अपने ही देश में हुए मजदूर अप्रवासी भारतीय ऐसा क्यों ?

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देश के नेताओं द्वारा यह कहा जा रहा है अब प्रवासी मजदूर को भूखों मरने नहीं दिया जाएगा लेकिन क्या यह बात सही है कि भारत के ही मजदूर वर्ग एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में रोजी रोटी के लिए जाते हैं एवं कई छोटे-बड़े उद्योगों में कार्यरत हैं जिससे बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां संचालित हैं
उन्हीं मजदूरों की कठोर मेहनत एवं परिश्रम से उद्योग धंधे चलायमान हैं लेकिन आज बहुत ही विकट परिस्थिति है मजदूरों के लिए सही नीति ना बनने से आज देश के मजदूरों की हालत बहुत ही दयनीय है
हमारे देश का यह हाल कभी नहीं रहा पूर्व सरकारों में भी इतना बुरा हाल नहीं रहा जितना कि आज है विकास का दम भरने वाले मजदूरों का सही तरीके से पेट नहीं भर सकते ऊपर से मजदूरों को अप्रवासी मजदूर कहकर उनका अपमान किया जा रहा है जोकि उनके संविधान अधिकारों का हनन है
यह बात किसी से नहीं छुपी की इस देश को बनाने में श्रमिकों का बहुत बड़ा योगदान है लेकिन आज वे रोजी रोटी के लिए अपने परिवारों के साथ दर-दर भटक रहे हैं किसी का बच्चा भूख से मर गया किसी की बीवी प्यास से मर गई कोई महिला शक्ति प्रसव पीड़ा में तड़प के मर गई लेकिन नेताओं द्वारा सिर्फ भाषण बाजी करके उनकी भूख मिटाई जा रही है इससे शर्म की बात क्या होगी इस देश के नेताओं के लिए
सरकार द्वारा एक लाख 76 हजार करोड़ का बजट पहले दिया गया लेकिन वह पैसा कहां गया किसको लाभ दिया गया किसी को कोई जानकारी नहीं इसके उपरांत अभी कुछ दिन पहले फिर भारत सरकार द्वारा 20 लाख करोड़ का पैकेज फिर दिया गया
वह भी पिछले दरवाजे से कहां चला गया किसी को कोई पता नहीं हां कुछ पैसा जीरो खातों में 500 500 की किस्त दी गई जोकि ऊंट के मुंह में जीरा बराबर है लेकिन यह बात गरीबों को चिल्लाती हुई लगती है ऐसा नहीं लगता कि यह गरीबों के साथ मजाक है आखिर कब तक चंद नेता इस देश की जनता के साथ खिलवाड़ करते रहेंगे और जनता चुपचाप सहन करती रहेगी
जिस देश में बुलेट ट्रेन के लिए अरबों खरबों खर्च हो सकते हैं उस देश के लिए मजदूरों को उचित रोजी-रोटी की व्यवस्था नहीं हो सकती सिर्फ दिखावा हो रहा है आखिर कब तक चलेगा कब तक मजदूर भूख से तड़पकर मरेगा यह बहुत ही गंभीर विषय है जिसमें सभी देशवासियों को विचार करना चाहिए नेताओं को ऐसो आराम के लिए हजारों करोड़ का बजट मिलता है फिर भी उनका पेट नहीं भरता

 

हरि शंकर पाराशर कटनी की रिपोर्ट✍️

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