छत्तीसगढ के प्रवासी मजदूर भी देना चाहते वोट किंतु बंधुआगिरी में फंसे

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नई दिल्ली: मामला माह सितंबर 2022 का है जब ठेकेदार सरिता बाई ने चेतराम नाम के मजदूर को ₹15000 एडवांस्ड राशि के रूप में दिए और जब यह राशि चेतराम फिर से सरिता बाई को अदा नहीं कर पाया तो सरिता बाई चेतराम के बेटे चंद्रवीर और बहू अमर भाई को लेकर छत्तीसगढ़ से हरियाणा के फरीदाबाद जिले में स्थित भूमिया ईंट भट्टा बल्लभगढ़(मालिक गुलाब सिंह) में चली गई जहां इस यंग कपल को बंधुआ बनाकर जबरन काम लिया जाने लगा। इस यंग कपल के साथ में खोलबेहरा और तिहारू के परिवार को भी छत्तीसगढ़ से फरीदाबाद के ईट भट्टे में ट्रैफिक्ड कर दिया गया। तीनों परिवारों को छत्तीसगढ़ वापस आने की अनुमति नहीं थी।

1 साल काम करने के बाद जब चेतराम के परिवार ने वापस घर जाने की जिद की तो मालिक एवं ठेकेदार दोनों ने ही यह कहते हुए पल्ला झाड़ दिया कि जब कोई दूसरे मजदूर आएंगे तब तुम्हें जाने दिया जाएगा इधर सरिता बाई ने दबाव देकर चेतराम के पत्नी एवं दूसरे बेटे एवं बहू को फरीदाबाद के ईंट भट्ठे में फिर से बुला लिया और उन्हें पांच सदस्य के हिसाब से 50000 रुपए दे दिए ताकि अमर बाई का परिवार भी छत्तीसगढ़ न जा सके। पिछले 7 महीने से चेतराम अपने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ फिर से ईंट बनाने में लगा और बंधुआगिरी की खेमे में फंस गया। इधर चेतराम के साथ राजकुमार का परिवार भी ट्रैफिकिंग एवं बंधुआ मजदूरी का शिकार हो गया।

फाइट इनेकलिटी एलायंस इंडिया के छत्तीसगढ़ स्टेट कोऑर्डिनेटर सुशील कुमार ने बताया की इन बंधुआ मजदूरों को एक महीने में ₹6000 मात्र खाने खर्चे के रूप में दिए जाते थे और इसी खर्च के आधार पर इसे साल भर काम करवाने के बाद उनके हिसाब किताब में मनमानी की जाती है जिससे मजदूरों को आर्थिक क्षति होती है जिसके लिए जिले का श्रम विभाग जिम्मेदार है। श्रम विभाग के अधिकारियों को समय-समय पर इस प्रकार के ईंट भट्टो अर्थात फैक्ट्री में जाकर निरीक्षण करने की जिम्मेदारी है किंतु निरीक्षण केवल कागजों में ही हो जाता है और इन प्रवासी मजदूरों की सुध लेने के लिए संबंधित विभाग को ना तो समय है और नहीं उनके पास प्रशासनिक बल एवं ढांचा है जिससे वह यह कार्य सुगमतापूर्वक और ईमानदारी से कर पाए जिस कारण मजदूर बंधुआ मजदूरी का शिकार हो जाता है।

नेशनल कैंपेन कमिटी फॉर इरेडिकेशन का बॉन्डेड लेबर हरियाणा के कन्वीनर एडवोकेट गणेश ने बताया कि मजदूरों को जब छत्तीसगढ़ से हरियाणा लाया गया तो ठेकेदार द्वारा अंतर राज्य प्रवासी मजदूर कानून 1979 के तहत ठेकेदार, मालिक एवं मजदूरों का पंजीकरण छत्तीसगढ़ में ही करवाना अनिवार्य था जिसका सीधा उल्लंघन ठेकेदार एवं मालिक ने कर दिया। न ही मजदूरों को कभी डायरी दी गई और न ही कभी उनकी ईंटो का हिसाब उनके साथ सांझा किया गया। मालिक एवं ठेकेदार लालच में आकर गरीब एवं निरक्षर मजदूरों से मेहनत करवाकर कानून के मुताबिक उनका दाम नहीं देना चाहते हैं और मजदूरों से बेगार लेना चाहते हैं जो कि संविधान के अनुच्छेद 23 के अनुसार अपराध है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार जब देश में ए-श्रम कार्ड बने तब इन मजदूरों को आखिर क्यों नहीं ए-श्रम कार्ड बनवाने में ठेकेदार और मालिक ने सहयोग किया। बात यहीं खत्म नहीं हो जाती है अगर मजदूरों के भोजन के अधिकार पर ध्यान दे तो पाएंगे कि इन तमाम मजदूर को कभी राशन की दुकान से पीडीएस के तहत राशन ही नहीं मिला। अतः बंधुआ थे इसलिए विभाग तक आने ही नही दिए गए।

एसएलआईसी के साथ काम कर रहे एडवोकेट विनोद कुमार सिंह ने बताया कि जब मजदूरों को मलिक के द्वारा या ठेकेदार के द्वारा एडवांस दिया जाता है और उसे एडवांस को उतारने के लिए पूरा परिवार श्रम कर रहा है जो स्पष्ट रूप से सेक्शन 2 के अनुसार बंधुआ मजदूरी प्रथा उन्मूलन अधिनियम 1976 का उल्लंघन है। मजदूरों को कर्ज देना, फोर्सफुली काम करवाना, उनके आने-जाने में रोक-टोक करना, उनके रोजगार या काम में स्वतंत्रता ना होना बंधुआ होने के संकेत है।

प्रवासी मजदूरों के लिए मैन हेल्पलाइन की बबीता कुमारी का कहना है की मौके पर प्रशासनिक अधिकारियों की टीम में कोई महिला, कोई दलित सदस्य, कोई मजदूर संगठन का सदस्य नहीं है फिर विजिलेंस कमेटी के प्रावधान की धडल्ले से धज्जियां उड़ती दिख रही है। बंधुआ मजदूरों के बयान दर्ज करने के लिए सुरक्षित एवं आरामदायक स्थान देना, खोफ मुक्त वातावरण देने के बजाय रेस्क्यू टीम ने मालिक की जगह लेकर अपनी मर्जी से ही बयां लिख डाले जबकि मजदूर जो बोले वो लिखा ही नहीं गया जो न केवल मजदूरों के साथ धोखा है बल्कि कानून का भी उल्लंघन है। नीरजा चौधरी बनाम भारत सरकार का आदेश एडवांस के मामले, दस्तावेज न होने के मामले में प्रशासनिक अधिकारियों, रेस्क्यू टीम के सदस्य को प्रज्यूम करने की बात करता है की वह फॉर्स लेबर है किंतु यहां तो प्रशासन यह प्रज्यूम करके चला की यह बंधुआ नही है तो यह भी नीरजा चौधरी बनाम भारत सरकार के मामले का उल्लंघन है।

देशभर में स्लेवरी के मुद्दे पर काम करने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ता निर्मल गोराना अग्नि ने कहा की प्रवासी मजदूर भी मतदाता है उनको भी मतदान का अधिकार है। अगर इस प्रकार से देखा जाय तो उनके संवैधानिक अधिकार पर हमला है। मज़दूरों के बयान अगर रेस्क्यू टीम ढंग से कानून के मुताबिक दर्ज नहीं कर रही है तो उपायुक्त की जिम्मेदारी है की वो दर्ज कर ले। अगर उपायुक्त इस ड्यूटी को नही निभाते है तो मजदूर पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट जाएंगे। मौके पर मौजूद मजदूर अमर बाई ने मुझे फोन करके बताया की फरीदाबाद लोकल एडमिनिस्ट्रेशन की टीम हम जो बोल रहे हैं वह इसलिए नहीं लिख रही है कि कही मालिक के ऊपर केस न बन जाए इसलिए हम लोगों को जबरदस्ती किसी एक बयान पर साइन करवाया जा रहा है जो बयान हमारा है ही नहीं। यह हमारे साथ फरीदाबाद प्रशासन जो कर रहा है वह न्यायोचित नहीं है क्योंकि हम गरीब प्रवासी मजदूर हैं इसलिए यहां का लोकल प्रशासन हमारे साथ गैरों जैसा बर्ताव कर रहा है, जो गैर बराबरी है और उसी की वजह से हम लोगों को बंधुआ बनाया गया।

आज रेस्क्यू के समय जबरन रेस्क्यू टीम मजदूरों से मनमाने ढंग से बयान पर सिग्नेचर नही करवा पाई। मज़दूरों ने एकजुटता की और फरीदाबाद डीसी ऑफिस की तरफ़ कदम बढ़ाया।

वर्किंग पीपल्स चार्टर के सदस्य चंदन कुमार का कहना है की लेबर डिपार्टमेंट को मजदूरों के हितार्थ काम करना है और कानून के अनुसार कदम उठाना है। मजदूरों का बंधुआ होना या ना होना टीम तय नहीं करेगी यह तो एसडीएम एवं डीएम को करना है। अगर रेस्क्यू टीम इस प्रकार का अनेतिक और गैर कानूनी काम कर रही है तो संबंधित अधिकारी के खिलाफ एक्शन होना चाहिए। अगर मजदूरों को बंधुआ मजदूरी कानून के तहत मुक्त नहीं कराया गया तो तमाम जन संगठन मिलकर इस गैर कानूनी प्रक्रिया, गैर जिम्मेदाराना काम, गैर बराबरी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करेंगे।

आज की रेस्क्यू टीम में लेबर इंस्पेक्टर रामफल लेबर इंस्पेक्टर, धनराज लेबर इंस्पेक्टर, नायब तहसीलदार ओमकार शर्मा के साथ फरीदाबाद ओल्ड पुलिस थाने के कर्मचारी थे। इसी के साथ नेशनल चैंपियन कमिटी फॉर इरेडिकेशन का बॉन्डेड लेबर हरियाणा के स्टेट कोऑर्डिनेटर एडवोकेट गणेश कुमार, एसएलआइसी के एडवोकेट विनोद कुमार सिंह, मैन हेल्पलाइन की बबीता कुमारी एवं इनिक्वालिटी एलाइंस इंडिया के सुशील कुमार मौके पर मौजूद थे।

 

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