क्या फेमिनिज्म के खिलाफ है रामायण? वर्तमान दौर में राम राज्य की अवधारणा कितनी प्रासंगिक है

राष्ट्रीय जजमेंट

देव, दानव और मनुष्य

महादेव के पास एक लाख मंत्र थे जिसे उन्होंने तीनों बच्चों में 33-33 हजार के रूप में बांट दिए लेकिन 1 हजार मंत्र महादेव के पास शेष रह गए। महादेव के तीनों बच्चों ने शेष बचे मंत्रों को भी बांटने की मांग कर दी। फिर महादेव ने 333-333 के रूप में देव, दानव और मनुष्यों को बराबरी से यह भी वितरित कर दिए। फिर भी एक मंत्र महादेव के पास शेष रह गया और बच्चों को इस पर भी संतुष्टि नहीं हुई। तब महादेव ने उस एक मंत्र में 32 अक्षरों में से 10-10 तीनों में वितरित कर दिए। लेकिन जो दो अक्षर शेष रह गए वो रा और म थे जिसे उन्होंने अपने कंठ में धारण कर लिया। उसी का परिणाम है कि कालकूट हलाहल विष भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाया। राम का चरित्र ही इतना विलक्षण है कि वह आपको निशंक कर देता है।

 

500 वर्षों की तपस्या का परिणाम अब अयोध्या में विराजेंगे भगवान राम। अयोध्या एक लक्षण है, मजहबी असहिष्णुता के विरुद्ध प्रतिकार का, अध्याय प्रतीक है भारत राष्ट्र के आहत स्वाभिमान का, अयोध्या एक संकल्प है अपनी सांस्कृतिक धरोहर से हर कीमत पर जुड़े रहने का। जबकि राम आपके अंदर का योद्धा आपके अंदर का मनुष्य जगाते हैं। राम एक रसायन है जो किसी भी खराब चीज में इंवॉल्व होकर उसे ठीक कर देते हैं। आज हम रामायण, राम और मॉडर्न एरा में इसकी प्रासंगिकता को लेकर चर्चा करेंगे। हमारे साथ बात करने के लिए जुड़ रहे हैं शान्तनु गुप्ता जी।

इन्होंने बतौर इन्वेस्टमेंट बैंकर स्विट्जरलैंड में काम किया है फिर कॉरपोरेट कल्चर को छोड़कर भारत में वापसी की। ये रामायण स्कूल के संस्थापक भी हैं। 2017 में उत्तर प्रदेश विकास एक प्रतीक्षा नामक किताब से शुरुआत करते हुए 5 साल बाद इनकी मॉन्क हू ट्रांसफॉर्म उत्तर प्रदेश आई और फिर ग्राफिक उपन्‍यास ‘अजय से योगी आदित्यनाथ तक’ । यानी पिछले 6 साल में उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर तीन किताबें लिख डाली। हाल ही में रामायण पर भी इनकी नई किताब आई है। शांतनु गुप्ता जी से हमने रामायण और इसकी प्रासंगिकता पर बात की।

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