पांडवों का लाक्षागृह या बदरुद्दीन की मजार? 55 साल से इंसाफ के इंतजार में बागपत का ये गांव, महाभारत से कनेक्शन

राष्ट्रीय जजमेंट

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत में बरनावा वही जगह है, जहां पांडवों के लिए लाक्षागृह बनाया गया था
रामबाबू मित्तल/बरनावा। उत्तर प्रदेश के बागपत जिले का बरनावा गांव सदियों से पौराणिक कथाओं के पन्नों में दर्ज लाक्षाग्रह से जुड़ी घटनाओं और रहस्यों के लिए जाना जाता है। यही वह स्थान है, जो महाभारत से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है और वारणाव्रत के तौर पर पहचाना जाता है। इतिहासकारों के अनुसार, इसी बरनावा में कौरवों ने पांडवों को पूरे परिवार सहित जलाकर मारने की साजिश रची थी। बरनावा गांव के दक्षिण में फैला करीब 100 फीट ऊंचा और 30 एकड़ क्षेत्र में फैला विशाल टीला आज भी लाक्षागृह के रूप में देखा जाता है। इस टीले के भीतर बनी कई गुफाएं और सुरंगें महाभारत काल की उस घटना की याद दिलाती हैं, जब पांडव आग के बीच से निकलकर जीवित बचे थे।

क्या है लाक्षागृह की कथा
महाभारत की कथा के मुताबिक, दुर्योधन ने पांडवों को मारने के लिए लाख, घी और अन्य ज्वलनशील पदार्थों से एक महल तैयार कराया। कौरवों की यह योजना थी कि जैसे ही पांडव इसमें बसें ओर रहना शुरू करें, मौका देखकर रात के समय महल में आग लगा दी जाए। ताकि, सभी पांडव इसमें जलकर राख हो जाए। हालांकि, विदुर की योजना और पांडवों की सतर्कता ने इस साजिश को नाकाम कर दिया था। सभी पांडव महल में बनी गुप्त सुरंग के जरिये बाहर निकल आए थे। यही घटनाक्रम महाभारत के इतिहास की अमर गाथा बन गया।

मेरठ के वरिष्ठ इतिहासकार डॉक्टर अमित पाठक ने बताया कि 1952 में प्रोफेसर देवीलाल के नेतृत्व में हस्तिनापुर और आसपास के क्षेत्रों में महाभारत काल से जुड़े हुए टीलों के उत्खनन से पहली बार ठोस प्रमाण सामने आए। वहां मिले स्लेटी रंगे के चित्रित बर्तन की कार्बन डेटिंग लगभग 4000 वर्ष पुरानी बताई गई। बरनावा टीले से भी मिट्टी के बर्तन, मूर्तियां, हड्डियां और दीवारों के अवशेष प्राप्त हुए, जिनसे इस क्षेत्र के महाभारत काल से जुड़े होने की पुष्टि होती है।
बांसवाड़ा में 16 साल की लड़की से गैंगरेप, नाबालिगों ने की हैवानियत, प्राइवेट पार्ट में डाली बोतल
उन्होंने ये भी बताया कि 2018 में दोबारा भारतीय पुरातत्व विभाग का सर्वेक्षण हुआ था, जिसमें बड़े पैमाने पर ASI ने खुदाई कराई थी। इस खुदाई को लेकर उन्होंने अपनी बनाई रिपोर्ट में जिक्र किया था कि न केवल बरनावा महाभारत काल से जुड़ा है, बल्कि यहां महाभारत से जुड़ा हुआ टीला भी है। डॉक्टर पाठक के अनुसार यदि बरनावा के लाक्षाग्रह का गहराई से उत्खनन हो, तो यहां से अनगिनत अनमोल अवशेष प्राप्त हो सकते हैं।

बरनावा का विवाद: मजार या लाक्षागृह?
बरनावा का इतिहास धार्मिक विवादों से भी घिरा हुआ है। 1970 में स्थानीय निवासी मुकीम खां ने मेरठ सिविल कोर्ट में दावा किया कि टीले पर बनी बदरुद्दीन शाह की मजार वक्फ संपत्ति है। वहीं, हिंदू पक्ष का कहना है कि यह मजार वास्तव में लाक्षागृह परिसर का ही हिस्सा है। यह मामला बाद में बागपत कोर्ट में स्थानांतरित हो गया और पिछले 55 साल से विचाराधीन है। यही विवाद बरनावा के संरक्षण और विकास योजनाओं में सबसे बड़ी रुकावट बना हुआ है।

सरकार की योजनाएं: इतिहास से पर्यटन तक
केंद्र ओर प्रदेश सरकार ने बरनावा को महाभारत से जोड़ते हुए अपनी पर्यटन योजना में शामिल किया था। इसका मकसद महाभारत से जुड़े स्थलों को जोड़कर धार्मिक और सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देना है। 2006-07 में पर्यटन विभाग ने करीब डेढ़ करोड़ रुपये खर्च कर लाक्षागृह परिसर का सौंदर्यकरण कराया था।

यहां सुरंगों का नवीनीकरण, सभा कक्ष, स्नानागार, शौचालय और सीढ़ियां बनाई गईं। इसके बाद 2016 में केंद्र सरकार की स्वदेश दर्शन योजना के तहत 1.39 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट मंजूर हुआ, लेकिन एएसआई की आपत्तियों और कानूनी विवादों के चलते इस योजना को रोक दिया था।

Comments are closed.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More