राष्ट्रीयकरण के समय में निजीकरण का संदेश

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विगत वर्षो से भारतीय रेलवे के निजीकरण का मुद्दा भारतीय राजनीति में उठता रहा है, इसकी शुरुआत मौजूदा रेल्वे मंत्री पीयूष गोयल ने देश की पहली निजी ट्रेन को 4 अक्टूबर 2019 को हरि झंडी दिखाई
यह भारतीय रेल की ट्रेन नही बल्कि कॉरपोरेट ट्रेन अर्थात IRCTC संचालित पहली ट्रेन होने का गौरव प्राप्त कर चुकी है।
इसी आधार पर पहली बार केंद्र सरकार की ओर से भारतीय रेल नेटवर्क पर यात्री ट्रेन चलाने के लिए निजी कंपनियों को आमंत्रित किया गया है। रेल मंत्रालय ने 109 जोड़ी रूटों पर 151 आधुनिक ट्रेनों के जरिये यात्री ट्रेनें चलाने के लिए निजी कंपनियों से आवेदन मांगा है। इस परियोजना में निजी क्षेत्र का निवेश 30 हजार करोड़ रुपये का होगा।
मौजूदा सरकार और भारतीय रेल्वे के कुछ अधिकारियों का मानना है, कि भारतीय रेल रखरखाव की कम लागत, कम ट्रांजिट टाइम के साथ नई तकनीकि का विकास करना और रोजगार के अवसर को बढ़ाना, बेहतर सुरक्षा और विश्व स्तरीय यात्रा का अनुभव कराना। यह सिर्फ सरकार और गिने चुने अधिकारियों का मानना है वास्तव में ऐसा कुछ नहीं है, क्योंकि IRCTC जैसी तमाम कम्पनियों के पास भारतीय रेलवे के अलग अलग विभाग रेलवे कैन्टीन, क्लीनिगं आदि के टेन्डर कई सालों से मौजूद है,
क्योंकि सरकारों द्वारा राष्ट्रीयकरण और निजीकरण के मध्य 50 – 50 खेल काफी सालों से खेला जा रहा है, बस रफ्तार मौजूदा सरकार में पकड़ी है जो 50-50 से बढ़कर 80-20 का अनुपात ले चुका है। क्योंकि पीयूष गोयल जी के वक्तव्य से यही साबित होता है,
राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान सवालों का जवाब देते हुए पीयूष गोयल ने कहा कि रेलवे को चलाने के लिए अगले 12 वर्षों में अनुमानित तौर पर 50 लाख करोड़ रुपये की पूंजी सरकार अकेले नहीं जुटा सकती, इसलिए इस तरह के कदम उठाए गए हैं। ऊपरी सदन में गोयल ने कहा, ‘हमारा मकसद यात्रियों को बेहतर सेवाएं और फायदा देना है, न कि रेलवे का निजीकरण करना। भारतीय रेलवे भारत और देशवासियों की संपत्ति है और आगे भी रहेगी।’
मंत्री जी ने बही बात कर दी की भले ही तुम पर अंग्रेज या कोई राज करे लेकिन देश और घर तो आपका ही है, अब म, त्री जी को कैसे समझाये की जब सब हमारा ही है तो राज दूसरा क्यों करे।
पीयूष गोयल ने माना है, की सरकार रेलवे को सम्भालने में असमर्थ है। मौजूदा सरकार के पास पर्याप्त धन नहीं बचा जो रेलवे सेक्टर में इनवेस्ट कर सके, इसलिए निजीकरण की आड़ में अपनी नाकामी छिपाई जा रहीं है। और ये कुछ नया नहीं है, सभी सरकारों का यही कार्य रहा है, यदि अपनी ग़लतियाँ ना सम्भाली जा सके तो उसका ठीकरा दूसरे के सर फोड़ दो।सरकार का मानना है, इससे देश को और आम जनमानस को राहत मिलेगी, साहब जब आप नहीं कर पाए तो, वो क्या अतिरिक्त ट्रेनो को चलबा कर देश और जनता को राहत देंगे। यदि वे ऐसा कुछ करते है, तो आप भी तो ये सब कर सकते है।
दूसरे देशों से हमे सीखना चाहिए जैसे कई देशों ने अपने यहां रेलवे के कामकाज का पूरा या आंशिक निजीकरण किया है। ऐसे देशों में ब्रिटेन, जापान, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि शामिल हैं. मिस्र ने इसकी प्रक्रिया शुरू कर दी है, अर्जेंटीना इस पटरी पर बहुत आगे बढ़ चुका है. इनमें से कई देशों ने एक सदी से भी पहले निजी रेलवे से शुरुआत की थी, निजी रेल कंपनियां जब मुश्किल में फंसी तो उनका राष्ट्रीयकरण दुबारा किया गया। यह स्थिति सिर्फ रेल्वे की नही है, इसके अलावा इंडियन ऑयल जैसी तमाम कम्पनियां है जो निजीकरण की कगार पर अटकी हुई है बस साहब लोगों के आदेश की देरी है|

 

विभु चौबे राष्ट्रीय जजमेंट संवाददाता (झाँसी)

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