राजनीति में वंशवाद…उत्तर से लेकर दक्षिण तक बवाल, Omar के बेटे राजनीति में आएंगे!

राष्ट्रीय जजमेंट

राजनीति में परिवारवाद कोई नई बात नहीं है। अक्सर राजनेताओं को अपने परिजनों को राजनीति में आगे बढ़ाते देखा जाता है। कभी कभार ऐसे भी वाकये सामने आते हैं जब राजनीतिक विरासत पर अधिकार जमाने को लेकर परिवार में ही बगावत हो जाती है। इन दिनों कुछ राज्यों की घटनाओं को लेकर लोकतंत्र में परिवारवाद पर बहस एक बार फिर शुरू हो गयी है। हम आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला पर आरोप लगा है कि वह अपने बेटों को राजनीति में आने के लिए प्रशिक्षित कर रहे हैं तो दूसरी ओर तेलंगाना की मुख्य विपक्षी पार्टी की कमान हासिल करने को लेकर बीआरएस प्रमुख केसीआर के परिवार में बवाल मचा हुआ है। वहीं तमिलनाडु में पीएमके प्रमुख रामदास इस बात पर अफसोस कर रहे हैं कि क्यों उन्होंने अपने बेटे को केंद्रीय मंत्री बनवा दिया था।
जहां तक जम्मू-कश्मीर की बात है कि तो आपको बता दें कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की एक तस्वीर वायरल हो गई है, जिसमें वे अपने बेटों जमीर और जाहिर के साथ राज्य के शीर्ष अधिकारियों के साथ बैठे दिख रहे हैं। इस तस्वीर ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है और विपक्षी पीडीपी (पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी) ने नेशनल कांफ्रेंस पर “सरेआम वंशवाद को बढ़ावा देने” का आरोप लगाया है। पीडीपी प्रवक्ता मोहित भान ने कहा है कि “जो हम देख रहे हैं वह लोकतंत्र नहीं है, यह सरेआम वंशवाद है। एक शाही खानदान शासन को पारिवारिक जागीर समझ रहा है, जबकि लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए बनी संस्थाएं चुप बैठी हैं।” उन्होंने कहा कि नेशनल कांफ्रेंस “बेशर्मी से सार्वजनिक पद और निजी विरासत के बीच की रेखा मिटा रही है।” हम आपको बता दें कि यह तस्वीर मंगलवार को पहलगाम में ली गई, जहां सीएम उमर अब्दुल्ला ने एक कैबिनेट बैठक की अध्यक्षता की थी। हालांकि, उनके बेटे किसी भी आधिकारिक बैठक का हिस्सा नहीं थे। दूसरी ओर तेलंगाना की बात करें तो आपको बता दें कि भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की विधानपरिषद सदस्य के. कविता ने पार्टी में अपने आलोचकों पर हमला करते हुए आरोप लगाया है कि कुछ ताकतों ने पूर्व मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाले इस दल का भाजपा में विलय करने की कोशिश की है और वे अब भी ऐसा कर रही हैं। अपने भाई और बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष केटी रामा राव पर परोक्ष हमला करते हुए उन्होंने आरोप लगाया है कि (जब वह पिछले वर्ष धनशोधन के एक मामले- दिल्ली शराब पुलिस घोटाला मामले में, राष्ट्रीय राजधानी की जेल में थीं, तब विलय का यह) प्रस्ताव उनके सामने लाया गया था जिसे उन्होंने सिरे से खारिज कर दिया था। मीडियाकर्मियों के साथ अनौपचारिक बातचीत में कविता ने (केसीआर को छोड़कर) पार्टी नेताओं पर इस बात को लेकर सवाल उठाया कि जब उनका नाम सोशल मीडिया और कुछ स्थानीय अखबारों में बदनाम किया जा रहा था, तो वे उनके बचाव में क्यों नहीं आए?उन्होंने कहा, ‘‘मेरी राय है कि तेलंगाना के संसाधनों को लूटने की कोशिश कर रही भाजपा को नियंत्रित करने के बजाय बीआरएस को भाजपा के हाथों में सौंपने की कोशिश की जा रही है। चूंकि जब मैं जेल में थी, तो मेरे पास भी यही प्रस्ताव लाया गया था। मैंने दृढ़ता से कहा कि नहीं! बीआरएस तेलंगाना के लोगों के लिए श्रीराम रक्षा है।’’ बीआरएस के भीतर आंतरिक मतभेद हाल में उस समय सामने आ गए जब कविता ने अपने पिता और पार्टी अध्यक्ष के चंद्रशेखर राव (केसीआर) को लिखे पत्र के लीक हो जाने पर आपत्ति जताई। उन्होंने यह भी कहा था कि पार्टी में कुछ साजिशें चल रही हैं। उन्होंने कहा था, ‘‘केसीआर एक भगवान की तरह हैं जो कुछ शैतानों से घिरे हुए हैं। बीआरएस वह पार्टी है जिसमें तेलंगाना की भावना है और जो राज्य के अस्तित्व का मूल कारण है।’’विधानपरिषद सदस्य ने कहा कि इसका किसी राष्ट्रीय पार्टी में विलय नहीं होना चाहिए और यही बात उनके पिता केसीआर को भी बताई गई है। केसीआर की बेटी ने यह भी पूछा कि जब पूर्व मुख्यमंत्री को तेलंगाना में कालेश्वरम परियोजना पर उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश पी सी घोष की अध्यक्षता वाले न्यायिक आयोग से पेश होने के लिए नोटिस मिला था, तब आंदोलन की घोषणा क्यों नहीं की गई थी? उन्होंने अपने भाई रामा राव का नाम लिये बगैर कहा, ‘‘आप अमेरिका में क्या जश्न मना रहे हैं? मुझे समझ में नहीं आता कि हम जमीनी स्तर पर किसी भी बात का जश्न क्यों नहीं मना रहे हैं?’’ हम आपको बता दें कि रामा राव वर्तमान में अमेरिका एवं ब्रिटेन की यात्रा पर हैं।पिछले हफ्ते रामा राव ने अपनी बहन द्वारा बीआरएस अध्यक्ष को लिखे गए पत्र और केसीआर के बारे में उनकी टिप्पणियों के बारे में पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए कहा कि पार्टी के अंदरूनी मामलों पर सार्वजनिक रूप से बयान देने के बजाय पार्टी के भीतर चर्चा की जानी चाहिए। कविता ने कहा कि जब उन्हें धनशोधन मामले में गिरफ्तार किया गया था, तब उन्होंने विधानपरिषद की सदस्यता से इस्तीफ़ा देने की पेशकश की थी लेकिन केसीआर ने कहा था कि इसकी ज़रूरत नहीं है। उन्होंने साथ ही 2019 के लोकसभा चुनाव में निजामाबाद क्षेत्र में उन्हें हराने में कुछ पार्टी नेताओं की भूमिका का भी आरोप लगाया।तमिलनाडु की राजनीति में बवालउधर, तमिलनाडु की राजनीति की बात करें तो आपको बता दें कि पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) के संस्थापक डॉ. एस. रामदास ने यह दावा करके सभी को चौंका दिया कि उन्होंने अपने सिद्धांतों के खिलाफ जाकर अपने बेटे डॉ. अंबुमणि रामदास को केंद्रीय मंत्री बनने में मदद करके एक गलती की। उनका यह बयान धर्मपुरी में हाल में आयोजित एक बैठक में उनके बेटे की कथित टिप्पणी के बाद आया, जहां अंबुमणि ने कथित तौर पर जानना चाहा था कि उनके पिता ने उन्हें पार्टी अध्यक्ष पद से क्यों हटाया। हम आपको बता दें कि एस. रामदास ने हाल में घोषणा की थी कि वह अपने बेटे को पार्टी के अध्यक्ष पद से हटा रहे हैं और ‘‘वह इसके स्थान पर कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में कार्यरत रहेंगे।’’ उन्होंने यह भी घोषणा की थी कि वह पीएमके के संस्थापक अध्यक्ष के रूप में पार्टी का पूरा नियंत्रण अपने हाथ में ले रहे हैं। इस घोषणा से अंबुमणि रामदास स्तब्ध रह गए थे और उनके समर्थकों के एक वर्ग ने पार्टी अध्यक्ष के रूप में उनकी बहाली की मांग को लेकर तमिलनाडु के कुछ इलाकों में आंदोलन भी किया।पार्टी के एक वर्ग द्वारा दोनों नेताओं के बीच सुलह कराने के प्रयास के बावजूद, रामदास अडिग रहे और उन्होंने अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने से इंकार कर दिया। रामदास ने यह भी दावा किया था कि अंबुमणि ने पार्टी के विकास में बाधा डाली। थाइलपुरम स्थित अपने आवास पर पत्रकारों से बात करते हुए 85 वर्षीय नेता रामदास ने कहा, ‘‘मैंने अपने बेटे अंबुमणि को 35 साल की उम्र में केंद्रीय मंत्री बनाकर गलती की। उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के साथ गठबंधन करने के लिए मजबूर किया।’’ उन्होंने कहा कि यदि आवश्यक हुआ तो वह पार्टी की आम परिषद की बैठक बुलाएंगे और अंबुमणि को पार्टी पद से हटा देंगे। हम आपको याद दिला दें कि अंबुमणि 2004 से 2009 तक मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री थे। रामदास ने कहा कि धर्मपुरी की बैठक में की गई टिप्पणियों के बाद वह अपने बेटे के बारे में बोलने के लिए विवश हैं।पीएमके नेता ने कहा, ‘‘यह (भाषण) केवल पार्टी सदस्यों और जनता का ध्यान भटकाने और उनकी सहानुभूति हासिल करने का एक प्रयास था। वह अंबुमणि नहीं है, वह मैं हूं जिसने अपने सिद्धांतों के खिलाफ जाकर और उन्हें केंद्रीय मंत्री बनने में मदद करके गलती की।’’ उन्होंने अपने बेटे पर आरोप लगाया कि उन्होंने उनके (रामदास के) पोते मुकुंदन को पीएमके युवा शाखा का अध्यक्ष बनाने के उनके निर्णय की खुलेआम अवहेलना की है। रामदास ने आरोप लगाया, ‘‘अंबुमणि ने मंच पर मेरा विरोध करके और माइक फेंककर इस मुद्दे को सार्वजनिक करने का विकल्प चुना और माइक मुझे लग सकता था।’’ रामदास ने दावा किया कि उन्हें 2024 के लोकसभा के लिए भाजपा के साथ गठबंधन करने के लिए मजबूर किया गया था, हालांकि वह अन्नाद्रमुक के साथ चुनावी संबंध जारी रखना चाहते थे। उन्होंने कहा कि वह 2024 के चुनाव के लिए अन्नाद्रमुक के साथ गठबंधन करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि अंबुमणि ने अन्नाद्रमुक महासचिव एडप्पादी के पलानीस्वामी के साथ चुनावी गठबंधन की भी पुष्टि की थी।रामदास ने कहा, ‘‘लेकिन अचानक अंबुमणि और उनकी पत्नी सौम्या थाइलपुरम आए और भाजपा के साथ गठबंधन की गुहार लगाने लगे। वे काफी देर तक गुहार लगाते रहे और मेरे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा।’’ उन्होंने दावा किया कि अगर अन्नाद्रमुक के साथ गठबंधन जारी रहता तो पीएमके को तीन और अन्नाद्रमुक को सात सीट मिलतीं।बहरहाल, बाप-बेटे के बीच ऐसी ही लड़ाई उत्तर प्रदेश में भी तब देखने को मिली थी जब अखिलेश यादव ने अपने पिता मुलायम सिंह यादव को हटाकर खुद को समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर दिया था। राजनीतिक विरासत पर कब्जे की लड़ाई महाराष्ट्र में ठाकरे परिवार और पवार परिवार में भी देखने को मिली थी। खैर…लोकतंत्र में वैसे तो वंशवाद के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए लेकिन भारतीय लोकतंत्र में वंशवाद एक हकीकत है।

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