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पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत में बरनावा वही जगह है, जहां पांडवों के लिए लाक्षागृह बनाया गया था
रामबाबू मित्तल/बरनावा। उत्तर प्रदेश के बागपत जिले का बरनावा गांव सदियों से पौराणिक कथाओं के पन्नों में दर्ज लाक्षाग्रह से जुड़ी घटनाओं और रहस्यों के लिए जाना जाता है। यही वह स्थान है, जो महाभारत से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है और वारणाव्रत के तौर पर पहचाना जाता है। इतिहासकारों के अनुसार, इसी बरनावा में कौरवों ने पांडवों को पूरे परिवार सहित जलाकर मारने की साजिश रची थी। बरनावा गांव के दक्षिण में फैला करीब 100 फीट ऊंचा और 30 एकड़ क्षेत्र में फैला विशाल टीला आज भी लाक्षागृह के रूप में देखा जाता है। इस टीले के भीतर बनी कई गुफाएं और सुरंगें महाभारत काल की उस घटना की याद दिलाती हैं, जब पांडव आग के बीच से निकलकर जीवित बचे थे।
क्या है लाक्षागृह की कथा
महाभारत की कथा के मुताबिक, दुर्योधन ने पांडवों को मारने के लिए लाख, घी और अन्य ज्वलनशील पदार्थों से एक महल तैयार कराया। कौरवों की यह योजना थी कि जैसे ही पांडव इसमें बसें ओर रहना शुरू करें, मौका देखकर रात के समय महल में आग लगा दी जाए। ताकि, सभी पांडव इसमें जलकर राख हो जाए। हालांकि, विदुर की योजना और पांडवों की सतर्कता ने इस साजिश को नाकाम कर दिया था। सभी पांडव महल में बनी गुप्त सुरंग के जरिये बाहर निकल आए थे। यही घटनाक्रम महाभारत के इतिहास की अमर गाथा बन गया।
मेरठ के वरिष्ठ इतिहासकार डॉक्टर अमित पाठक ने बताया कि 1952 में प्रोफेसर देवीलाल के नेतृत्व में हस्तिनापुर और आसपास के क्षेत्रों में महाभारत काल से जुड़े हुए टीलों के उत्खनन से पहली बार ठोस प्रमाण सामने आए। वहां मिले स्लेटी रंगे के चित्रित बर्तन की कार्बन डेटिंग लगभग 4000 वर्ष पुरानी बताई गई। बरनावा टीले से भी मिट्टी के बर्तन, मूर्तियां, हड्डियां और दीवारों के अवशेष प्राप्त हुए, जिनसे इस क्षेत्र के महाभारत काल से जुड़े होने की पुष्टि होती है।
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उन्होंने ये भी बताया कि 2018 में दोबारा भारतीय पुरातत्व विभाग का सर्वेक्षण हुआ था, जिसमें बड़े पैमाने पर ASI ने खुदाई कराई थी। इस खुदाई को लेकर उन्होंने अपनी बनाई रिपोर्ट में जिक्र किया था कि न केवल बरनावा महाभारत काल से जुड़ा है, बल्कि यहां महाभारत से जुड़ा हुआ टीला भी है। डॉक्टर पाठक के अनुसार यदि बरनावा के लाक्षाग्रह का गहराई से उत्खनन हो, तो यहां से अनगिनत अनमोल अवशेष प्राप्त हो सकते हैं।
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