मेहनत की मजदूरी पाने के लिए सोलह महीनों से संघर्षरत रैन बसेरों के 127 कर्मचारी

नई दिल्ली: मजदूर दिवस के अवसर पर जहाँ विश्व भर में श्रमिकों के योगदान को सम्मानित किया जा रहा है, वहीं दिल्ली के रैन बसेरों में कार्यरत 127 कर्मचारी अपनी मेहनत की मजदूरी पाने के लिए पिछले सोलह महीनों से कोर्ट-कचहरी और सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं। दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड के अंतर्गत संचालित 23 रैन बसेरों में कार्यरत इन कर्मचारियों को 1 सितंबर 2023 से 31 दिसंबर 2023 तक के चार महीनों का वेतन अभी तक नहीं मिला है। यह स्थिति न केवल इन श्रमिकों के सामने आर्थिक संकट ला रही है, बल्कि समाज के सबसे कमजोर वर्गों की सेवा करने वाले इन कर्मचारियों की मेहनत पर भी सवाल उठा रही है।

क्लस्टर एक और दो के रैन बसेरों में कार्यरत कर्मचारियों में 69 केयरटेकर, 23 स्वीपर, 23 रिलीवर और 12 गार्ड शामिल हैं। सितंबर 2023 से दिसंबर 2023, चार महीनों का बकाया वेतन मिलाकर कुल राशि लाखों रुपये में है, जो इन कर्मचारियों के लिए जीवनयापन का एकमात्र साधन है।

अपनी मांगों को लेकर कर्मचारियों ने कई बार डूसीब के अधिकारियों से मुलाकात की, प्रदर्शन किए और अदालत का दरवाजा खटखटाया, लेकिन अभी तक कोई ठोस समाधान नहीं निकला है। कर्मचारियों का आरोप है कि डूसीब और संबंधित ठेकेदार एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डाल रहे हैं, जिसके चलते उनका बकाया वेतन अटका हुआ है।

एक केयरटेकर ने बताया, “हम दिन-रात बेघर लोगों की सेवा करते हैं, लेकिन हमारा खुद का परिवार भूखा रहा। 16 महीने से हम दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही।”

एक स्वीपर ने अपनी व्यथा साझा करते हुए कहा, “हम सुबह से रात तक रैन बसेरों को साफ रखते हैं, लेकिन हमारी मेहनत का कोई मूल्य नहीं। चार महीने का वेतन न मिलने से हमारे बच्चों की पढ़ाई और घर का खर्च चलाना मुश्किल हुआ।”

सामाजिक कार्यकर्ता सुनील कुमार आलेडिया का कहना है कि यह मुद्दा न केवल इन 127 कर्मचारियों का है, बल्कि असंगठित क्षेत्र के लाखों श्रमिकों की बदहाली को दर्शाता है, जो उचित वेतन और सामाजिक सुरक्षा से वंचित हैं। मजदूर दिवस पर यह खबर हमें याद दिलाती है कि श्रमिकों के सम्मान और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी है। दिल्ली के रैन बसेरों के इन 127 कर्मचारियों का संघर्ष समाज और सरकार के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा करता है: क्या हम वास्तव में अपनी अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहे जाने वाले श्रमिकों को उनका हक दे पा रहे हैं? वहीं दूसरी ओर हरदयाल म्युनिसिपल लायब्रेरी के कर्मचारियों को पिछले 40 महीने से दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी तनख्वाह नहीं मिली है।

केयर टेकर यूनियन के प्रेसिडेंट अभिषेक बाजपाई ने बताया कि सैकड़ों शिकायत डूसीब को, पिछली सरकार के मंत्री एवं मुख्यमंत्री को दी थी पर कोई समाधान नहीं हुआ था। नई सरकार में मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता को भी शिकायत दे चुके हैं। अब समाधान के इंतजार में हैं। तनख्वाह नही मिलने के कारण रैन बसेरों के कई स्टाफ को अपना किराए का घर खाली कर रैन बसेरे में मजबूरी में शरण लेनी पड़ी थी।

दिल्ली के रैन बसेरे बेघर लोगों के लिए आश्रय स्थल हैं, जहाँ ठंड, गर्मी और बारिश से बचने के लिए हजारों लोग शरण लेते हैं। डूसीब द्वारा संचालित इन रैन बसेरों में कर्मचारी न केवल सफाई और सुरक्षा का ध्यान रखते हैं, बल्कि बेघर लोगों को भोजन, बिस्तर और अन्य बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध कराने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

दिल्ली सरकार ने हाल ही में डूसीब के लिए 700 करोड़ रुपये के फंड की घोषणा की है, जो झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों के कल्याण के लिए आवंटित किया गया है। लेकिन रैन बसेरों के कर्मचारियों के बकाया वेतन के मुद्दे पर कोई स्पष्ट योजना सामने नहीं आई है।

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