मामलों में किसी तरह के लक्षण प्रकट नहीं होते इसलिए इसे लेकर विशेष रूप से सतर्क रहने की जरूरत है। खास बात यह है कि इस रोग के हमले के अधिक अवसर तब उत्पन्न होते हैं जब मरीज सक्रिय नहीं होता। बहुत लंबी हवाई, रेल या कार यात्रा के दौरान अक्सर ही यह रोग घेरता है जब शरीर लंबे समय तक एक ही स्थान पर स्थिर रहा करता है। यह इस तरह चुपके से आ धमकता है कि इसे ‘‘खामोश महामारी’’ भी कहा जाता है।
आजकल अल्ट्रासाउंड के माध्यम से डीवीटी का पता लगाया जा सकता है। चिकित्सकों का मानना है कि इसके माध्यम से छोटे से छोटे रक्त के थक्के का पता लगाया जा सकता है। रक्त की जांच से भी बहुत हद तक थ्रोमबोसिस के संकेत मिल जाया करते हैं। डीवीटी का पता लगाने  के लिए सामान्य तौर पर एक ऐसे प्रयोग का सहारा लिया जाता है जिसमें डी-डाइमर नाम के क्लॉटिंग मैटीरियल के बाई-प्रोडक्ट के स्तर का पता लगाया जाता है। ऐसे मरीज जिनके बारे में मालूम हो चुका है कि उन्हें डीवीटी है, उन्हें कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए ताकि परेशानी पैदा करने वाली जटिलताएं नहीं होने पाएं। एस्प्रीन जैसी रक्त को पतला करने वाली दवाओं के सेवन से रक्त के थक्के जमा होने के खतरे को कम किया जा सकता है। उदाहरण के लिए अगर लंबी रेल या
हवाई यात्रा पर जाना हो तो यात्रा आरंभ करने से पहले एस्प्रीन की हल्की मात्रा ले लेनी चाहिए। इसी तरह हवाई जहाज या ट्रेन में अपने केबिन या सीट के आस-पास तक चहलकदमी कर लेने से डीवीटी के खतरे को कम किया जा सकता है। पैरों के ऐसे बहुत से व्यायाम हैं जिन्हें अपनी जगह बैठे-बैठे ही किया जा सकता है। टखनों को घुमाते रहने या अंगुठे को हिलाते-डुलाते रहने से रक्त के पैरों की नसों में ठहर जाने का खतरा नहीं रहता। रक्त को अगर जमने नहीं दिया जाएगा या फिर जमे हुए रक्त के थक्के को फेफड़े तक नहीं पहुंचने दिया जाएगा तो फिर डीवीटी का खतरा नहीं रहेगा। जिन लोगों के डीवीटी का शिकार हो जाने का अधिक खतरा रहता है उन्हें कंप्रेशन स्टॉकिंस पहनने की सलाह दी जाती है।
पैरों के लिए विशेष तकिए बनाए गए हैं ताकि यात्रा करते हुए लोग उसकी सहायता से पैरों का व्यायाम कर सकें। हर हाल में सक्रिय रहना बहुत जरूरी है। आम तौर पर ऑपरेशन के कुछ समय बाद तक मरीज को अस्पताल में ही रहना पड़ता है ताकि उसे चिकित्सकों की निगाहों में रखा जाए और किसी भी तरह की जटिलता उत्पन्न होने पर तात्कालिक रूप से कार्रवाई की जा सके। इस दौरान उन मरीजों को जितनी जल्दी हो सके सक्रिय होने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। ऐसा होने पर डीवीटी का कम खतरा रहेगा। ऑपरेशन के विकल्प को बहुत कम अवसरों पर ही आजमाया जाता है।
यह पता लग जाने के बाद कि मरीज को डीवीटी है, उसे तत्काल ही इंजेक्शन के सहारे हेपैरिन दवा दी जाती है। जब मरीज इन दवाओं का सेवन कर रहा होता है तो बार-बार रक्त की जांच करवाते रहना चाहिए ताकि यह अंदाजा होता रहे कि मरीज को रक्त को पतला करने वाली इन दवाओं की सही मात्रा दी जा रही है या नहीं. ऐसा करके ही हैमरेज के खतरे को दूर रखा जा सकता है। डीवीटी के लक्षणों से राहत के लिए दर्दनाशक दवाओं का सेवन भी जरूरी है। मरीज को यह सलाह दी जाती है कि वह जितना भी हो सके उतना सक्रिय रहे। बहुत कम युवा ही डीवीटी के शिकार होते हैं और अक्सर इस रोग का हमला 40 वर्ष की आयु के बाद होता है। यह बीमारी चूंकि चुपके से हमला करती है इसलिए जैसे ही इसका अंदेशा हो तत्काल ही अपने चिकित्सक के संपर्क करना चाहिए।

डा.संजय अग्रवाला
हेड, आर्थोपेडिक्स
पी.डी.हिंदुजा नेशनल अस्पताल
मुबंई

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Umesh Kumar Singh
Manager
Sampreshan News Service Pvt Ltd.
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