लखनऊ के चिनहट संत कुटी पलटू दास आश्रम में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान महायज्ञ के तीसरे दिन कथा व्यास परम पूज्य कौशलेंद्र कृष्ण शास्त्री जी महाराज ने परीक्षित जन्म, शुकदेव आगमन की कथा सुनाई। उन्होंने युद्ध में गुरु द्रोण के मारे जाने से क्रोधित होकर उनके पुत्र अश्वत्थामा ने क्रोधित होकर पांडवों को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया। ब्रह्मास्त्र से लगने से अभिमन्यु की गर्भवती पत्नी उत्तरा के गर्भ से परीक्षित का जन्म हुआ।
परीक्षित जब बड़े हुए नाती पोतों से भरा पूरा परिवार था। सुख वैभव से समृद्ध राज्य था। वह जब 60 वर्ष के थे। एक दिन वह शमीक मुनि से मिलने उनके आश्रम गए। उन्होंने आवाज लगाई, लेकिन तप में लीन होने के कारण मुनि ने कोई उत्तर नहीं दिया। राजा परीक्षित स्वयं का अपमान मानकर निकट मृत पड़े सर्प को शमीक मुनि के गले में डाल कर चले गए।
अपने पिता के गले में मृत सर्प को देख मुनि के पुत्र ने श्राप दे दिया कि जिस किसी ने भी मेरे पिता के गले में मृत सर्प डाला है। उसकी मृत्यु सात दिनों के अंदर सांप के डसने से हो जाएगी। ऐसा ज्ञात होने पर राजा परीक्षित ने अपना पूरा राज्य अपने पुत्र जन्मेजय को सौंप कर गंगा के किनारे अनशन व्रत लेकर बैठ गए और यहीं पर तमाम ऋषि यों के साथ श्री शुकदेव जी का प्राकट्य ,आगमन हुआ। कथा के दौरान मुख्य आयोजक खुशबू दिनेशानंद पीठाधीश्वर संत कुटी पलटू दास आश्रम यज्ञ आचार्य पंडित अतुल शास्त्री जी महाराज आचार्य हरिशंकर शुक्ला पंडित सूरज शास्त्री डी.एन. पाण्डेय राघवेंद्र पाण्डेय,जगदीश यादव नीरज तिवारी जयचंद कुशवाहा देवेश मिश्रा आदि मौजूद रहे।
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