हमें टकराव की नहीं, सहयोग की जरूरत

राष्ट्रीय जजमेंट

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के प्रमुखों के बीच बातचीत के एक “सुव्यवस्थित तंत्र” की वकालत करते हुए कहा कि अगर इन संस्थानों के प्रमुख सार्वजनिक मंचों से अपने विचार साझा करना शुरू कर देंगे, तो इससे कोई लाभ नहीं होगा। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय लोकतंत्र तभी फलता-फूलता है, जब इसके तीनों अंग मिलकर काम करते हैं। महान्यायवादी (एजी) आर. वेंकटरमणी द्वारा लिखित कविता संग्रह ‘रोजेज विदआउट थॉर्न्स’ के विमोचन के मौके पर यहां आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए धनखड़ ने कहा कि “मुद्दे हमेशा रहेंगे”, लेकिन संवाद का एक ‘सुव्यवस्थित तंत्र’ होना चाहिए। उपराष्ट्रपति ने कहा, “हम देश में तब तक आगे नहीं बढ़ सकते, जब तक कोई सभी संबंधित पक्षों को यह न बताए कि हमें शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का सम्मान करना चाहिए।” उनके मुताबिक महान्यायवादी यह सुनिश्चित करने के लिए बिल्कुल उपयुक्त हैं कि शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत से तीनों अंगों में सम्मान पैदा हो। धनखड़ ने याद दिलाया कि राष्ट्रपति और सांसदों के अलावा, महान्यायवादी एकमात्र व्यक्ति हैं, जिन्हें सदन और समिति की बैठकों में बैठने की अनुमति है। संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, महान्यायवादी कार्यवाही में भाग तो ले सकते हैं, लेकिन मत नहीं दे सकते।

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