पीएमएलए में जमानत मिलना इतना कठिन क्यों?

राष्ट्रीय जजमेंट न्यूज़

पीएमएलए कानून के तहत हाल ही में ईडी ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और बीआरएस नेता के, कविता को गिरफ्तार किया। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया इसी कानून में पिछले साल गिरफ्तार हुए थे। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और आप नेता संजय सिंह व सत्येंद्र जैन तहत जेल में हैं। इन नेताओं को अभी जमानत भी इसी कानून के नहीं मिल पाई है। सवाल है कि आखिर इस कानून के तहत जमानत मिलना इतना कठिन क्यों है। पहले जानते हैं कि इस कानून पर किस तरह के सवाल उठते रहे हैं। धन शोधन निवारण अधिनियम को 2002 में अधिनियमित किया गया था और इसे 2005 में लागू किया गया। इस कानून का मुख्य उद्देश्य काले धन को सफेद में बदलने की प्रक्रिया (मनी लॉन्ड्रिंग) से लड़ना है। मनी लॉन्ड्रिंग को रोकना, अवैध गतिविधियों और आर्थिक अपराधों में काले धन के उपयोग को रोकना, मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल या उससे प्राप्त संपत्ति को जब्त करना और मनी लॉन्ड्रिंग के जुड़े अन्य प्रकार के संबंधित अपराधों को रोकने का प्रयास करना। वर्तमान सरकार ने 2018 में पीएमएलए में संशोधन किया, जिसके मद्देनजर धारा 45 के तहत जमानत के लिए दो सख्त शर्तें हैं। पहला, अदालत को यह मानना ​​होगा कि आरोपी दोषी नहीं है, और दूसरा, आरोपी का अपराध करने का कोई इरादा नहीं होना चाहिए। जमानत पर रहते हुए. सुप्रीम कोर्ट ने ईडी की शक्तियों को बरकरार रखते हुए और 2018 में पीएमएलए अधिनियम में संशोधन करते हुए कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग एक जघन्य अपराध है जो देश के सामाजिक और आर्थिक मामलों को प्रभावित करता है। सुप्रीम कोर्ट क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट ने 27 जुलाई 2022 के फैसले में पीएमएलए कानून को बरकरार रखा। कोर्ट ने ईडी की गिरफ्तारी, संपत्ति अटैचमेंट और सीज करने के अधिकार को पीएमएलए के तहत वैध करार दिया। उसने कहा कि धारा 45 के तहत जमानत की कड़ी शर्तें वाले प्रावधान सही हैं। इसके तहत मनी लॉन्ड्रिंग केस में आरोपी को तभी जमानत दी जा सकती है, जब वो दोहरी शर्तों को पूरा करे। पहली नजर में दिख रहा हो कि आरोपी ने अपराध नहीं किया है। दूसरा जमानत के दौरान अपराध होने की आशंका न बची हो।

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