सीएसआर फंड के नाम पर 69 लाख की ठगी, पुलिस ने मास्टरमाइंड के ड्राइवर को दबोचा, 43 लाख नकद और कार बरामद

नई दिल्ली: दिल्ली के मध्य जिले के साइबर थाना पुलिस ने एक संगठित पैन-इंडिया ठगी रैकेट का भंडाफोड़ करते हुए 69 लाख रुपये की धोखाधड़ी का खुलासा किया है। इस मामले में अहमदाबाद से 32 वर्षीय जितेंद्र पांडे को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस ने आरोपी के कब्जे से 43.20 लाख रुपये नकद, एक एंडेवर कार, एक सैमसंग फोल्ड 4 और एक आईफोन 14 बरामद किया है। यह रैकेट देशभर में कारोबारियों को कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) फंड में निवेश के नाम पर ठगने का काम करता था। पुलिस अब इस गिरोह के बाकी सदस्यों की तलाश में जुटी है और शेष राशि की बरामदगी के लिए जांच तेज कर दी है।

सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट के डीसीपी निधिन वाल्सन ने बताया कि बीती 8 जुलाई को दिल्ली के दरियागंज में एक कंपनी के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर ने साइबर पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज की। शिकायतकर्ता ने बताया कि जनवरी 2025 में महाराष्ट्र के कुछ व्यक्तियों, आशीष, अपूर्वा, विनायक, विजय और तुषार ने उनकी कंपनी से संपर्क किया। इन लोगों ने कंपनी के लिए फंडिंग की व्यवस्था करने का दावा करते हुए प्रोजेक्ट रिपोर्ट, वित्तीय विवरण, क्रॉस चेक और अन्य दस्तावेज मांगे। कई जूम मीटिंग्स के बाद, बीती 24 फरवरी को आरोपी विजय ने तीन अन्य व्यक्तियों, शोएब उर्फ सुशांत (हुब्बली), सईद (कोल्हापुर) और प्रकाश को पेश किया। इन लोगों ने दिल्ली में एक निर्धारित स्थान पर 69 लाख रुपये नकद के रूप में “सर्विस फीस” की मांग की और बदले में कंपनी के खाते में तत्काल निवेश राशि ट्रांसफर करने का वादा किया।

बीती 25 फरवरी को सुबह 11 बजे एक जूम कॉल के दौरान आरोपियों ने फिर से अपने निर्देश दोहराए। इसके बाद, शिकायतकर्ता की कंपनी के दो प्रतिनिधियों ने करोल बाग के गोल्ड प्लाजा में 69 लाख रुपये नकद जमा किए। आरोपियों ने तत्काल आरटीजीएस के माध्यम से निवेश राशि ट्रांसफर करने का आश्वासन दिया। लेकिन अगले दिन, 26 फरवरी को शाम 4 बजे, आरोपियों ने 49 लाख रुपये की फर्जी एनईएफटी/आरटीजीएस स्क्रीनशॉट्स भेजे, जिसमें दिखाया गया कि राशि ट्रांसफर हो चुकी है। वास्तव में, कंपनी के खाते में कोई राशि जमा नहीं हुई। इसके बाद आरोपी प्रकाश मौके से फरार हो गया, जबकि बाकी आरोपी बहाने बनाने लगे और संपर्क तोड़ लिया।

शिकायत के आधार पर साइबर पुलिस स्टेशन, सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट में एफआईआर दर्ज की गई और जांच शुरू हुई। मामले की गंभीरता को देखते एक विशेष टीम गठित की गई। इस टीम की अगुआई एसीपी ऑपरेशंस सुलेखा जागरवार और इंस्पेक्टर संदीप पंवार ने की, जिसमें एसआई रणविजय सिंह, एचसी परमवीर, एचसी संदीप, कांस्टेबल अनुज और तकनीकी विशेषज्ञ एचसी योगेंद्र शामिल थे। पुलिस ने तकनीकी और मैनुअल खुफिया जानकारी का विश्लेषण कर 15 दिनों तक अहमदाबाद और मुंबई में लगातार ऑपरेशन चलाया। आरोपी बार-बार अपने ठिकाने बदल रहा था, लेकिन तकनीकी निगरानी के जरिए बीती 15 सितंबर को जितेंद्र पांडे को अहमदाबाद से गिरफ्तार कर लिया गया।

पूछताछ में जितेंद्र पांडे ने खुलासा किया कि वह मास्टरमाइंड मोनिश बदानी, विक्रम, पिंटू, भूपेश और पारस (सभी मुंबई निवासी) के साथ मिलकर यह ठगी रैकेट चला रहा था। यह गिरोह विभिन्न शहरों में अस्थायी कार्यालय खोलता था और कारोबारियों को सीएसआर फंड में निवेश के नाम पर ठगता था। ठगी के बाद वे फर्जी आरटीजीएस पुष्टिकरण भेजकर कार्यालय बंद कर फरार हो जाते थे। पांडे ने बताया कि इस रैकेट ने मुंबई में एक डॉक्टर से 3 करोड़ रुपये की ठगी की थी, जिसके संबंध में नवी मुंबई के एएमपीसी पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज है।

डीसीपी ने बताया कि पांडे इस रैकेट में ड्राइवर की भूमिका निभाता था और मास्टरमाइंड मोनिश बदानी के लिए नकदी एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाता था। उसे 69 लाख की ठगी में से 8.7 लाख रुपये हिस्से के रूप में मिले, जबकि शेष 60.3 लाख रुपये उसके साथियों ने आपस में बांट लिया।

पुलिस ने जितेंद्र पांडे के मुंबई स्थित फ्लैट से 43.20 लाख रुपये नकद, एक एंडेवर कार, एक सैमसंग फोल्ड 4 और एक आईफोन 14 बरामद किया। जांच में यह भी पता चला कि पांडे पहले अहमदाबाद में एक समान ठगी के मामले में शामिल था, जिसमें मोनिश बदानी को गिरफ्तार किया गया था।

पुलिस अब इस रैकेट के बाकी सदस्यों, मोनिश बदानी, विक्रम, पिंटू, भूपेश और पारस की तलाश में है। शेष राशि की बरामदगी और पूरे नेटवर्क को ध्वस्त करने के लिए जांच जारी है। डीसीपी निधिन वाल्सन ने बताया कि यह रैकेट संगठित और सुनियोजित तरीके से काम करता था, और पुलिस इसे पूरी तरह खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है।

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