मैहर में पर्यावरण दिवस पर सिविल अस्पताल एवम अन्य जगहों पर किया गया व्रक्षारोपण

आज 5 जून विश्व पर्यावरण दिवस है। इस अवसर पर पूरे विश्व के साथ सम्पूर्ण भारत वर्ष में हर जगह पेड़ लगाए जा रहे है।माँ शारदे की मैहर नगरी में भी मैहर विधायक नारायण त्रिपाठी से लेकर समस्त समाजसेवियो, सभी दल के वरिष्ठ नेता गण, प्रशाशन गण,चिकित्सक गण, वन विभाग,पत्रकार गण, युवा जन, व्यपारी गण,परिवार के लोगो के साथ मिलकर ,जगह जगह पर्यावरण के महत्व को स्वीकारते हुए पेड़ पौधे लगाए जा रहे है। आज सिविल अस्पताल मैहर में मैहर विधायक नारायण त्रिपाठी जी द्वारा वर्षा ऋतु के आगमन के पूर्व जो सघन रूप से व्रक्षारोपण का कार्यक्रम समस्त लोगो के सहयोग से किया जा रहा है वह सराहनीय है।

रवींद्र सिंह (मंजू सर) मैहर की कलम कहती है कि पर्यावरण के बिना मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। सच तो ये है कि हमारा सारा जीवन ही प्रकृत्ति पर निर्भर एवं आश्रित है। हमारा खाना, हमारा पीना, हमारा पहनना और यहाँ तक कि हमारी प्रत्येक स्वास भी प्रकृत्ति के ही अधीन है।कुछ काम हम घर बैठे भी बड़ी आसानी से पर्यावरण रक्षा के लिए कर सकते हैं। जीवन में शाकाहार अपनाना, जल की बूँद-बूँद का संचय करना, केवल जरूरत पड़ने पर विद्युत उपकरणों का प्रयोग करना, अन्न का दुरुपयोग करने से बचना व साथ ही साथ पोलीथीन व प्लास्टिक से निर्मित सामग्रियों का कम से कम उपयोग करना जैसे अनेक छोटे – छोटे कार्य पर्यावरण संरक्षण, संवर्द्धन व सुरक्षा की दिशा में एक सार्थक प्रयास और पहल होगी।

प्रकृत्ति ने सब कुछ दिया है तो हमारा भी उत्तरदायित्व बनता है कि हमें भी प्रत्येक वर्ष कम से एक वृक्ष लगाकर माँ समान अपनी इस प्रकृत्ति के श्रृंगार के लिए संकल्पित होना होगा। रवींद्र सिंह (मंजू सर) मैहर की कलम कहती है कि यह प्रकृत्ति मनुष्यों की सभी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन प्रदान करती है ।लेकिन लालच पूरा करने के लिए नहीं। अति लालच और व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए प्रकृत्ति के साथ छेड़छाड़ करना प्रकृत्ति के महा कोप का निमित्त बनना भी है।अपनी भावी पीढ़ियों को उबारने का जो संकल्प मैहर की धरा के प्रबुद्धजनों द्वारा लिया गया वह कदम स्वागत योग्य है।

मैहर के आचार्य कवि राजललन मिश्रा जी द्वारा पर्यावरण दिवस के अवसर पर एक रचना प्रस्तुत की ।जंगल,,, , , जंगल की साखें,,,,, मत काटो,जंगल जीवन की धारा है |जंगल से ही जग का. मंगल,जंगल प्राणो सम प्यारा है।जंगल मे आर्यों ने मैत्री मर्यादा पाठ पढाया था |जंगल मे ही श्रीरामचन्र्द ,केवट को गले लगाया था |जंगल मे ही थी वेणु वजी ,,ग्वालों संग कृष्ण कन्हाई की,,जहाँ कर्मयोग का रूप धरे,,कान्हा ने रास रचायी थी |जंगल ऋषियों की तपस्थली,स्वर्णिम संस्कृति की धारा है |जंगल की शुषमा श्री से ही,यह भारत जग मे न्यारा है|,,,जंगल की साखें,,,,जंगल की अनुपम हरियाली,मौसम का रंग बदलती है,|जंगल के पेडोके फल से दुखियों की थाली सजती है जंगल की जडी बूूटियों से,जीवन को मिलताअभयदान जंगल के सुन्दर झरनों संग नदिया गढती है कीर्तिमान जंगल जीवे का संबल है ,खग वृन्दो की स्वर धारा है|जंगल की शुषमा श्री से ही,यह भारत जग मे न्यारा है।विदित हो महान सम्राट अशोक ने पर्यावरण को बचाये रखने के लिए सड़क के किनारे पेड़ लगाने की योजना को सर्वप्रथम क्रियान्वयन किया था|

              रवींद्र सिंह (मंजू सर) 

(राष्ट्रीय जजमेन्ट संवाददाता जिला सतना मैहर)

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