ये है कछुओं का ‘मार्को पोलो’, ओडिशा से श्रीलंका और फिर पहुंचा महाराष्ट्र सिर्फ इस वजह से

राष्ट्रीय जजमेंट 

ओलिव रिडले समुद्री कछुआ, जो दुनिया का दूसरा सबसे छोटा समुद्री कछुआ है। इस ओलिव रिडले कछूए ने प्रजनन के लिए 3500 किलोमीटर की लंबी यात्रा की है। यह कछुआ अपनी प्रजाति के लिए एक अद्भुत यात्रा करता है। इस कछुए को 2021 में जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा एक टैग लगाया गया था, जिससे इसकी गतिविधियों और यात्रा को ट्रैक किया जा सके।
वहीं इस कछुए को लेकर अब हैरानी वाली जानकारी वैज्ञानिकों ने साझा की है। वैज्ञानिकों का मानना है कि 03233 नाम के इस कछुए ओडिशा से अपनी यात्रा की शुरुआत की थी और श्रीलंका तक का रास्ता तय किया था। वहां से ये कछुआ महाराष्ट्र तक पहुंचा होगा।कछुओं के लिए डबल नेस्टिंग उस समय होती है जब प्रजनन सीजन में मादा कछुए दो बार अंडे देती है। अंडे देने के लिए मादा कछुओं को घोंसला बनाना होता है। कछुओं का घोंसला एक खोखला गड्ढा होता है जिसमें मादा अंडे देकर उसे सुरक्षित रख सकती है।ऐसे की जाती है कछुओं की टैगिंगकछुओं की गतिविधि पर नजर रखने, रिसर्च और सुरक्षा के लिए वैज्ञानिक कछुओं को टैग करते है। ये टैग तीन प्रकार के होते हैं, जिसमें फ्लिपर टैग पहला टैग है। इसमें कछुए के पंखों पर कोड लगता है। इससे उसकी पहचान को दोबारा करने में परेशानी नहीं होती है। दूसरा टैग पीआईटी टैग है जिससे कछुए के शरीर के चमड़े के नीचे टैग लगता है जिसको बाद में स्कैन कर पढ़ा जाता है। इसके अलावा कछुओं पर सैटेलाइट टैग लगाया जाता है जिसमें कछुए के खोल को टैग करते है, जिसके बाद सैटेलाइट की मदद से इन पर नजर रखना आसान होता है।
ऐसे होता है समुद्री कछुओं का प्रजननसमुद्री कछुओं का प्रजनन समुद्र के तट पर होता है जहां मादा अंडे देने आती है। मादा कछुआ अंडे देने के लिए घोंसला यही तट पर ही बनाती है। बता दें कि ओलिव रिडले कछुआ उस प्रजाति का कछुआ है जिसमें सामूहिक घोंसला बनाया जाता है। सामूहिक घोंसला बनाने के लिए बड़ी मात्रा में कछुए एक साथ समुद्र तट पर आकर अंडा देते है। तट पर इन अंडों की संख्या हजारों में होती है।

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