प्रसार भारती ने चीन मुद्दे पर इंटरव्यू करने को लेकर PTI को ‘देशद्रोही’ कहा

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चीन में भारतीय राजदूत का साक्षात्कार करने के बाद उनके बयान को चलाने पर सरकारी प्रसारणकर्ता प्रसार भारती ने समाचार एजेंसी पीटीआई को ‘देशद्रोही’ कहा है और उसके साथ सभी संबंध तोड़ने की धमकी दी है.
द वायर में छपे लेख के अनुसार पीटीआई ने चीन में भारतीय राजदूत विक्रम मिस्री के हवाले से कहा था, ‘चीनी सेनाओं को लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के अपनी तरफ वापस जाने की जरूरत है.’
दरअसल, मिस्री का यह बयान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस दावे के विपरीत है जिसमें उन्होंने दावा किया था कि भारत में कोई भी नहीं घुसा है.
24 घंटों बाद भी न तो राजदूत विक्रम मिस्री और न ही विदेश मंत्रालय ने पीटीआई के ट्वीट की सत्यता को खारिज किया है.
मिस्री के बयान ने सरकार को शर्मिंदा कर दिया है क्योंकि यह सीमा पर तनाव के मुद्दे पर पिछले हफ्ते हुई सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए बयान के विपरीत है.
पीटीआई के एक अन्य ट्वीट में मिस्री कहते हैं, ‘चीन को एलएसी के भारतीय हिस्से की ओर अतिक्रमण के प्रयास और संरचनाओं को खड़ा करने की कोशिश को रोकना होगा.’
उनका यह बयान भी मोदी के उस दावे के विपरित है जिसमें उन्होंने कहा था कि चीन ने इससे पहले भी घुसपैठ नहीं की थी.
चीन में भारतीय राजदूत के बयान वाला पीटीआई का ट्वीट, जिसे अब डिलीट कर दिया गया है.
पीटीआई ने एक तीसरा ट्वीट भी किया था जिसे शनिवार सुबह डिलीट कर दिया गया. हालांकि, न तो विदेश मंत्रालय और न ही मिस्री ने कहा कि उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया गया.
मिस्री के हवाले से पीटीआई ने कहा था, ‘एलएसी पर सैन्य तनाव का केवल एक ही समाधान है और यह कि चीन नई संरचनाएं बनाना रोक दे.’
हालांकि, ऐसा लग रहा है कि समाचार एजेंसी द्वारा शनिवार शाम को साक्षात्कार के कुछ हिस्सों को जारी करने के बाद विदेश मंत्रालय और पीटीआई के बीच एक प्रकार का समझौता हो गया, क्योंकि मिस्री द्वारा दिए गए इन विशेष बयानों को पीटीआई की खबर में नहीं शामिल किया गया.
सरकार पहले ही भारत में चीनी राजदूत का साक्षात्कार करने को लेकर पीटीआई से नाराज है और उसके खिलाफ कार्रवाई करने की तैयारी में है.
शनिवार को प्रसार भारती के अधिकारियों ने पत्रकारों से कहा कि सार्वजनिक प्रसारणकर्ता अपनी अगली बोर्ड बैठक से पहले पीटीआई को एक सख्त पत्र भेज रहा है जिसमें पीटीआई द्वारा राष्ट्र विरोधी रिपोर्टिंग पर गहरी नाराजगी व्यक्त की गई है.
अधिकारियों ने कहा, ‘पीटीआई की देश विरोधी रिपोर्टिंग के कारण उसके साथ संबंध जारी रखना संभव नहीं है.’
उन्होंने कहा कि सार्वजनिक प्रसारक दशकों से कई करोड़ों में चलने वाली भारी वार्षिक फीस के साथ पीटीआई का समर्थन कर रहे हैं. इसके साथ ही 2016 के बाद से समाचार एजेंसी अपने शुल्क में बढ़ोतरी न करवाने को लेकर अड़ी रही है. अब पीटीआई के व्यवहार को देखते हुए प्रसार भारती, पीटीआई के साथ अपने संबंधों की समीक्षा कर रही है. इस संबंध में अंतिम फैसले की सूचना जल्द दे दी जाएगी.
इस फैसले और देशद्रोही ठहराने के कारणों को पूछे जाने पर प्रसार भारती अधिकारी ने कहा, ‘चीन कवरेज.’
यह पूछे जाने पर कि क्या यह पीटीआई द्वारा किए गए दो राजदूतों के साक्षात्कार से संबंधित है? उन्होंने कहा, ‘हां.’
इस हफ्ते की शुरुआत में बाकी भारतीय मीडिया को पीछे छोड़ते हुए पीटीआई ने भारत में चीन के राजदूत सुन वीदोंग का साक्षात्कार किया था और उनसे लद्दाख के गलवान में हुए हिंसक संघर्ष पर बात की थी.
चीनी दूतावास ने अपनी वेबसाइट पर साक्षात्कार का एक छोटा संस्करण प्रस्तुत किया था लेकिन पूरा साक्षात्कार नहीं छापने पर पीटीआई को विवादों का सामना करना पड़ा.
पीटीआई ने भी इस बात को स्वीकार किया था. अगले दिन विदेश मंत्रालय ने राजदूत सुन के बयानों पर जवाब दिया था. इसके बाद शुक्रवार को समाचार एजेंसी के बीजिंग संवाददाता केजेएम वर्मा ने मिस्री का साक्षात्कार किया.
बता दें कि पिछले एक हफ्ते से भारत सरकार के सभी प्रवक्ता कह रहे हैं कि चीन के साथ तनाव कम हो रहा है, सैन्य तैनातियां कम की जा रही हैं और कोई चीनी अतिक्रमण नहीं हुआ है.
हालांकि, रक्षा मामलों के पत्रकार भारतीय सैन्य सूत्रों के हवाले से लगातार कह रहे हैं कि एलएसी के कई हिस्सों पर चीन ने बढ़त बना ली है जिसमें पैंगोंग सो, गलवान और डेपसांग शामिल हैं.
बीते शुक्रवार को विदेश मंत्रालय में आधिकारिक चीनी थिंक-टैंक के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल एसएल नरसिम्हन ने द वायर को बताया था कि ये खबरें गलत और बढ़ा-चढ़ाकर पेश की जा रही हैं.
हालांकि, पीटीआई ने ट्विटर पर मिस्री के जिन दो ट्वीट को चलाया था उससे ऐसा नहीं लगता है.
पीटीआई पर प्रतिबंध लगाने के प्रसार भारती के हालिया प्रयास पहली बार नहीं है. इससे पहले साल 2016 में मोदी सरकार ने समाचार एजेंसी के लंबे समय तक एडिटर-इन-चीफ रहे एमके राजदान के सेवानिवृत्त होने पर एक आधिकारिक नामित सदस्य नियुक्त करने को कहा था.

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