मोदी अपने तीसरे कार्यकाल में चीन से संबंध सुधारने की क्यों कर रहे पहल? भारत ने अपनी चीन नीति बदल दी है क्या?

राष्ट्रीय जजमेंट

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने एक महीने के भीतर अपने चीनी समकक्ष से दूसरी मुलाकात की है। इसे कैसे देखते हैं आप? हमने यह भी जानना चाहा कि दोनों देशों के बीच सैन्य स्तर पर भी वार्ता होने की खबरें हैं, क्या मोदी सरकार चीन से संबंध सुधारने की कोई पहल कर रही है? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि अगर दोनों देशों के संबंध सुधरते हैं तो यह सिर्फ भारत और चीन के लिए ही नहीं बल्कि इस पूरे क्षेत्र के लिए अच्छी बात होगी। उन्होंने कहा कि लेकिन जैसा दिख रहा है या कहा जा रहा है वह सब हकीकत में बदलना इतना आसान नहीं है क्योंकि ड्रैगन के खाने वाले दांत अलग हैं और दिखाने वाले अलग हैं।ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि वैसे यह अच्छी बात है कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने एक महीने के भीतर दूसरी बार चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा बताया यह भी जा रहा है कि दोनों देशों के बीच सैन्य स्तर पर भी हाल में वार्ता के दौर हुए हैं। उन्होंने कहा कि साथ ही यह भी पहली बार हुआ है कि एससीओ के सदस्य देशों के सुरक्षा अधिकारियों ने चीन में पहले संयुक्त आतंकवाद-रोधी अभ्यास में हिस्सा लिया है। उन्होंने कहा कि ऐसा लग रहा है कि मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में चीन के साथ संबंध सुधारने पर जोर दे रही है। लेकिन भारत सरकार अपने उस रुख पर अडिग है कि चीन को भारत के साथ पिछले समझौतों का पूर्ण सम्मान करना ही होगा।ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की मुलाकात की बात है तो लाओस में हुई इस मुलाकात के दौरान जयशंकर ने अपने चीनी समकक्ष वांग यी से साफ-साफ कह दिया कि भारत के द्विपक्षीय संबंधों में स्थायित्व लाने और पुनर्बहाली के लिए चीन को वास्तविक नियंत्रण रेखा तथा पिछले समझौतों का पूर्ण सम्मान सुनिश्चित करना ही होगा। उन्होंने कहा कि भारत का कहना है कि जब तक सीमा क्षेत्रों में शांति नहीं होगी, चीन के साथ उसके संबंध सामान्य नहीं हो सकते। उन्होंने कहा कि इस मुलाकात के बाद विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा है कि वापसी प्रक्रिया को पूरा करने के लिए मार्गदर्शन दिए जाने की आवश्यकता पर सहमति बनी है। उन्होंने कहा कि उनके बयान में कहा गया है, ”एलएसी और पिछले समझौतों का पूरा सम्मान सुनिश्चित किया जाना चाहिए। हमारे संबंधों को स्थिर करना हमारे आपसी हित में है। हमें वर्तमान मुद्दों पर उद्देश्य और तत्परता की भावना का रुख रखना चाहिए।’’ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि यह भी ध्यान रखना चाहिए कि इसी साल चार जुलाई को भी दोनों नेताओं ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन के मौके पर कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में मुलाकात की थी। उन्होंने कहा कि अस्ताना में बैठक के दौरान, जयशंकर ने भारत के इस दृढ़ दृष्टिकोण की पुष्टि की थी कि दोनों पक्षों के बीच संबंध आपसी सम्मान, आपसी हित और आपसी संवेदनशीलता पर आधारित होने चाहिए।ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा, शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों के सुरक्षा अधिकारियों ने चीन में पहले संयुक्त आतंकवाद-रोधी अभ्यास में हिस्सा लिया है जोकि अपने आप में अच्छा संकेत है। उन्होंने कहा कि इससे पहले आयोजित सभी आतंकवाद विरोधी अभ्यास द्विपक्षीय या बहुपक्षीय थे, लेकिन उनमें एससीओ के सभी सदस्य देश शामिल नहीं थे। उन्होंने कहा कि इस अभ्यास से यह प्रतिबिंबित होता है कि एससीओ के सभी सदस्य देश आतंकवाद से उत्पन्न खतरों के प्रति एक समान समझ रखते हैं।

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