कोई आदमी प्रमाणिकता से अपनी मेहनत के बल पर आगे बढ़ता है तो यह चढ़ना भी किसी को अच्छा नहीं लगता है । यह सोच अच्छा नहीं लगने वाले को पतन की और ले जाने वाली होती हैं । यह किसी एक व्यक्ति की स्थिति नहीं है बल्कि यह दुनिया में अजीब रिवाज बन गया है । इस दुनियां के महासमर में कोई पूर्ण नहीं होता है । अपने इस जीवन के घर में जरा भी कमी तुम्हारे में ना हो यह सम्भव नहीं है ।
ना हो मन में हीन भावना ,ना हो कम को मन की प्रभावना, चिंतन हो ऐसा प्रांगण में बने सदा हर क्षण सुहावना । सत्य का आग्रह होना अच्छी बात है,मिथ्या आग्रह से हम बचने का प्रयास करें। आत्मविश्वास होना अच्छा है लेकिन अति विश्वास और अंध विश्वास अच्छे नहीं होते।
हमें अपने शक्ति सामर्थ्य पर गर्व होना चाहिए लेकिन दूसरों के गुणों के प्रति प्रमोद भावना होनी चाहिए , ईर्ष्या नहीं,दुसरों के गुणों को ग्रहण करने की ललक हम में होनी चाहिए,जलन नहीं। हम दूसरे से आगे कैसे बढ़े,उससे ज्यादा श्रम करके उससे अपने ग्राफ को बढ़ाकर। दूसरे की लकीर को छोटा हम उससे बड़ी लकीर खींच कर करने का भाव रखें।हमेशा दूसरों के प्रति सम्मान के भाव रखें तो हमारे कर्मों की निर्जरा होगी और हम जैसा करेंगे,वैसा पाएंगे। ये अहम और बहम की खाई को तोड़ गिराएंगे तो हमारे लिए श्रेयस्कर होगा।
अहम सदैव आत्मपतन का कारण रहा है ,हमें मूर्छित करता है,हम सदैव मृदुतापूर्ण प्रमोद भावना सबके प्रति रखें ।विनयभाव हमेशा हमारा पुष्ट हो। जब हमारा मन पॉज़िटिव होगा, तब हमें दिव्यता का अनुभव होगा क्योंकि सकारात्मकता वह निर्मलता की निशानी है और मन की निर्मलता, वही परम सुख है।
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